Wednesday, June 27, 2012

इस्‍लामी स्‍म्‍भवतः 73 गिरोहों मैं 1 कौन ठीक है?

इसका पैमाना, मीटर या तराजू हर मामले की तरह कुरआन और हदीस ही हैं , पवित्र क़ुरआन हमे स्वयं को ‘‘मुस्लिम’’  कहने का आदेश देता है


यह सत्य है कि आज के मुसलमान आपस में ही बंटे हुए हैं। दुख की बात यह है कि इस प्रकार के अलगाव की इस्लाम में कोई अनुमति नहीं है। इस्लाम इस बात पर ज़ोर देता है कि उसके अनुयायियों में परस्पर एकता को बरक़रार रखा जाए।
‘‘सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूत पकड़ लो और अलगाव में न पड़ो।’’ (पवित्र क़ुरआन 3:103)
वह कौन सी रस्सी है जिसकी ओर इस पवित्र आयत में अल्लाह तआला ने इशारा किया है। पवित्र क़ुरआन ही वह रस्सी है, यही अल्लाह की वह रस्सी है जिसे समस्त मुसलमानों को मज़बूती से थामे रहना चाहि। इस पवित्र आयत में दोहरा आग्रह है, एक ओर यह आदेश दिया गया है कि अल्लाह की रस्सी को ‘‘मज़बूती से थामे रखें’’ तो दूसरी ओर यह आदेश भी है कि अलगाव में न पड़ो (एकजुट रहो)।
पवित्र क़ुरआन का स्पष्ट आदेश हैः
‘‘हे लोगो! जो ईमान लाए हो, आज्ञापालन करो अल्लाह का, और आज्ञापालन करो रसूल (सल्ल.) का, और उन लोगों का जो तुम में साहिब-ए-अम्र (अधिकारिक) हों फिर तुम्हारे बीच किसी मामले में विवाद हो जाए तो उसे अल्लाह और रसूल की ओर फेर दो, यदि तुम वास्तव में अल्लाह और अंतिम दिन (कियामत) पर ईमान रखते हो। यही एक सीधा तरीका है और परिणाम की दृष्टि से भी उत्तम है।’’ (पवित्र क़ुरआन , 4:59)


सभी मुसलमानों को पवित्र क़ुरआन और प्रामाणिक हदीसों का ही अनुकरण करना चाहिए और आपस में फूट नहीं डालनी चाहिए। इस्लाम में समुदायों और अलगाव की मनाही है पवित्र क़ुरआन का आदेश हैः
जिन लोगों ने अपने धर्म के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और स्वयं गिरोहों में बँट गए, तुम्हारा उनसे कोई सम्बन्ध नहीं। उनका मामला तो बस अल्लाह के हवाले है। फिर वह उन्हें बता देगा जो कुछ वे किया करते थे (क़ुरआन , 6:159)  
Indeed, those who have divided their religion and become sects - you, [O Muhammad], are not [associated] with them in anything. Their affair is only [left] to Allah; then He will inform them about what they used to do. (Quran-6:159) 
 tanzil.net/#trans/hi.farooq/6:159



इस पवित्र आयत से यह स्पष्ट होता है कि अल्लाह तआला ने हमें उन लोगों से अलग रहने का आदेश दिया है जो दीन में विभाजन करते हों और समुदायों में बाँटते हों। किन्तु आज जब किसी मुसलमान से पूछा जाए कि ‘‘तुम कौन हो?’’ तो सामान्य रूप से कुछ ऐसे उत्तर मिलते हैं, ‘‘मैं सुन्नी हूँ, मैं शिया हूँ, ’’इत्यादि। कुछ लोग स्वयं को हनफ़ी, शाफ़ई, मालिकी और हम्बली भी कहते हैं, कुछ लोग कहते हैं ‘‘मैं देवबन्दी, या बरेलवी हूँ।’’


हमारे निकट पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मुस्लिम थे ऐसे मुसलमान से कोई पूछे कि हमारे प्यारे पैग़म्बर (सल्लॉ) कौन थे? क्या वह हन्फ़ी या शाफ़ई थे। क्या मालिकी या हम्बली थे? नहीं, वह मुसलमान थे। दूसरे सभी पैग़म्बरों की तरह जिन्हें अल्लाह तआला ने उनसे पहले मार्गदर्शन हेतु भेजा था।
पवित्र क़ुरआन की सूरह 3, आयत 25 में स्पष्ट किया गया है कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम भी मुसलमान ही थे। इसी पवित्र सूरह की 67वीं आयत में पवित्र क़ुरआन बताता है कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम कोई यहूदी या ईसाई नहीं थे बल्कि वह ‘‘मुस्लिम’’ थे।


पवित्र क़ुरआन हमे स्वयं को ‘‘मुस्लिम’’  कहने का आदेश देता है
यदि कोई व्यक्ति एक मुसलमान से प्रश्न करे कि वह कौन है तो उत्तर में उसे कहना चाहिए कि वह मुसलमान है, हनफ़ी अथवा शाफ़ई नहीं। पवित्र क़ुरआन में अल्लाह तआला का फ़रमान हैः
‘‘और उस व्यक्ति से अच्छी बात और किसकी होगी जिसने अल्लाह की तरफ़ बुलाया और नेक अमल (सद्कर्म) किया और कहा कि मैं मुसलमान हूँ।’’ (पवित्र क़ुरआन , 41ः33)ज्ञातव्य है कि यहाँ पवित्र क़ुरआन कह रहा है कि ‘‘कहो, मैं उनमें से हूँ जो इस्लाम में झुकते हैं,’’ दूसरे शब्दों में ‘‘कहो, मैं एक मुसलमान हूँ।’’
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब ग़ैर मुस्लिम बादशाहों को इस्लाम का निमंत्रण देने के लिए पत्र लिखवाते थे तो उन पत्रों में सूरह आल इमरान की 64 वीं आयत भी लिखवाते थेः
‘‘हे नबी! कहो, हे किताब वालो, आओ एक ऐसी बात की ओर जो हमारे और तुम्हारे बीच समान है। यह कि हम अल्लाह के सिवाए किसी की बन्दगी न करें, उसके साथ किसी को शरीक न ठहराएं, और हममें से कोई अल्लाह के सिवाए किसी को अपना रब (उपास्य) न बना ले। इस दावत को स्वीकार करने से यदि वे मुँह मोड़ें तो साफ़ कह दो, कि गवाह रहो, हम तो मुस्लिम (केवल अल्लाह की बन्दगी करने वाले) हैं।’’ Quran 3 :64
इस्लाम के सभी महान उलेमा का सम्मान कीजिए
हमें इस्लाम के समस्त उलेमा का, चारों इमामों सहित अनिवार्य रूप से सम्मान करना चाहिए। इमाम अबू हनीफ़ा (रहमतुल्लाहि अलैहि), इमाम शफ़ई (रह.), इमाम हम्बल (रह.) और ईमाम मालिक (रह.), ये सभी हमारे लिए समान रूप से आदर के पात्र हैं। ये सभी महान उलेमा और विद्वान थे और अल्लाह तआला उन्हें उनकी दीनी सेवाओं का महान प्रतिफल प्रदान करे (आमीन) इस बात पर कोई आपत्ति नहीं कि अगर कोई व्यक्ति इन इमामों में से किसी एक की विचारधारा से सहमत हो। किन्तु जब पूछा जाए कि तुम कौन हो? तो जवाब केवल ‘‘मैं मुसलमान हूँ’’ ही होना चाहिए।


कुछ लोग फ़िरके (समुदायों) के तर्क में हुजूर (सल्ल.) की एक हदीस पेश करते हैं जो सुनन अबू दाऊद में (हदीस नम्‍बर (4597) में बयान की गई है जिसमें आप (सल्ल.) का यह कथन बताया गया है कि ‘‘मेरी उम्मत 73 फ़िरकों (गिरोहों)  में बंट जाएगी।’’  (देखें नीचा दिया गया चित्र)


इस हदीस से स्पष्ट होता है कि रसूल अल्लाह (सल्लॉ) ने मुसलमानों में 73 फ़िरके बनने की भाविष्यवाणी फ़रमाई थी। लेकिन आप (सल्ल.) ने यह कदापि नहीं फ़रमाया कि मुसलमानों को फ़िरकों में बंट जाने में संलग्न हो जाना चाहिए। पवित्र क़ुरआन हमें यह आदेश देता है कि हम फ़िरके में विभाजित न हों। वे लोग जो पवित्र क़ुरआन और सच्ची हदीसों की शिक्षा में विश्वास रखते हों और  फ़िरके और गुट न बनाएं वही सीधे रास्ते पर हैं।
तिर्मिज़ी शरीफ़ की 171 वीं हदीस के अनुसार हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि ‘‘मेरी उम्मत 73 फ़िरकों में बंट जाएगी, और वे सब जहन्नम की आग में जलेंगे, सिवाए एक फिरके के...।’’सहाबा किराम (रज़ि.) ने इस पर रसूल अल्लाह (सल्ल.) से प्रश्न किया कि वह कौन सा समूह होगा (जो जन्नत में जाएगा) तो आप (सल्ल.) ने जवाब दिया ‘‘केवल वह जो मेरे और मेरे सहाबा का अनुकरण करेगा।’’
According to Tirmidhi Hadith No. 171, 
the prophet (pbuh) is reported to have said, "My Ummah will be fragmented into seventy-three sects, and all of them will be in Hell fire except one sect." The companions asked Allah’s messenger which group that would be. Where upon he replied, "It is the one to which I and my companions belong."

पवित्र क़ुरआन की अनेक आयतों में अल्लाह और अल्लाह के रसूल के आज्ञा पालन का आदेश दिया गया है। अतः एक सच्चे मुसलमान को पवित्र क़ुरआन और हदीस शरीफ़ का ही अनुकरण करना चाहिए। वह किसी भी आलिम (धार्मिक विद्वान) के दृष्टिकोण से सहमत भी हो सकता है जब कि उसका दृष्टिकोण पवित्र क़ुरआन और हदीस शरीफ़ के अनुसार हो। यदि उस आलिम के विचार पवित्र क़ुरआन और हदीस के विपरीत हों तो उनका कोई अर्थ और महत्व नहीं, चाहे उन विचारों का प्रस्तुतकर्ता कितना ही बड़ा विद्वान क्यों न हो।


यदि तमाम मुसलमान पवित्र क़ुरआन का अध्ययन पूरी तरह समझकर ही कर लें और मुस्तनद (प्रामाणिक) हदीसों का अनुकरण करें तो अल्लाह ने चाहा तो सभी परस्पर विरोधाभास समाप्त हो जाएंगे और एक बार फिर मुस्लिम समाज एक संयुक्त संगठित उम्मत बन जाएगा। 


Thanks : Dr. Z. N.
WHY ARE MUSLIMS DIVIDED INTO SECTS (DIFFERENT SCHOOLS OF THOUGHT
http://www.ilovezakirnaik.com/misconceptions/a16.htm


मशहूर हदीस,उर्द और अरबी में इधर है इसके इंग्लिश वर्जन की मुझे तलाश है 
सुनन अबू दाऊद में chapter 40 हदीस नम्‍बर 4597) 

Tuesday, June 12, 2012

पूर्व शिव सैनिक मुहम्मद शकील (सुनिल जोशी) से एक मुलाकात interview


बजरंग दल के जिला संचालक के शिव सैनिक मित्र सुनिल जोशी जो अब नाम मुहम्‍मद शकील का उर्दू मासिक पत्रीका 'अरमुगान' जून 2012 ईं में मौलाना मुहम्‍मद कलीम साहब के सुपुत्र अहमद अव्‍वाह को दिया गया इन्‍टरव्‍यू interview साक्षात्कार

अहमद अव्वाह: अस्सलामु अलैकुम
मुहम्मद शकील: वालैकुम सलाम

अहमद: शकील साहब अबी ने कुछ दिन पहले हम लोगों को बताया था कि आपने हमारे एक जिम्मेदार साथी के साथ बहुत गुस्से का मामला किया था और गालियां वगेरा दी थी, और अब आपको अल्लाह ताला ने हिदायत से नवाज दिया, आपके इस गुस्से और नाराजगी के पीछे क्या बात है, हालांकि आपके खान्दान के मुसलमानों से ताल्लुकात भी रहे हैं।
शकील: मौलाना अहमद साहब असल में तो मेरे मालिक मुझ पर रहम आ रहा था, बस उसने जरिया बना दिया, वर्ना पिछले दिनों मुझ पर मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ जो भूत सवार था उसका आप तसव्वुर भी नहीं कर सकते।

अहमद : फिर भी जाहिरी तौर पर इस गुस्से की वजह क्‍या थी?
शकील : असल में हमारे यहां शाहआबाद आंध्रा के चार बच्चे मुसलमान हुए, चारों भाई बहन थे, जिस लडके के साथ वो आए थे उसने उनकी बडी बहन से शादी कर ली थी, हमारे जिले की शिव-सेना के जिम्मेदारों को मालूम हो गया तो उन्हों ने इलाके में बवाल खडा कर दिया, उस लडके के खिलाफ बच्चों को बहका कर मुसलमान बनाने का मुकदमा दायर कर दिया, और उसको जेल भेज दिया, अदालत में उन बच्चों ने साफ-साफ खुल कर बयान दिया कि हम अपनी मर्जी से मुसलमान हुए हैं, लडकी अभी 18 साल की नहीं हुई थी, असल में उसके पिता झांसी के पास किसी जगह रहते हैं , शिवपूरी कोई जिला है वहां पर उन बच्चों की सगी मां तो मर गयी थीं, वालिद ने एम. पी. में ही दूसरी शादी की, मां के रवैये से परेशान होकर यह बच्चे घर से भाग कर आ गए, स्टेशन पर उस लडके को यह चारों मिले, इसको तरस आ गया, ये उनको शाहआबाद ले आया, घर वालों ने मुखालफत की, मगर इस लडके ने इस लडकी से वादा कर लिया था इस लिए उससे शादी कर ली, बाद में अदालत और पुलिस ने इन बच्चों के पिता से राबता किया तो उनके बाप ने यह बयान दिया कि यह बच्चे मेरी मर्जी से मुसलमान हुए हैं, और मेरी मर्जी से मेरी बेटी ने शादी की है, इस पर हमारे यहां के शिवसेना वालों ने शिवपूरी के जिम्मेदारों से राबता किया और बच्चों के वालिद के खिलाफ बयान दिने पर जोर दिया और उनको तरह-तरह की धमकियां भी दीं, मगर वो किसी तरह खिलाफ बयान देने पर राजी न हुए, और कहते रहे कि इस देवता जैसे इन्सान ने उन बच्चों पर तरस खाकर हमदर्दी की और उसको निभाया, हम उसके खिलाफ बयान दें यह कैसा घोर अन्याय होगा, क्या में बिल्कु हैवान बन जाउं, जब वहां के शिव सैनिकों ने बहुत ज्यादा दबाव दिया तो उन बच्चों के बाप ने और उन बच्चों के साथ उनकी सौतेली मां अपने दो बच्चों के साथ मुसलमान हो गयी, इस पर पूरे इलाके की हिन्दू कमेटियों ने अपनी हार समझ कर एकजुट हो कर छानबीन शुरू की तो मालूम हुआ की इलाके में बहुत से लोग मुसलमान होते जा रहे हैं, इस पर खोद-कुरेद हुई तो पता चला कि संभल और उसके पास के कुछ कसबों में कुछ लोग यह काम कर रहे हैं, मेरे एक साथी बजरंग दल के जिला संचालक हैं अनिल कौशिक, वो मेरे पास संभल आए और उन्होंने संभल में शिवसेना और बजरंग दल के लोगों की मीटिंग की, और उस में धर्म बदलने को रोकने के सिलसिले में लोगों को गरमाया, में बचपन से बहुत जज्बाती आदमी हूं मुझे बहुत गुस्सा आया, और मैं ने इसके खिलाफ तहरीक चलाने का इरादा कर लिया, मेरे एक और साथी ने जो इस काम में बढ चढ कर हिस्सा लेने का वादा कर चुके थे, उन्होंने मुझे बताया कि असल में एक किताब हिन्दी में ''आपकी अमानत, आपकी सेवा में'' मौलाना कलीम सिददीकी साहब ने लिखी है, वो ऐसी जादू भरी भाषा में लिखी गयी है कि जो उसे पढता है मुसलमान हो जाता है, और वो दिल्ली से छपी है उस पर छपवाने वाले का फोन नम्बर है, मैं ने कहा वो किताब जरा मुझे ला कर दो, मैं देखूंगा उस में क्या बात लिखी है, उसने कहा नहीं उसका पढना ठीक नहीं है, उस किताब का लेखक कोई तान्त्रिक है, उसने उसकी भाषा में जादू कर दिया है, अगर तुम पढोगे तो मुसलमान हो जाओगे, मुझे भी डर लगा, जब मुझे किताब दिखाई तो मैं ने बिना खोले किताब के बेक टाइटिल पर छपे दो मोबाइल नम्बरों को नोट कर लिया फिर एक नम्बर पर बात की, पहले नम्बर पर एक साहब का फोन मिला वो बडे नर्म स्वभाव के थे, मैं उन्हें मां बहन की बडी गालियां देता रहा, और धमकियां देता रहा, मगर वो हंसते रहे और बोले आपकी गालियां कितनी मिठी हैं उनसे मुहब्बत की खुशबू आ रही है, रात को दूसरे नम्बर पर मैं ने बात की और बहुत सख्त सुस्त आखरी दरजे की मां बहन की सडी सडी गालियां देता रहा, तो वो साहब पहले तो गुस्सा हुए फिर बोले, मैं ने पूरा फोन टेप कर लिया है, अब आप के खिलाफ थाने में रिपोर्ट कराने जा रहा हूं, एक दफा तो मैं डर सा गया, फिर हिम्मत की और कहा कि कतल के बाद इकटठे ही केस कर देना, मैं ने उनसे कहा कि जरा अपनी पत्नि (बीवी) से बात करादे, मैं तुझे कतल करूंगा , तो वो विधवा हो जाएगी, मैं उससे पहले ही क्षमा (माफी) तो कर लूं, फिर तो मौका मिलेगा नहीं।

अहमद: अच्छा तो वो आप थे, अबी(कलीम साहब) तो बहुत मजे लेकर यह बात सुनाते थे, और उन साथी को समझाया था जब वो बहुत टूटे दिल के साथ उन गालियों की शिकायत कर रहे थे, अबी ने उनको समझाया कि तुम्हें तो फखर करना चाहिए, कि सैयदुल अव्वलीन व आखिरीन नबी रहमतुल आलमीन सल्ल. की सुनन्त अदा करने का शरफ तुम्हें मिला, दावत की राह में किसी खुशकिस्मत को ही गालियां नसीब होती हैं, अबी उनसे कहने लगे तुम बताओ कोई ऐसा खुशकिस्मत आदमी जिस को दावत(दीन की बुलाने) की राह में गालियां मिली हों, यह प्यारे आका की सुन्नत है कि जिनको दोजख की आग से निकालने के लिए आप रातों को रोते और दिनों को खुशामद करते थे, वो लोग गालियां देते, पत्थर बरसाते, और हर तरह से सताते थे, फिर उसने उनसे कहा कि तुम ने उसकी गालियों पर तो गौर किया, उसकी इन्सानियत और रहम दिली और उसकी मुहब्बत भरी फितरत का अहसास नहीं किया कि अभी उसने तुम्हें कतल किया भी नहीं और तुम्हरी बीवी से माफी मांगने को कह रहा है...... जी तो आगे सुनाइए।

शकील: उन साहब ने मुझसे मालूम किया कि आप यह बताइए कि उस किताब में कौनसी बात ऐसी गलत है जिस पर आपको एतराज और ऐसा गुस्सा है, मैं ने कहा, मैं ने तो वो किताब पढी नहीं, उन्होंने कहा फिर आपको गुस्सा क्यूं? मैं ने कहा मेरे कई साथियों ने किताब पढने से मना किया और कहा जो भी यह किताब पढता है इस किताब की की भाषा में जादू कर रखा है, वो मुसलमान हो जाता है, इस डर की वजह से मैं ने किताब नहीं पढी, उन्होंने कहा आपको किसी ने गलत कहा है? मुझसे पूछा आप कुछ पढे लिखे हैं? मैं ने कहा में एम. एस. सी. हूं, वो बोले साइंस के स्कालर होकर आप कैसी अंधविश्वास की बात कर रहे हैं, इन्सान को मालिक ने देखने के लिए अकल दी है, और आप इतने पढे लिखे आदमी हैं, इन्सान चांद तारों पर जा रहा है, और आप जादू की बात कर रहे हैं, आप ऐसा किजिए कि आप इस किताब को जरूर पढिए और इसके पढने के बाद जो बात आपको गलत लगे अपने कलम से काट दिजिए, आइन्दा आप जिस तरह करक्शन करेंगे किताब उसी तरह छपेगी, उन्हों ने कहा 'क्या में आपके पास किताब भेज दू?'' मैं ने कहा अगर मुझे न मिली तो मंगा लूंगा, और मुझे इस किताब में कोई बात हिन्दू धर्म के खिलाफ मिलेगी तो में तेरे पूरे खान्दान को कतल कर दूंगा, वो बोले कोई बात नहीं।

अहमद: उसके बाद आपने वो किताब पढी?
शकीलः नहीं मैं ने उन दिनों वो किताब नहीं पढी, साथियों से बात हुई तो मेरी तबियत में बहुत नर्मी देख कर वो बहुत गुस्से हुए, और बोले कि ऐसे ही तो लठ मार मार कर वो धर्मान्त्रण कर रहे हैं, देखा नहीं यह इसाई मिशन वाले भी ऐसा ही करते हैं में जगह जगह जाकर चौराहों पर इस किताब और उसके बांटने वालों को गालियां देता, संभल के नवाब खान्दान के एक साहब को हज के दिनों ही वहीं मालूम हुआ कि संभल के पास एक कस्बा में एक आदमी सुनिल जोशी नाम का ''आपकी अमानत'' के खिलाफ बहुत गुस्सा है, वो उसके लेखक को बहुत गालियां बकता है, मौलाना कलीम साहब से वो मुरीद(धर्म शिष्‍य) है, हज के सफर से आने के बाद वो तलाश करते करते मेरे पास पहुंचे, मुझे देखा तो चिमट कर बहुत रोने लगे, सुनिल भैया तुम तो मेरे साथ छटी क्लास से लेकर दस्वी क्लात तक पढे हो, तुम्हारे साथ मैं ने कबडडी भी खेली है, मैं ने भी पहचान लिया, मैं ने कहा कि मेरे पिताजी ने तो आपके अब्बा जान की जमीन भी काश्त की है, बोले हां हां वो जमीन तो पिताजी ने बहुत सस्ते दामों में आपके पिताजी को ताल्लुकात की वजह से बेच दी थी, मैं ने कहा हां तुम्हारे पिता जी तो हमारी शादी में बहुत बढ-चढकर शरीक हुए थे, और कई दिन तक काम कराया था बलिक एक तरह से शादी की जिम्मेदारी निभाई थी, यह कह कर वो मुझ से चिमट गए, बुरी बुरी तरह फूट फूट कर रोने लगे और उनका रो रोकर बुरा हाल हो गया, रोते रहे और कहते रहे मेरे लाडले दोस्त, ईमान के बगैर तुम मर गए तो दोजख में जलोगे, मैं ऐसे अच्छे दोस्त को कैसे दोजख में जाता देखूंगा, मेरे भाई सुनिल मैं ने इस बार हज में बार-बार तुम्हारी हिदायत के लिए दुआ की है, मेरे भाई ईमान के बगेर बडा खतरा है और बहुत खतरनाक आग है, मेरे भाई सुनिल नर्क की आग से बच जाओ, जल्दी से कलिमा पढ लो, देखो में दिल का मरीज हूं तडप तडप कर मेरा हार्ट फेल हो जाए गा, मैं ऐसे अच्छे दोस्त को हर्गिज कुफर पर मरने नहीं दूंगा, मेरे भाई कलिमा पढ लो, फूट फूट कर आवाज से रोते रोते उनका बुरा हाल हो गया, मैं ने कहा ''में कलिमा पढ लूंगा, तुम चुप हो जाओ, मेरे यार चाए तो पी लो'' वो बोले ''मैं किस दिल से चाए पी लूं, जब मेरा दिली प्यारा दोस्त, जिसका इतना प्यारा बाप हो, जो मरे हकीकी भाई की तरह होने के बावजूद ईमान के बगैर मर गया, सुनिल भैया चचा बलराम जी पर नर्क में क्या क्या गुजर रही होगी, मेरे अब्बा ने उन्हें मरने दिया गमर में तुम्हें हरगिज अब नर्क में नहीं जाने दूंगा'' बार बार मैं उनको पानी पिलाने की कोशिश करता, मगर वो कहते ''तुम्हें पानी की पडी है, मेरा भाई मेरा दोस्‍त सुनिल बगैर इमान के मर जाएगा, मेरे होश खराब हो गए, मैं ने कहा: ''चुप हो जाओ पानी पी लो, जो तुम कहोगे, मैं करने को तैयार हूं'' वो बोले ''कलिमा पढ लो'', मैं ने कहा कि तुम पानी पीलो, मैं कलिमा नही पूरा कुरआन पढ लूंगा'' वो बोले ''अगर मेरे पानी पीते पीते तुम मर गए तो नर्क में जाओंगे'' मैं ने कहा ''मेरे भाई , अच्छा तुम पढाओ क्या पढाते हो'' मैं ने उनकी हालत बुरी देखी तो उसके अलावा और कोई रास्ता दिखाइ नहीं दिया, उन्होंने रोते रोते मुझे कलिमा पढाया, फिर हिन्दी में उसका अनुवाद बताया, मैं ने उनको पानी पिलाया, मैं ने कहा ''अच्छा अब तुम खुश हो अब चाए पी लो'' उन्हों ने चाए पी, और जेब में से ''आपकी अमानत आपकी सेवा में'' किताब निकाल कर दी, कि सुनिल भैया इस किताब को अब तुम दो बार बहुत गौर से पढना, 'आपकी अमानत' मैं ने देखी तो मेरा मूड खराब हो गया, अच्छा यह किताब तो मैं किसी तरह भी नहीं पढूंगा, इस किताब के लेखक को मैं ने कतल करने का पर्ण (अहद) किया है, वो चाए छोड कर फिर मुझ से चिमट गए और रोने लगे, मैं ने कहा ''तुम कुछ ही करो, मैं किताब नहीं पढ सकता'', वो बोले क्यूं इस किताब से तुम्हें ऐसी चिड है, मैं ने कहा, क्या तुम ही लोग यह किताब बांट रहे हो, उन्होंने कहा कि तुम्हरा यह गया गुजरा भाई ही यह मुहब्बत की खुशबू बांट रहा है'' मैं ने कहा ''मुहब्बत की नहीं नफरत की, इस किताब के नाम से मुझे गुस्सा आता है, वो बोले कि भाई सुनिल, इस किताब में क्या बात गलत है? तुम ने यह किताब पढी है? मैं ने कहा मैं नहीं पढ सकता, इस किताब का लेखक तान्त्रिक है उसने इसके शब्दों में जादू कर रखा है, वो दिलों को बांध देते हैं'' वो फिर पहले की तरह रोने लगे, सुनिल भैया ''इस किताब का लेखक एक तान्त्रिक नहीं, एक सच्चा इन्सान और मुहब्बत का फरिश्ता है, उसने इस किताब में मुहब्बत की मिठास घोल रखी है, और इस किताब में सच है, सच्ची हमदर्दी है, वो यह कहते हैं कि हर इन्सान की आत्मा सच्ची होती है, वो अपने मालिक की तरफ से सच्ची बात पर कुरबान होती है, मेरे दोस्त तुम्हें यह किताब जरूर पढनी पडेगी'' मैंने कहा कि सब कहते हैं जो इस किताब को पढता है वो मुसलमान हो जाता है, मुझे यह डर है कि इस किताब को पढ कर मुझ सचमुच मुसलमान होना पडेगा'' यह कहना था कि वो मुझसे चिमट गए, और बच्चों की तरह बिलक बिलक कर रोने लगे, मेरे भाई सुनिल, तुमने सच्चे दिल से कलमा नही पढा, झूठे दिल से पढा कलमा किसी काम की नहीं, मरे भाई तुम्हें यह किताब पढनी पडेगी, में हरगिज हरगिज तुम्हें नरक में नहीं जाने दूंगा, मेरे भैया में मर जाउंगा, मुझ डर लगा कि यह वाकई  रो रो के मर जाएगा, मैं ने उसको पानी पिलाना चाहा, वो पानी पीने को तैयार न हुए, मैं ने कहा ''मेरे बाप में इस किताब को दस दफा पढूंगा तुम चुप हो जाओ, अच्छा यह पानी पी लो, मैं तुम्हारे सामने अभी पढता हूं'' उसने इस शर्त पर पानी पिया, कि मैं अभी इस किताब को पूरी उसके सामने पढूंगा, मैं ने उनके सामने किताब पढना शुरू की, और खयाल था कि थोडी देर में यह चुप हो जाएगा तो यह किताब बंद कर दूंगा, मगर जैसे ही पेश लफज (दो शब्द) का पृष्ठ पढा, किताब के लेखक से मेरी दूरी कम हो गई, और फिर मैं किताब पढता गया, 32 पृष्ठ की किताब आधे घंटे में खतम हो गई, इस किताब का सच और मुहब्बत मेरे उपर जादू कर चुका था, मैं ने अपने दोस्त से एक बार सच्चे दिल से कलिमा शहादत पढाने की खुद रिक्वेस्ट की, उन्होंने मुझे कलिमा पढाया, मैं ने गले मिलकर उनका शुक्रिया अदा किया, और अपना नाम उनके मशवरे से शकील अहमद रखा

अहमद: इसके बाद आपने अपने इस्लाम का एलान किया?
शकील: रात को मैं ने अपनी बीवी से बताने का इरादा किया, बाजार से उसके लिए जोडा लिया, और एक चांदी की अंगूठी खरीदा, एक मिठाई  का डब्बा लिया, 30 मार्च का दिन था, यह मेरी शादी का दिन था, और यह दिन मेरी बीवी का बर्थडे भी था, रात को मैं ने उसको मुबारकबाद दी और हद दरजे मुहब्बत का इजहार किया जो मेरी आदत के बिल्कुल खिलाफ था, वो हैरत से मालूम करने लगी की यह किया बात है, मैं ने कहा कि एक आदमी सुनिल जो तुम्हारे साथ भारतीय समाज के मुताबिक पांव की जूती समझ कर व्यवहार सलूक करता था, आज उसने नया जन्म लिया है, उस पर उसके मालिक ने महरबानी कर दी हे, उसे धार्मिक बना दिया है, एक प्रेम का देवता मेरे पास आकर मेरी जीवन के अंधकार को प्रकाशित कर गया गया, मैं तुम से आज तक के सारे अत्याचार जुल्म के लिए पांव पकड कर माफी मांगता हूं, और आइन्दा के लिए तुम से वादा करता हूं कि तुम मेरी जीवन साथी, मेरे सर का ताज हो, वो बोली में समझ नहीं सकी, मैं ने कहा इसको समझने के लिए अगर तुम्हारे पास समय है तो आधा घंटा चाहिए, मगर जब तुम खुशी से तैयार हो, मैं तुम पर जबरदस्ती बहुत कर चुका, अब मुझे न्याय दिवस अर्थात उपर वाले को हिसाब देने का दिन का डर हो गया है, तुम्हारे पास जब खुशी से समय हो मैं एक पाठ तुम्हें सुनाना चाहता हूं, वो बोली, ऐसी अदभूत हैरतनाक तब्दीली के लिए मैं सुनने को तैयार हूं, वो कौन सा पाठ है जिसने आपके ऐसा बदल कर रख दिया, मैं ने जेब से 'आपकी अमानत' पुस्तक निकाली, वो बोली '' यह किताब में खुद भी पढ सकती हूं क्या?'' मैं ने कहा मेरा दिल चाहता है मैं खुद ही सुनाउं, असल में मेरे दिल में यह बात आ गई कि 17 साल में ने तुम्हारे साथ इतनी सख्ती और जुल्म किया, एक ऐसा अहसान कर दूं, जो 17 साल का अन्याय ना इन्साफी धुल जाए, कि हमेशा अजाब से तुम बच जाओ'' एक बार सुनने के बाद वो बोली अच्छा अब एक बार उसको जरा समझ कर पढना चाहती हूं, मैं ने कहा जरूर पढो, वो किताब उसने ली, पूरी किताब एक अलग जाकर उसने पढी, फिर मेरे पास आई और बोली इसका मतलब तो यह है कि सनातन धर्म और सच्च मजहब सिर्फ इस्लाम है, मैं ने कहा मालिक ने तुम्हें बिल्कुल सच समझाया, मेरी अचानक तब्दीली से वो बहुत मुतासिर थी, 17 साल से पहली बार मैं ने उसको प्यार से गले लगाया था, उसको प्यार किया था मुहब्बत से कुछ खरीद कर उसको पेश किया था उसके जन्म दिन और शादी के दिन पर मुबारकाद दी थी, अब उसके लिए मेरी बात मानना बिल्कुल स्भाविक (फितरी) था, मैं ने 'आपकी अमानत' पुस्‍तक में देख कर उसको कलिमा पढवाया(‘‘अशहदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाहु व अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलूहसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम‘‘), उसका नाम आमिना खातून रखा, अपने दोनों बच्चों को भी कलिमा पढवाया, उनका नाम फातिमा और हसन रखा।

अहमद : इसके बाद आपने आम एलान किया?
शकील: अभी तक आम एलान नहीं किया, अलबत्ता चार पांच रोज के बाद तुम्हारे यहां एक मौलाना साहब जिनके बारे में मुझे मालूम हुआ था, ''आपकी अमानत'' बांटते हैं, उनको मैं ने एक दिन खरी खरी गालियां सुनाई थीं, उनके पास गया और उनसे अपने मुसलमान होने के बारे में बताया, और उनसे अपनी खतना के सिलसिले में मशवरा किया, मगर उनको यकीन रहीं आया, और जरा टालते रहे, मैं उनके डर को समझ गया,और में मुरादाबाद एक मुसलमान डाक्टर के पास गया, और जाकर खतना कराई, उसके बाद मैं ने तीन बार सिर्फ तीन तीन दिन गजरोला तब्लीगी जमात में लगाए।

अहमद: गजरोला के साथियों को मालूम था कि आपने इस्लाम कुबूल किया है?
शकील: मैंने बताया कि असल में मैं पैदाइशी मुसलमान था बाद में शिव सेना और बजरंग दल के चक्कर में हिंदू बन गया था और यह बात सच्ची थी, हर पैदा होने वाला इस्लाम पर पैदा होता है, अब मेरा इरादा पहले चार महीने तब्लीगी जमात के सफर में लगाने का है, उसके बाद खुल कर एलान करूंगा, और इन्शा अल्लाह दीन सीख लूंगा तो दूसरों को दावत देना आसान होगा।

अहमद: माशा अल्लाह, अल्लाह ताला मुबारक फरमाए, वाकई आपका रईमान अलाह की खास हिदायत की कारफरमाई है, अच्छा आप मासिक 'अरमुगान'  www.armughan.in  के पाठकों को कुछ पैगाम देंगे?
शकील: दो रोज पहले बदायूं में हजरत तकरीर कर रहे थे कि तमाम मुसलमानों को अल्लान दे दाइ अर्थात अल्लाह की और बुलाने वाला बनाया है, दाइ(दीन की दावत देने वाला) की हैसियत डाक्टर जैसी और जिसको दावते दीन दी जाए उसकी हैसियत मरीज (बीमार) की है अगर डाक्टर अपने मरीज के इलाज में कोताही करें और मरीज मरने लगें तो मरीज का गुस्सा होना बिल्कुल नेचुरल है, मगर डाक्टरों को अपने मरीज से निगाह नहीं फेरनी चाहिए, दावते दीन असल में मुहब्बत भरा काम हैं, यह डिबेट मुनाजरा नहीं, कि हारजीत की बात बनालें, यह तो नबवी दर्द के साथ अपने मदउ अर्थात जिसे दावत दी जानी है उसके लिए अजाब के खतरे को समझ कर कुढने और तडपने का अमल है, अगर सच्चे दर्द और तडप के साथ कोई रोने वाला हो, मुझ जैसे जलाली और गुस्सावर, कतल और गालियों पर आमादा दरिन्दे को जिसको कभी अपनी बीवी बच्चों पर प्यार न आया हो, उसको पिघला कर अल्लाह का बंदा और गुलाम बनाया जा सकता है, इमान कुबूल करने के बाद जैसे सुनिल जोशी गुसियारा दरिन्दा मर गया और मुहम्मद शकील एक कोमल दिल वाले इन्सान ने जन्म ले लिया, मेरे साथ  ऐसा हुआ है, असल में दर्द और खेरखाही की जरूरत है।

अहमद: वाकई बहुत गहरी बात आपने कही, बहुत बहुत शुक्रिया  जज़ाकल्लाह, आप खूब समझे, अस्सलामु अलैकुम
शकील: मैं नहीं समझा, एक रोने वाले ने समझा दिया, आपका बहुत बहुत शुक्रिया , वालैकुम सलाम
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"aapki amanat aapki sewa men" in English
 By
Muhammad Kaleem Siddiqui
Translation: Safia Iqbal


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Maulana Kaleem Siddiqui यादगार विडियो
Part-1
http://www.youtube.com/watch?v=UmNIaIjgq8Q&feature=mfu_in_order&list=UL
Part-2
http://www.youtube.com/watch?v=uBLctMHjhWo&feature=related
Part-3
http://ww.youtube.com/watch?v=b21jKsdIbU4
 

Thursday, June 7, 2012

इस्लाम आ चुका है आपके जीवन में Islam means


एक हिंदू भाई ने घोषित कर दिया कि इस्लाम हिंदू धर्म की छाया प्रति है।
आज कहना सबके लिए आसान हो गया है। इसीलिए कोई कुछ भी कह सकता है।
अगर कुछ साधारण सी बातों पर भी विचार कर लिया जाए तो उन्हें अपनी ग़लती आसानी से समझ में आ सकती है और अगर वे न समझें तब भी कम से कम दूसरों की समझ में तो आ ही जाएगी।

1. हिंदू धर्म की कोई एक सर्वमान्य परिभाषा आज तक तय नहीं है जबकि इस्लाम की परिभाषा तय है।

2. हिंदू भाई बहनों के लिए कर्तव्य और अकर्तव्य कुछ भी निश्चित नहीं है। एक आदमी अंडा तक नहीं छूता और अघोरी इंसान की लाश खाते हैं जबकि दोनों ही हिंदू हैं।
जबकि एक मुसलमान के लिए भोजन में हलाल हराम निश्चित है।

3. हिंदू मर्द औरत के लिए यह निश्चित नहीं है कि वे अपने शरीर को कितना ढकें ?, एक अपना शरीर ढकता है और दूसरा पूरा नंगा ही घूमता है।
जबकि मुस्लिम मर्द औरत के लिए यह निश्चित है कि वे अपने शरीर का कितना अंग ढकें ?

4. हिंदू के लिए उपासना करना अनिवार्य नहीं है बल्कि ईश्वर के अस्तित्व को नकारने के बाद भी लोग हिंदू कहलाते हैं।
जबकि मुसलमान के लिए इबादत करना अनिवार्य है और ईश्वर का इन्कार करने के बाद उसे वह मुस्लिम नहीं रह जाता।

5. केरल के हिंदू मंदिरों में आज भी देवदासियां रखी जाती हैं और औरतों द्वारा नाच गाना तो ख़ैर देश भर के हिंदू मंदिरों में होता है। इसे ईश्वर का समीप पहुंचने का माध्यम माना जाता है।
जबकि मस्जिदों में औरतों का तो क्या मर्दों का भी नाचना गाना गुनाह और हराम है और इसे ईश्वर से दूर करने वाला माना जाता है।

6. हिंदू धर्म ब्याज लेने से नहीं रोकता जिसकी वजह से आज ग़रीब किसान मज़दूर लाखों की तादाद में मर रहे हैं।
जबकि इस्लाम में ब्याज लेना हराम है

7. हिंदू धर्म में दान देना अनिवार्य नहीं है। जो देना चाहे, दे और जो न देना चाहे तो वह न दे और कोई चाहे तो दान में विश्वास ही न रखे।
जबकि इस्लाम में धनवान पर अनिवार्य है कि वह हर साल ज़रूरतमंद ग़रीबों को अपने माल में से 2.5 प्रतिशत ज़कात अनिवार्य रूप से दे। इसके अलावा फ़ितरा आदि देने के लिए भी इस्लाम में व्यवस्था की गई है।

8. हिंदू धर्म में ‘ब्राह्मणों को दान‘ देने की ज़बर्दस्त प्रेरणा दी गई है।
जबकि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह व्यवस्था दी है कि हमारी नस्ल में से किसी को भी सदक़ा-ज़कात मत देना। दूसरे ग़रीबों को देना। हमारे लिए सदक़ा-ज़कात लेना हराम है।

9. सनातनी हिंदू हों या आर्य समाजी, दोनों ही मानते हैं कि वेद के अनुसार पति की मौत के बाद विधवा अपना दूसरा विवाह नहीं कर सकती।
जबकि इस्लाम में विधवा को अपना दूसरा विवाह करने का अधिकार है बल्कि इसे अच्छा समझा गया है कि वह दोबारा विवाह कर ले।

10. सनातनी हिंदू हों या आर्य समाजी, दोनों ही यज्ञ करने को बहुत बड़ा पुण्य मानते हैं।
जबकि इस्लाम में यह पाप माना गया है कि आग में खाने पीने की चीज़ें जला दी जाएं। खाने पीने की चीज़ें या तो ख़ुद खाओ या फिर दूसरे ज़रूरतमंदों को दे दो। ऐसा कहा गया है।

11. सनातनी हिंदू और आर्य समाजी, दोनों ही वर्ण व्यवस्था को मानते हैं और वर्णों की ऊंच नीच और छूत छात को भी मानते हैं।
जबकि इस्लाम में न वर्ण व्यवस्था है और न ही छूत छात। इस्लाम सब इंसानों को बराबर मानता है और आजकल हिंदुस्तानी क़ानून भी यही कहता है और हिंदू भाई भी इसी इस्लामी विचार को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं।

12. सनातनी हिंदू और आर्य समाजी, दोनों ही वैदिक धर्म की परंपरा का पालन करते हुए चोटी रखते हैं और जनेऊ पहनते हैं।
जबकि इस्लाम में न तो चोटी है और न ही जनेऊ।

13. सनातनी हिंदू और आर्य समाजी, दोनों ही वेद के अनुसार 16 संस्कार को मानते हैं, जिनमें एक विवाह भी है। इस संस्कार के अनुसार पत्नी अपने पति के मरने के बाद भी उसी की पत्नी रहती है और उससे बंधी रहती है। पति तो पत्नी का परित्याग कर सकता है लेकिन पत्नी उसे त्याग नहीं सकती।

जबकि इस्लाम में निकाह एक क़रार है जो पति की मौत से या तलाक़ से टूट जाता है और इसके बाद औरत उस मर्द की पत्नी नहीं रह जाती। वह अपनी मर्ज़ी से अपना विवाह फिर से कर सकती है। इस्लाम में पति तलाक़ दे सकता है तो पत्नी के लिए भी पति से मुक्ति के लिए ख़ुलअ की व्यवस्था की गई है।
अब हो यह रहा है कि सनातनी और आर्य समाजी, दोनों ही ख़ुद वेद की व्यवस्था से हटकर इस्लामी व्यवस्था को फ़ोलो कर रहे हैं। विधवाओं के पुनर्विवाह वे धड़ल्ले से कर रहे हैं। जब मुसलमानों ने अपने निकाह को विवाह की तरह संस्कार नहीं बनाया तो फिर हिंदू भाई अपने संस्कार को इस्लामी निकाह की तरह क़रार क्यों और किस आधार पर बना रहे हैं ?
जिस व्यवस्था पर विश्वास है, उस पर चलने के बजाय वे इस्लामी व्यवस्था का अनुकरण क्यों कर रहे हैं ?

14. विवाह को संस्कार मानने का नतीजा यह हुआ कि विधवा औरतों को हज़ारों साल तक बड़ी बेरहमी से जलाया जाता रहा। यहां तक कि इस देश में मुसलमान और ईसाई आए और उनके प्रभाव और हस्तक्षेप से हिंदुओं की चेतना जागी कि सती प्रथा के नाम पर विधवा को जलाना धर्म नहीं बल्कि अधर्म है और तब उन्होंने अपने धर्म को उनकी छाया प्रति बना लिया और लगातार बनाते जा रहे हैं।

15. विवाह की तरह ही गर्भाधान भी एक हिंदू संस्कार है। जब किसी पति को गर्भाधान करना होता है या अपनी पत्नि से किसी अन्य पुरूष का नियोग करवाना होता है तो वह 4 पंडितों को बुलवाता है और वे चारों पंडित पूरे दिन बैठकर वेदमंत्र पढ़ते हैं। उसके घर में खाते पीते हैं। उसके घर में यज्ञ करते हैं। उस यज्ञ से बचे हुए घी को मलकर औरत नहाती है और फिर पूरी बस्ती में घूम घूम कर बड़े बूढ़ों को बताती है कि आज उसके साथ क्या होने वाला है ?
बड़े बूढ़े अपनी अनुमति और आशीर्वाद देते हैं, तब जाकर पति महाशय या कोई अन्य पुरूष उस औरत के साथ वेद के अनुसार सहवास करता है।
जबकि इस्लाम में गर्भाधान संस्कार ही नहीं है और पत्नि को किसी ग़ैर मर्द के साथ सोने के लिए बाध्य करना बहुत बड़ा जुर्म और गुनाह है।
मुसलमान पति पत्नी जब चाहे सहवास कर सकते हैं। शोर पुकार मचाकर लोगों को इसकी इत्तिला देना इस्लाम में असभ्यता और पाप है।
आजकल हिंदू भाई भी इसी रीति से अपनी पत्नियों को गर्भवती कर रहे हैं क्योंकि यही रीति नेचुरल और आसान है।
धर्म सदा ही नेचुरल और आसान होता है।
मुश्किल में डालने वाली चीज़ें ख़ुद ही फ़ेल हो जाती हैं। लोग उनका पालन करना चाहें तो भी नहीं कर पाते। शायद ही आजकल कोई गर्भाधान संस्कार करता हो। इस्लामी रीति से पैदा होने के बावजूद इस्लाम पर नुक्ताचीनी करना केवल अहसानफ़रामोशी है। जिसका कारण अज्ञानता है।

16. सनातनी हिंदू और आर्य समाजी, दोनों के नज़्दीक धर्म यह है कि पत्नि से संभोग तब किया जाए जबकि उससे संतान पैदा करने की इच्छा हो। इसके बिना संभोग करने वाला वासनाजीवी और पतित-पापी माना जाता है।
जबकि इस्लाम में इस तरह की कोई पाबंदी नहीं है। इस्लामी व्यवस्था यही है कि पति पत्नी जब चाहें तब आनंद मनाएं। उन्हें आनंदित देखकर ईश्वर प्रसन्न होता है। आजकल हिंदू भाई भी इसी इस्लामी व्यवस्था पर चल रहे हैं।

18. शंकराचार्य जी के अनुसार हरेक वर्ण और लिंग के लिए वेद को पढ़ने और पढ़ाने की आज़ादी नहीं है।
जबकि क़ुरआन सबके लिए है। किसी भी रंगो-नस्ल के नर नारी इसे जब चाहें तब पढ़ सकते हैं।

19.  आर्यसमाजी और सनातनी महिलाओं को मासिक धर्म में शास्तों के अनुसार अपवित्र समझते थे,,,  इस्‍लाम की शिक्षाओं से प्रेरित होकर उन्‍हें अब उतना अपवित्र नहीं मानते,  बल्कि आगे बढकर उनके साथ स्‍कूल आफिस आदि में साथ खाना पीना हाथ मिलाने में कोई बुराई नहीं समझते
 इस्‍लामकि व्‍यवस्‍था में आदम की ब‍ेटियों को इन दिनों सेक्‍स की तकलीफ से बचाने के साथ ही नमाज एवं रोजे में छूट भी मिली है,,, हमें मार्ग दर्शन के लिए  उनके साथ उठने बैठने चुमने की हदीसें मौजूद हैं

20. इसी के साथ हिंदू धर्म अर्थात वैदिक धर्म में चार आश्रम भी पाए जाते हैं।
ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम, सन्यास आश्रम
अति संक्षेप में 8वें वर्ष बच्चे का उपनयन संस्कार करके उसे वेद पढ़ने के लिए गुरूकुल भेज दिया जाए और बच्चा 25 वर्ष तक वीर्य की रक्षा करे। इसे ब्रह्मचर्य आश्रम कहते हैं। लेकिन हमारे शहर का संस्कृत महाविद्यालय ख़ाली पड़ा है। शहर के हिंदू उसमें अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजते ही नहीं जबकि शहर के कॉन्वेंट स्कूल हिंदू बच्चों से भरे हुए हैं। जहां सह शिक्षा होती है और जहां वीर्य रक्षा संभव ही नहीं है, जहां वेद पढ़ाए ही नहीं जाते,
जहां धर्म नष्ट होता है, हिंदू भाई अपने बच्चों को वहां क्यों भेजते हैं ?
ख़ैर हमारा कहना यह है कि आजकल हिंदू भाई ब्रह्मचर्य आश्रम का पालन नहीं करते और न ही वे 50 वर्ष का होने पर वानप्रस्थ आश्रम का पालन करते हुए जंगल जाते हैं और सन्यास आश्रम भी नष्ट हो चुका है।
आज हिंदू धर्म के चारों आश्रम नष्ट हो चुके हैं और हिंदू भाई अब अपने घरों में आश्रम विहीन वैसे ही रहते हैं जैसे कि मुसलमान रहते हैं क्योंकि इस्लाम में तो ये चारों आश्रम होते ही नहीं।

ज़रा सोचिए कि अगर इस्लाम हिंदू धर्म की छाया प्रति होता तो उसमें भी वही सब होता जो कि हिंदू धर्म में हज़ारों साल से चला आ रहा है और उन बातों से आज तक हिंदू जनमानस पूरी तरह मुक्ति न पा सका।

चार आश्रम, 16 संस्कार, विधवा विवाह निषेध, नियोग, वर्ण-व्यवस्था, छूत छात, ब्याज, शूद्र तिरस्कार, देवदासी प्रथा, ईश्वर के मंदिर में नाच गाना, चोटी, जनेऊ और ब्राह्मण को दान आदि जैसी बातें जो कि हिंदू धर्म अर्थात वैदिक धर्म में पाई जाती हैं, उन सबसे इस्लाम आखि़र कैसे बच गया ?
इन बातों के बिना इस्लाम को हिंदू धर्म की छाया प्रति कैसे कहा जा सकता है ?

हक़ीक़त यह है कि इस्लाम किसी अन्य धर्म की छाया प्रति नहीं है बल्कि ख़ुद ही मूल धर्म है और पहले से मौजूद ग्रंथों में धर्म के नाम पर जो भी अच्छी बातें मिलती हैं वे उसके अवषेश और यादगार हैं, जिन्हें देखकर लोग यह पहचान सकते हैं कि इस्लाम सनातन काल है, हमेशा से यही मानव जाति का धर्म है।

ईश्वर के बहुत से नाम हैं। हरेक ज़बान में उसके नाम बहुत से हैं। उसके बहुत से नामों में से एक नाम ‘अल्लाह‘ है। यह नाम क़ुरआन में भी है और बाइबिल में भी और संस्कृत ग्रंथों में भी।ईश्वर का निज नाम यही है लेकिन उसके निज नाम को ही भुला दिया गया। ईष्वर के नाम को ही नहीं बल्कि यह भी भुला दिया गया कि सब एक ही पिता की संतान हैं। सब बराबर हैं। जन्म से कोई नीच और अछूत है ही नहीं। ऐसा तब हुआ जब आदम और नूह (अ.) को भुला दिया गया जिनका नाम संस्कृत ग्रंथों में जगह जगह आया है। इन्हें यहूदी, ईसाई और मुसलमान सभी पहचानते हैं। हिंदू भाई इन्हें ऋषि कहते हैं और मुसलमान इन्हें नबी कहते हैं। इनके अलावा भी हज़ारों ऋषि-नबी आए और हर ज़माने में आए और हर क़ौम में आए। सबने लोगों को यही बताया कि जिसने तुम्हें पैदा किया है तुम्हारा भला बुरा बस उसी एक के हाथ में है, तुम सब उसी की आज्ञा का पालन करो। ऋषियों और नबियों ने मानव जाति को हरेक काल में एक ही धर्म की शिक्षा दी। । वे सिखाते रहे और लोग भूलते रहे। आखि़रकार पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस दुनिया में आए और फिर उसी भूले हुए धर्म को याद दिलाया और ऐसे याद दिलाया कि अब किसी के लिए भूलना मुमकिन ही न रहा।

जब दबंग लोगों ने कमज़ोरों का शोषण करने के लिए धर्म में बहुत सी अन्यायपूर्ण बातें निकाल लीं, तब ईश्वर ने क़ुरआन के रूप में अपनी वाणी का अवतरण पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अन्तःकरण पर किया और पैग़म्बर साहब ने धर्म को उसके वास्तविक रूप में स्थापित कर दिया। जिसे देखकर लोगों ने ऊंच नीच, छूतछात और सती प्रथा जैसी रूढ़ियों को छोड़ दिया। बहुतों ने इस्लाम कहकर इस्लाम का पालन करना आरंभ कर दिया और उनसे भी ज़्यादा वे लोग हैं जिन्होंने इस्लाम के रीति रिवाज तो अपना लिए लेकिन इस्लाम का नाम लिए बग़ैर। इन्होंने इस्लामी उसूलों को अपनाने का एक और तरीक़ा निकाला। इन्होंने यह किया कि इस्लामी उसूलों को इन्होंने अपने ग्रंथों में ढूंढना शुरू किया जो कि मिलने ही थे। अब इन्होंने उन्हें मानना शुरू कर दिया और दिल को समझाया कि हम तो अपने ही धर्म पर चल रहे हैं।
ये लोग हिंदू धर्म के प्रवक्ता बनकर घूमते हैं। ऐसे लोगों को आप आराम से पहचान सकते हैं। ये वे लोग हैं जिनके सिरों पर आपको न तो चोटी नज़र आएगी और न ही इनके बदन पर जनेऊ और धोती। न तो ये बचपन में ये गुरूकुल गए थे और न ही 50 वर्ष का होने पर ये जंगल जाते हैं। हरेक जाति के आदमी से ये हाथ मिलाते हैं। फिर भी ये ख़ुद को वैदिक धर्म का पालनकर्ता बताते हैं।
ख़ुद मुसलमान की छाया प्रति बनने की कोशिश कर रहे हैं और कोई इनकी चालाकी को न भांप ले, इसके लिए ये एक इल्ज़ाम इस्लाम पर ही लगा देते हैं कि ‘इस्लाम तो हिंदू धर्म की छायाप्रति है‘
ये लोग समय के साथ अपने संस्कार और अपने सिद्धांत बदलने लगातार बदलते जा रहे हैं और वह समय अब क़रीब ही है जब ये लोग इस्लाम को मानेंगे और तब उसे इस्लाम कहकर ही मानेंगे।
तब तक ये लोग यह भी जान चुके होंगे कि ईश्वर का धर्म सदा से एक ही रहा है। ‘
एक ईश्वर की आज्ञा का पालन करना‘ ही मनुष्य का सनातन धर्म है। अरबी में इसी को इस्लाम कहते हैं। इस्लाम का अर्थ है ‘ईश्वर का आज्ञापालन।‘
इसके अलावा मनुष्य का धर्म कुछ और हो भी कैसे सकता है ?
वर्ण व्यवस्था जा चुकी है और इस्लाम आ चुका है।
जिसे जानना हो, वह जान ले !


Wednesday, June 6, 2012

सही बुखारी की हैज़ (माहवारी , M.C.) के सम्‍बन्‍ध में हदीसें

''किताबुल हैज''  सही बुखारी की हैज़ के सम्‍बन्‍ध में हदीसें अर्थात हैज (माहवारी , M.C. ) का बयान, जिसे मासिक धर्म, रजोधर्म या माहवारी (Menstural Cycle or MC)  रज्सवला (रजस्वला) भी कहते हैं।

Hindi "Kitabul Haiz"  Online

http://www.mediafire.com/view/?4qb5qfhi22kd8kc



in English  
Sahih Bukhari Book 06.  Menstrual Periods


example:

Sahih Bukhari Volume 001, Book 006, Hadith Number 293.

Sahih Bukhari Book 06. Menstrual Periods
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Narated By Al-Qasim : 'Aisha said, "We set out with the sole intention of performing Hajj and when we reached Sarif, (a place six miles from Mecca) I got my menses. Allah's Apostle came to me while I was weeping. He said 'What is the matter with you? Have you got your menses?' I replied, 'Yes.' He said, 'This is a thing which Allah has ordained for the daughters of Adam. So do what all the pilgrims do with the exception of the Taw-af (Circumambulation) round the Ka'ba." 'Aisha added, "Allah's Apostle sacrificed cows on behalf of his wives."



Quran:
और वे तुमसे मासिक-धर्म के विषय में पूछते है। कहो, "वह एक तकलीफ़ और गन्दगी की चीज़ है। अतः मासिक-धर्म के दिनों में स्त्रियों से अलग रहो और उनके पास न जाओ, जबतक कि वे पाक-साफ़ न हो जाएँ। फिर जब वे भली-भाँति पाक-साफ़ हो जाए, तो जिस प्रकार अल्लाह ने तुम्हें बताया है, उनके पास आओ। निस्संदेह अल्लाह बहुत तौबा करने वालों को पसन्द करता है और वह उन्हें पसन्द करता है जो स्वच्छता को पसन्द करते है॥ Quran 2:222॥
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''किताबुल हैज'' में दी गयी हदीसें इस बारें में तालीम दे रही हैं कि पत्नि के साथ इन दिनों सेक्‍स नहीं कर सकते,, अलबत्‍ता उठना बैठना चूमना आदि  किया जा सकता है

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http://www.mediafire.com/view/?4qb5qfhi22kd8kc

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MukammaL sahi Bukhari
.Part 1 part in 3   ,
Part-  2sara in 3,
 Part-3 in 3