Wednesday, August 22, 2012

मास्टर मुहम्मद आमिर (बलबीर सिंह,पूर्व शिवसेना युवा शाखा अध्‍यक्ष) से एक मुलाकात interview shiv sainik convert to islam


 बाबरी मस्जिद पर पहली कुदाल चलाने वाले का इन्‍टरव्‍यू

अहमद अव्वाहः अस्सलामु अलैकुम
मास्टर मुहम्मद आमिरः व अलैकुमु अस्सलाम

अहमदः मास्टर साहब। एक अरसे से अबी (मौलाना कलीम सिद्दीकी) का हुक्म था कि ‘अरमुगान’(मासिक पत्रिका) के लिए आप से इण्टरव्यू लूँ, अच्छा हुआ आप खुद ही तशरीफ ले आए, आपसे कुछ बातें करनी हैं।
आमिरः अहमद भाई! आपने मेरे दिल की बात कही। जब से ‘अरमुगान’ में नव-मुस्लिमों के इण्टरव्यू का सिलसिला चल रहा है। मेरी ख्वाहिश(इच्छा) थी कि मेरे कुबूले इस्लाम का हाल उस में छपे। इस लिए नहीं कि मेरा नाम ‘अरमुगान’ में आये बल्कि इस लिए कि दावत का काम करने वालों को हौसला बढे और दुनिया के सामने करीम व हादी (कृपालू व सण्मार्ग-प्रदर्शक) रब की करम फरमाई की एक मिसाल सामने आये और दावत का काम करने वालों को यह मालूम हो कि जब ऐसे कमीने इन्सान और अपने मुबारक घर को ढाने वाले को अल्लाह तआला हिदायत (पथ-प्रदर्शन, निर्देश) से नवाज़ सकते हैं तो आम शरीफ और भोले भाले लोगों के लिए हिदायत (पथ-प्रदर्शन) के कैसे मवाके (अवसर) हैं।

अहमदः आप अपना खानदानी तआरुफ(परिचय) कराएँ।
आमिरः  मेरा तअल्लुक सूबा हरियाणा के पानीपत जिले के एक गाँव से है, मेरी पैदाईश 6 दिसम्बर 1970 को एक राजपूत घराने में हुयी, मेरे वालिद साहब (पिताजी) एक अच्छे किसान होने के साथ-साथ एक प्राइमरी स्कूल में हेडमास्टर थे। वह बहुत अच्छे इन्सान थे और इन्सानियत दोस्ती उनका मज़हब था। किसी पर भी किसी तरह के जुल्म से उन्हें सख्त चिढ थी। सन 47 के फसादात उन्होंने अपनी आँखों से देखे थे। वह बहुत कर्ब(तकलीफ) के साथ उनका जिक्र करते थे और मुसलमानों के कत्लेआम को मुल्क पर बडा दाग समझते थे। बचे-खुचे मुसलमानों को बसाने में वह बहुत मदद करते थे। मेरा पैदाईशी नाम बलबीर सिंह था। अपने गाँव के स्कूल में मैं ने हाइस्कूल करके इंटरमीडीएट में, पानीपत में दाखिला लिया। पानीपत शायद मुम्बई के बाद शिवसेना का सबसे मजबूत गढ है। खास तौर पर जवान तब्का और स्कूल के लोग शिव सेना में बहुत लगे हुये हैं। वहाँ मेरी दोस्ती कुछ शिवसैनिकों से हो गयी और मैंने भी पानीपत शाखा में नाम लिखा लिया। पानीपत के इतिहास के हवाले से वहाँ नौजवानों में मुसलमानों खास तौर पर और दूसरे मुसलमान बादशाहों के खिलाफ बडी नफरत घोली जा रही थी। मेरे वालिद साहब को मेरे बारे में मालूम हुआ कि मैं शिवसेना में शामिल हो गया हूँ तो उन्होंने मुझे बहुत समझाया, उन्होंने मुझे इतिहास के हवाले से समझाने की कोशिश की और उन्होंने ‘बाबर’ खास तौर पर औरंगजेब के हुकूमत के इन्साफ और गैरमुस्लिमों के साथ उनके उमदा सुलूक (अच्छा व्यवहार) के किस्से सुनाये और मुझे बताने की कोशिश की कि अंग्रेजों ने गलत तारीख(इतिहास) हमें लडाने के लिये और देश को कमजोर करने के लिये घड कर तैयार की है, उन्होंने 1947 के ज़ुल्म और कत्ल गारत के किस्सों के हवाले से मुझे शिव सेना से बाज (दूर) रखने की कोशिश की, मगर मेरी समझ में कुछ न आया।अहमदः आपने फुलत के क्याम(संस्थापन) के दौरान बाबरी मस्जिद की शहादत में अपनी शिर्कत का किस्सा सुनाया था, जरा अब दोबारा तफसील से सुनाईये। आमिरः वह किस्सा इस तरह है कि 1990 में आडवाणी जी की रथ-यात्रा में मुझे पानीपत के प्रोग्राम की खासी बडी जिम्मेदारी सोंपी गयी, रथ यात्रा में उन जिम्मेदारियों ने हमारे रोयें-रोयें में मुस्लिम नफरत की आग भर दी। मैं ने शिवा जी की सौगंध खायी कि कोई कुछ भी करे मैं खुद अकेले जाकर राम मन्दिर पर से उस जालिमाना ढांचे को मस्मार (ध्वस्त) कर दूंगा, उस यात्रा में मेरी कारकर्दगी(कर्मण्यता, प्रफॉर्मेन्स) की वजह से मुझे शिवसेना यूथ विंग का सदर(अध्यक्ष) बना दिया गया, मैं अपनी नौजवान टीम को लेकर 30 अक्तूबर को अयोध्या गया, रास्ते में हमें पुलिस ने फेजाबाद में रोक दिया, मैं और कुछ साथी किसी तरह बच-बचाकर फिर भी अयोध्या पहुँचे मगर पहुँचने में देर हो गयी और उस से पहले गोली चल चुकी थी और बहुत कोशिश के बावजूद मैं बाबरी मस्जिद के पास न पहुँच सका मेरी नफरत की आग उससे और भडकी मैं अपने साथियों से बार-बार कहता था। इस जीवन से मर जाना बहतर है। राम के देश में अरब लुटेरों की वजह से राम के भगतों पर राम-जन्म भूमि पर गोली चला दी जाये, यह कैसा अन्याय और जुल्म है, मुझे बहुत गुस्सा था, कभी ख्याल होता था कि खुदकशी कर लूँ कभी दिल में आता था कि लखनऊ जाकर मुलायम सिंह के अपने हाथ से गोली मार दूँ, मुल्क में फसादात चलते रहे और मैं उस दिन की वजह से बेचैन था कि मुझे मौका मिले और मैं बाबरी मस्जिद को अपने हाथों मसमार(ध्वस्त) करूं। एक-एक दिन करके वह मनहूस दिन करीब आया जिसे मैं उस वक्त खुशी का दिन समझता था। मैं अपने कुछ जज्बाती साथियों के साथ एक दिसम्बर 1992 को पहले अयोध्या पहुँचा, मरे साथ सोनीपत के पास एक जाटों के गाँव का एक नौजवान योगेन्द्रपाल भी था जो मेरा सबसे करीबी दोस्त था। उसके वालिद एक बडे ज़मींदार थे और वह भी बडे इन्सान दोस्त आदमी थे, उन्होंने अपने इकलौते बेटे को अयोध्या जाने से बहुत रोका। उस के ताऊ भी बहुत बिगडे। मगर वह नहीं रूका। हम लोग 6 दिसम्बर से पहले की रात में बाबरी मस्जिद के बिलकुल करीब पहुँच गये और हमने बाबरी मस्जिद के सामने कुछ मुसलमानों के घरों की छतों पर रात गुजशरी। मुझे बार-बार ख्याल होता था कि कहीं 30 अक्तूबर की तरह आज भी हम इस शुभ काम से महरूम (वंचित) न रह जाएँ। कई बार ख्याल आया कि लीडर न जाने क्या करें। हमें खुद ही कारसेवा शुरू करनी चाहिए। मगर हमारे संचलालक ने हमें रोका और डिसिप्लिन(अनुशासन) बनाये रखने को कहा। उमा भारती ने भाषण दिया और कारसेवकों में आग भर दी। मैं भाषण सुनते-सुनते मकान की छत से उतरकर कुदाल लेकर बाबरी मस्जिद की छत पर चढ़ गया। योगेंद्र भी मेरे साथ था। जैसे ही उमा भारती ने नारा लगाया ‘‘एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड दो’’। बस मेरी मुरादों (इच्छाओं) के पूरा होने का वक्त आ गया और मैंने बीच वाले गुंबद पर कुदाल चलाई और भगवान राम की जय के ज़ोर-ज़ोर से नारे लगाये। देखते ही देखते मस्जिद मस्मार हो गयी। मस्जिद के गिरने से पहले हम लोग नीचे उतर आये। हम लोग बडे खुश थे। रामलला के लगाये जाने के बाद उसके सामने माथा टेककर हम लोग खुशी से घर आये और बाबरी मस्जिद की दो ईंटें अपने साथ लाये। जो मैं ने खुशी-खुशी पानीपत के साथियों को दिखायीं। वह लोग मेरी पीठ ठोंकते थे। शिवसेना के दफ्तर में वे ईंटे रख दी गयीं और एक जलसा किया गया और सब लोगों ने भाषण में फखर (गर्व) से मेरा जिक्र(उल्लेख) किया कि हमें गर्व है कि पानीपत के नौजवान शिवसैनिक ने सब से पहले राम भक्ती में कुदाल चलायी। मैंने घर भी खुशी से जाकर बताया। मेरे पिताजी बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने गहरे दुख का इजहार किया और मुझ से साफ कह दिया कि, अब इस घर में तू और मैं दोनों नहीं रह सकते, अगर तू रहेगा तो मै घर छोडकर चला जाऊँगा, नहीं तो तू हमारे घर से चला जा। मालिक के घर को ढाने वाले की मैं सूरत भी देखना नहीं चाहता। मेरी मौत तक तू मुझे कभी सूरत न दिखाना। मुझे इस का अन्दाज़ा नहीं था। मैं ने उनको समझाने की कोशिश की और पानीपत में जो सम्मान मुझे इस कारनामें पर मिला था वह बताने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि यह देश ऐसे ज़ालिमों की वजह से बर्बाद हो जायेगा और गुस्से में घर से जाने लगे। मैं ने मौके को भाँपा और कहा ‘‘आप घर से न जाएँ, मैं खुद इस घर में नहीं रहना चाहता, जहाँ राम मन्दिर भक्त को ज़ालिम समझा जाता हो’’ और मैं घर छोडकर आ गया और पानीपत में रहने लगा’’

अहमदः अपने कुबूले इस्लाम के बारे में बताइये।
आमिरः प्यारे भाई अहमद। मेरे अल्लाह कैसे करीम (कृपालू) हैं कि जुल्म और शिर्क (अनेकश्वरवाद) के अन्धेरे से मुझे न चाहते हुए इस्लाम के नूर और हिदायत से माला-माल किया। मुझ जैसे ज़ालिम को जिसने उसका मुकद्दस (पवित्र) घर शहीद किया। हिदायत से नवाज़ा। हुआ यह कि मेरे दोस्त योगेंद्र ने बाबरी मस्जिद की दो ईंटें लाकर रखीं और माईक से एलान किया कि राम मन्दिर पर बने ज़ालिमाना ढाँचे की ईंटें सौभाग्य से हमारे तकदीर में आ गयी हैं। सब हिन्दू भाई आकर उन पर (मुत्रादान) पेशाब करें। फिर किया था, भीड लग गयी। हर कोई आता था और उन ईंटों पर हिकारत (तुच्छता) से पेशाब करता था। मस्जिद के मालिक को अपनी शान भी दिखानी थी। चार पाँच रोज़ के बाद योगेंद्र का दिमाग खराब हो गया। पागल होकर वह नंगा रहने लगा। सारे कपडे उतारता था। वह इज्जत वाले ज़मींदार चैधरी का इकलौता बेटा था। उस पागलपन में वह बार-बार अपनी माँ के कपडे उतारकर उस से मुँह काला करने को कहता। बार-बार इस गंदे जज्बे से उस को लिपट जाता। उस के वालिद बहुत परेशान हुए। बहुत से सियानों और मौलाना लोगों को दिखाया। बार-बार मालिक से माफी मांगते। दान करते, मगर उस की हालत और बिगडती थी। एक रोज़ वह बाहर गए, तो उसने अपनी माँ के साथ गंदी हरकत करनी चाही। उस ने शौर मचा दिया। मौहल्ले वाले आये तो जान बची। उस को जन्जीरों में बाँध दिया गया। योगेंद्र के वालिद इज्जत वाले आदमी थे, उन्होंने उसको गोली मारने का इरादा कर लिया। किसी ने बताया कि यहाँ सोनीपत में ईदगाह में एक मदरसा है। वहाँ बडे मौलाना साहब आते हैं। आप एक दफा उन से और मिल लें। अगर वहाँ कोई हल न हो तो फिर जो चाहे करना। सोनीपत गये तो मालूम हुआ कि मौलाना साहब तो यहाँ पहली तारीख को आते हैं। और परसों पहली जनवरी को आकर दो तारीख की सुबह में जा चुके हैं। चौधरी साहब बहुत मायूस हुए और किसी झाडफूंक करने वाले को मालूम किया। मालूम हुआ कि मदरसे के जिम्मेदार कारी साहब ये काम कर देते हैं, मगर वह भी मौलाना साहब के साथ सफर पर निकल गये हैं। ईदगाह के एक दुकानदार ने उन्हें मौलाना का दिल्ली का पता दिया और यह भी बताया कि परसों बुध को हजरत मौलाना ने (बवाना, दिल्ली) में उनके यहाँ आने का वादा किया है। वह लडके को जन्जीर में बाँधकर बवाना के इमाम साहब के पास ले गए वह आप के वालिद साहब के मुरीद(धर्म-शिष्य) थे और बहुत ज़माने से उन से बवाना के लिये तारीख लेना चाहते थे, मौलाना साहब हर बार उन से माजरत (खेद) कर रहे थे। इस बार उन्होंने इधर के सफर में दो रोज़ के बाद जोहर (दोपहर) की नमाज़ पढने का वादा कर लिया था। बवाना के इमाम साहब ने बताया कि हालात के खराब होने की वजह से 6 दिसम्बर से पहले हरियाणा के बहुत से इमाम और मुदर्रीसीन (शिक्षक) यहाँ से यु. पी. अपने घरों को चले गए थे और बाज(बहुत से) उन में से एक महीने तक नहीं आये इस लिए मौलाना साहब ने पहली तारीख को इस मौजु (विषय) पर तकरीर की और बडी जोर देकर यह बात कही कि अगर मुसलमानों ने इन गैरमुस्लिम भाईयों को दावत दी होती और इस्लाम और अल्लाह और मस्जिद का परिचय कराया होता तो ऐसे वाकिआत पेश न आते। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद की शहादत के बयक वास्ता हम मुसलमान जिम्‍मेदार हैं और अगर अब भी हमें होश आ जाये और हम दावत का हक अदा करने लगें तो मस्जिद गिराने वाले मस्जिद बनाने और उन को आबाद करने वाले बन सकते हैं। ऐसे मौके पर हमारे आका ‘‘अल्लाहुम्मा अहद कोमी फअन्नाहुम ला यालमून’’ (ऐ अल्लाह मेरी कौम को हिदायत दे, इस लिए कि ये लोग जानते नहीं) फरमाया करते थे। योगेंद्र के वालिद चैधरी रघुबीर सिंह जब बवाना के इमाम (जिन का नाम शायद बशीर अहमद था) के पास पहुंचे तो उन पर उस वक्त अपने शेख (गुरू) की तकरीर का बडा असर था। उन्होंने चौधरी साहब से कहा कि मैं झाड फूँक का काम करता था। मगर अब हमारे हजरत ने हमें इस काम से रोक दिया। क्योंकि इस पेशे में झूठ और औरतों से इख्तेलात (मेल मिलाप) बहुत होता है और इस लडके पर कोई असर या जादू वगैरा नहीं बल्कि मालिक का अजाब (प्रकोप) है। आप के लिए एक मौका है। हमारे बडे हजरत साहब परसों बुध के रोज़ दोपहर को यहाँ आ रहे हैं। आप उनके सामने बात रखें आप का बेटा हमें उम्मीद है कि ठीक हो जायेगा मगर आप को एक काम करना पडेगा। वह यह कि अगर आप का बेटा ठीक हो जाए तो ईमानवाला बनना पडेगा। चौधरी साहब ने कहा ‘‘मेरा बेटा ठीक हो जाये तो मैं सब काम करने को तैयार हूँ’’। तीसरे रोज बुध था। चौधरी रघुबीर साहब योगेन्द्र को लेकर सुबह 8 बजे बवाना पहुँच गये। दोपहर को जोहर से पहले मौलाना साहब आये। योगेन्द्र जन्जीर में बंधा नंग-धडंग खडा था। चैधरी साहब रोते हुए मौलाना साहब के कदमों में गिर गए और बोले कि, मौलाना साहब मैंने इस कमीने को बहुत रोका मगर पानीपत के एक ओत के चक्कर में आ गया। मौलाना साहब मुझे क्षमा करा दीजिये मेरे घर को बचा लिजिए। मौलाना साहब ने सख्ती से उन्हें सर उठाने के लिए कहा और पूरा वाकिआ(घटना) सुना। उन्होंने चैधरी साहब से कहा, सारे सन्सार के चलाने वाले सर्व-शक्तिमान (कादिरे मुतलक) खुदा का घर ढाकर इन्होंने ऐसा बडा पाप किया है कि अगर वह मालिक सारे सन्सार को खत्म कर दे तो ठीक हैं, यह तो बहुत कम है कि इस अकेले पर पडी है। हम भी उस मालिक के बंदे हैं और एक तरह से इस बडे घन्घोर पाप में हम भी कुसूरवार हैं। कि हमने मस्जिद को शहीद करने वालों को समझाने का हक अदा नहीं किया। अब हमारे बस में कुछ भी नहीं है। बस यह है कि आप भी और हम भी उस मालिक के सामने गिडगिडाएँ और क्षमा माँगें और हम भी माफी माँगे। मौलाना साहब ने कहा, जब तक हम मस्जिद में प्रोग्राम से फारिग (निवृत्त) हों आप अपने ध्यान को मालिक की तरफ लगाकर सच्चे दिल से माफी और प्रार्थना करें कि मालिक मेरी मुश्किल को आपके अलावा कोई नहीं हटा सकता। चौधरी साहब फिर मौलाना साहब के कदमों में गिर गये और बोले, जी मैं इस लायक होता तो यह हद क्यों देखता? आप मालिक के करीब हैं। आप ही कुछ करें। मौलाना साहब ने उनसे कहा, आप मेरे पास इलाज के लिए आये हैं। अब जो इलाज में बता रहा हूँ। वह आपको करना चाहिये। वह राजी हो गये। मौलाना साहब मस्जिद में गये नमाज़ पढ़ी, थोडी देर तकरीर (भाषण) की और दुआ की। मौलाना साहब ने सभी लोगों से चौधरी साहब के लिए दुआ को कहा, प्रोग्राम के बाद मस्जिद में नाश्ता हुआ, नाश्ते से फारिग होकर मसिजद से बाहर निकले तो मालिक का करम कि योगेंद्र ने अपने बाप की पगडी उतारकर अपने नंगे जिस्म पर लपेट ली थी और ठीक-ठाक अपने वालिद से बात कर रहा था। सब लोग बहुत खुश हुए। बवाना के इमाम साहब तो बहुत खुश हुए। उन्होंने चौधरी साहब को वादा याद दिलाया और इस से डराया भी कि जिस मालिक ने इस को अच्छा किया है अगर तुम वादे के मुताबिक ईमान नहीं लाएँ तो फिर ये दोबारा इस से ज्यादा पागल हो सकता है। वह तैयार हो गये और इमाम साहब से बोले, मौलाना साहब मेरी सात पुश्ते आप के अहसान (उपकार) का बदला नहीं दे सकतीं आपका गुलाम हूँ, जहाँ चाहें पाप मुझे बेच सकते हैं, हजरत मौलाना को जब यह मालूम हुआ कि इमाम साहब ने उनसे ठीक होने का ऐसा वादा कर लिया था। तो उन्हों ने इमाम साहब को समझाया कि इस तरह करना एहतियात के खिलाफ है। चौधरी साहब को मस्जिद में ले जाने लगे तो योगेन्द्र ने पूछा ‘‘पिताजी कहाँ जा रहे हो? तो उन्होंने कहा, मुसलमान बनने’’। तो योगेन्द्र ने कहा ‘‘मुझे आप से पहले मुसलमान बनना है और मुझे तो बाबरी मस्जिद दोबारा जरूर बनवानी है। खुशी-खुशी उन दोनों को वुजु कराया और कलमा पढवाया गया। वालिद साहब का मुहम्मद उस्मान और बेटे का मुहम्मद उमर नाम रखा गया। खुशी-खुशी वे दोनों अपने गाँव पहुँचे। वहाँ पर एक छोटी सी मस्जिद है उस के इमाम साहब से जाकर मिले। इमाम साहब ने मुसलमानों को बता दिया। बात पूरे इलाके में फैल गयी। गैरों तक बात पहुँची तो कुव्वतदार(ताकतवर) लोगों की मीटिंग हुयी और तय किया कि उन दोनों को रात में कत्ल करवा दिया जाये। वरना न जाने कितने लोगों का धर्म खराब करेंगे। इस मीटिंग में एक मुर्तद(धर्म-भ्रष्ट) भी शरीक था उसने इमाम साहब को बता दिया। अल्लाह ने खेर की उन दोनों को रातों रात गाँव से निकाला गया। फुलत गये और बाद में जमाअत में 40 दिन के लिए चले गये। योगेन्द्र ने फिर अमीर साहब के मशवरे (सलाह) से तीन चिल्ले (120 दिन) लगाये। बाद में उनकी वालिदा (माँ) भी मुसलमान हो गयीं। मुहम्मद उमर की शादी दिल्ली में एक अच्छे मुसलमान घराने में हो गयी। और वे सब लोग खुशी खुशी दिल्ली में रह रहे हैं, गाँव का मकान और जमीन वगैरा बेचकर दिल्ली में एक कारखाना लिया है।अहमदः मास्टर साहब, आप से मैं ने आप के इस्लाम कुबूल करने के बारे में सवाल किया था। आप ने योगेंद्र और उन के खानदान की दास्तान सुनायी। वाकई यह खुद अजीबो गरीब कहानी है, मगर मुझे तो आप के कुबूले इस्लाम के बारे में मालूम करना है।आमिरः प्यारे भाई। असल में मेरे कुबूले इस्लाम को उस कहानी से अलग करना मुमकिन नहीं इस लिए मैंने उस का पहला हिस्सा सुनाया। अब आगे दूसरा हिस्सा सुन लिजिए। मार्च 93 को अचानक मेरे वालिद का हार्ट फेल होकर इंतेकाल (देहांत) हो गया। उन पर बाबरी मस्जिद की शहादत और उस में मेरी शिरकत का बडा गम था। वह मेरी ममी से कहते थे कि मालिक ने हमें मुसलमानों में पैदा क्यों नहीं किया? अगर मुसलमान घराने में पैदा होते, कम अज़ कम जुल्म सहने वालों में हमारा नाम आता। हद से तजावुज(बढने) करने वाली कौम में हमें क्यों पैदा कर दिया? उन्होंने घरवालों को वसीयत की थी कि मेरी अर्थी पर बलबीर न आने पाये, मेरी अर्थी को मिट्टी में दबाना या पानी में बहा देना। हद से तजवावुज़ (बढने) करने वाली कौम के रिवाज के मुताबिक आग मत लगाना। बल्कि शमशान में भी न ले जाना। घरवालों ने उन की इच्छा के मुताबिक अमल गिया और आठ दिन बाद मुझे उनके इन्तेकाल की खबर हुई। मेरा दिल बहुत टूटा। उनके इन्तेकाल के बाद बाबरी मस्जिद का गिराना मुझे जुल्म लगने लगा और मुझे इस पर फख्र (गर्व) के बजाये अफसोस होने लगा और मेरा दिल बुझ सा गया। मैं घर को जाता तो मेरी मम्मी मेरे वालिद के गम को याद करके रोने लगती और कहती, कि ऐसे देवता बाप को तूने सताकर मार दिया, तू कैसा नीच इन्सान है। मैं ने घर जाना बंद कर दिया। जून में मुहम्मद उमर जमाअत से वापस आया तो पानीपत मेरे पास आया और अपनी पूरी कहानी बतायी। दो महीने से मेरा दिल हर वक्त खौफजदा सा रहता था कि कोई आसमानी आफत मुझ पर न आ जाये। वालिद का दुख और बाबरी मस्जिद की शहादत आफत मुझ पर न आ जाए। वालिद का दुख और बाबरी मस्जिद की शहादत दोनों की वजह से हर वक्त दिल सहमा-सहमा(डरा-डरा) सा रहता था। मुहम्मद उमर ने मुझ पर जोर दिया कि 23 जून को सोनीपत में मौलाना साहब आने वाले हैं। आप उन से जरूर मिलें और अच्छा है कुछ दिन साथ रहें। मैं ने प्रोग्राम बनाया। मुझे पहुँचने में देर हो गयी उमर भाई पहले पहुँच गये थे और मौलाना साहब से मेरे बारे में पूरा हाल बता दिया था। मैं गया तो मौलाना साहब बडी मुहब्बत से मिले और मुझ से कहा, आप की इस तहरीक (प्रेरणा) पर उस गुनाह को करने वाले योगेन्द्र के साथ मालिक यह मामला कर सकते हैं। आप के साथ भी यही मामला पेश आ सकता है और अगर इस दुनिया में वह मालिक सजा न भी दें तो मरने के बाद हमेशा के जीवन में जो सजा मिलेगी आप उस का तसव्वुर (कल्पना) भी नहीं कर सकते। एक घंटा साथ रहने के बाद मैं ने फैसला कर लिया कि अगर मुझे आसमानी आफत से बचना है तो मुसलमान हो जाना चाहिए। मौलाना साहब दो रोज़ के सफर पर जा रहे थे। मैं ने दो रोज़ साथ रहने की ख्वाहिश का इजहार किया तो उन्होंने खुशी से कुबूल किया। एक रोज़ हरियाणा फिर दिल्ली और खुर्जा का सफर था। दो रोज़ के बाद फुलत पहुंचे। दो रोज़ के बाद मैं दिल से इस्लाम के लिए आमादा (तैयार) हो चुका था। मैं ने उमर भाई से अपना ख्याल जाहिर किया तो उन्होंने खुशी खुशी मौलाना साहब से बताया और अलहम्दुलिल्लाह मैं ने 25 जून 93 जोहर (दोपहर) के बाद इस्लाम कुबूल किया। मौलाना साहब ने मेरा नाम मुहम्मद आमिर रखा। इस्लाम के मुताला (वाचन) ओर नमाज़ वगैरा याद करने के लिए मुझे फुलत रहने का मशवरा दिया। मैंने अपनी बीवी और बच्चों की मजबूरी का जिक्र किया तो मेरे लिए मकान का नज्म (व्यवस्था) कर दिया गया। मैं चंद माह फुलत आकर रहा। और अपनी बीवी पर काम करता रहा तीन महीने के बाद वह भी मुसलमान हो गयी, अलहम्दुलिल्लाह।अहमदः आपकी वालिदा का क्या हुआ? आमिरः मैं ने अपनी माँ से अपने मुसलमान होने के बारे में बताया, वह बहुत खुश हुईं और बोली कि मेरे पिताजी को इससे शांति मिलेगी। वह भी इसी साल मुसलमान हो गयीं।

अहमदः आजकल आप क्या कर रहे हैं?
आमिरः आजकल मैं जूनियर हाई-स्कूल चला रहा हूँ। जिसमें इस्लामी तालीम के साथ अंग्रेजी मीडियम में तालीम का नज्म है।अहमदः अबी बता रहे थे कि हरियाणा पंजाब वगैरा की गैरआबाद मस्जिदों को आबाद करने की बडी कोशिश आप कर रहे हैं।आमिरः मैंने उमर भाई से मिलकर यह प्रोग्राम बनाया कि अल्लाह के घर को शहीद करने के बाद इस बडे गुनाह की तलाफी(क्षति-पूर्ति) के लिये हम वीरान मस्जिदों को आबाद करने और कुछ नई मस्जिदें बनाने का बेडा उठाएँ। हम दोनों ने यह तय किया कि काम तकसीम(बाँट) कर लें, मैं वीरान मस्जिदों को आबाद करवाऊँ और उमर भाई नयी मस्जिदें बनाने की कोशिश करें और एक दूसरे का तआवुन(मदद) करें। हम दोनों ने जिन्दगी में सौ-सौ मस्जिदें बनाने और वागुजार (मुक्त) कराने का प्रोग्राम बनाया है। अलहम्दु लिल्लाह 6 दिसम्बर 2004 तक 13 वीरान और मकबूजा मस्जिदें हरियाणा, पंजाब और दिल्ली और मेरठ केंट में वागुजार कराके यह पापी आबाद करा चुका है। (जुलाई 2009 तक 67 मस्जिदें वागुजार और 37 नई बन चुकी हैं)। उमर भाई मुझ से आगे निकल गए वह अब तक बीस मस्जिदें नयी बनवा चुके हैं ओर इक्कीसवीं की बुनियाद रखी है। हम लोगों ने यह तय किया है कि बाबरी मस्जिद की शहादत की हर बरसी पर 6 दिसंबर को एक वीरान मस्जिद में नमाज़ शुरू करानी है और उमर भाई को नई मस्जिद की बुनियाद जरूर रखनी है। अलहम्दु लिल्लाह कोई साल नागा नहीं हुआ। अलबत्ता सौ का निशाना अभी बहुत दूर है। इस साल उम्मीद है तादाद बहुत बढ जायेगी। आठ मस्जिदों की बात चल रही है। उम्मीद है वे आईन्दा चंद माह में जरूर आबाद हो जायेंगी। उमर भाई तो मुझ से बहुत आगे पहले ही हैं। और असल में काम भी उनही के हिस्से में है। मुझे अन्धेरे से निकालने का जरिया वही बने।

अहमदः आप के खानदान वालों क्या ख्याल है?
आमिरः मेरी वालिदा के अलावा एक बडे भाई हैं। हमारी भाभी का चार साल पहले इन्तेकाल हो गया। उनकी शादी मुझ से बाद में हुई थी। उनके चार छोटे-छोटे बच्चे हैं। एक बच्चा माजूर (अपंग) सा है हमारी भाभी बडी भली औरत थी। भाई साहब के साथ बडी मिसाली बीवी बनकर रही उनके इन्तेकाल के बाद भाई साहब बिल्कुल टूट से गये थे। मेरे बडे भाई खुद एक बहुत शरीफ आदमी हैं। वह मेरी बीवी की इस खिदमत से बहुत मुतअस्सिर (प्रभावित) हुए। मैं ने उनको इस्लाम की दावत दी मगर मेरी वजह से मेरे वालिद के सदमे (झटके) की वजह से वह मुझे कोई अच्छा आदमी नहीं समझते थे। मैंने अपनी बीवी से मशवरा किया। मेरे बच्चे बडे हैं और भाई मुश्किल से जूझ रहे हैं। अगर मैं तुम्हें तलाक दे दूँ और इद्दत के बाद भाई तैयार हो जाएँ कि वह मुसलमान होकर तुमसे शादी करलें तो दोनों के लिए निजात का जरिया बन सकता है। वह पहले तो बहुत बुरा मानी। मगर जब मैंने उस को दिल से समझाने की कोशिश की तो वह राजी हो गई। मैंने भाई को समझाया, इन बच्चों की जिन्दगी के लिए अगर आप मुसलमान हो जाएँ और मेरी बीवी से शादी करलें तो इस में क्या हर्ज है और कोई ऐसी औरत मिलना मुश्किल है जो माँ की तरह इन बच्चों की परवरिश कर सके। वह भी शुरू में बुरा मानें कि लोग क्या कहेंगे? मैंने कहा, अक्ल से जो बात सही है उसको मानने में क्या हर्ज है? बाहम(परस्पर, आपसी) मशवरा हो गया। मैं ने अपनी बीवी को तलाक दी और इद्दत गुज़ारकर भाई को कलमा पढ़वाया और उनसे उस का निकाह कराया। अल्हमदु लिल्लाह वे बहुत खुशी-खुशी जिन्दगी गुजार रहे हैं। मेरे और उनके बच्चे उनके साथ रहते हैं।

अहमदः आप अकेले रहते हैं?
आमिरः हजरत मौलाना के मशवरे से मैं ने एक नव-मुस्लिम औरत से जो काफी मुअम्मर (वयोवृद्ध) हैं शादी कर ली है। अलहम्दुलिल्लाह खुशी-खुशी हम दोनों भी रह रहे हैं।
अहमदः कारिईने अरमुगान के लिए कुछ पैगाम आप देना चाहेंगे?
आमिरः मेरी हर मुसलमान से दरख्वास्त है कि अपने मकसदे जिन्दगी को पहचाने और इस्लाम को इन्सानियत की अमानत समझकर उस को पहुंचाने की फिक्र करे। महज़ इस्लाम दुश्‍मनी की वजह से उनसे बदले का जज्बा ना रखे। अहमद भाई मैं यह बात बिलकुल अपने जाती (व्यक्तिगत, निजि) तजर्बे से कह रहा हूँ कि बाबरी मस्जिद की शहादत में शरीक हर एक शिव सैनिक, बजरंग दली और हिन्दू को अगर यह मालूम होता कि इस्लाम क्या है? मुसलमान किसे कहते हैं? कुरआन क्या है? और मस्जिद क्या चीज़ है? तो उन में से हर एक मस्जिद बनाने की तो सोच सकता है, मस्जिद गिराने की तो सोच ही नहीं सकता। मैं यकीन से कह सकता हूँ कि बाल ठाकरे जी, विनय कटियार, उमा भारती और अशोक सिंघल जैसे सरकर्दा (प्रमुख) लोगों को भी इस्लाम की हकीकत मालूम हो जाए और यह मालूम हो जाए कि इस्लाम हमारा भी मजहब है हमारे लिए भी जरूरी है तो उन में से हर एक अपने खर्च से दोबारा बाबरी मस्जिद तामीर करने को सआदत (सौभाग्य) समझेगा। अहमद भाई कुछ ही लोग ऐसे हैं जो मुसलमानों की दुशमनी के लिए मशहूर हैं। एक अरब हिन्दुओं में ऐसे लोग एक लाख भी नहीं होंगे। एक लाख भी सच्ची बात यह है हैं कि मैं शायद ज्यादा बता रहा हूँ। 99 करोड 99 लाख तो मेरे वालिद की तरह हैं। जो इन्सानियत दोस्त बल्कि इस्लामी उसूलों (तत्वों) को दिल से पसंद करते हैं। अहमद भाई। मेरे वालिद (रोते हुए) क्या फितरतन (स्वभावतः) मुसलमान नहीं थे? मगर ईमान वालों के दावत न देने की वजह से वह इन्कार पर मर गए। मेरे साथ और मेरे वालिद के साथ मुसलमानों का कितना बडा जुल्म है। यह बात सच्ची है कि बाबरी मस्जिद को शहीद करने वाले मुझसे ज्यादा जालिम तो वे मुसलमान हैं जिन की दअवत से गफलत की वजह से मेरे ऐसे प्यारे बाप दोजख में चले गए। मौलाना साहब सच कहते हैं, हम शहीद करने वाले भी न जानने और मुसलमानों के ना पहचानने की वजह से हुए। हम ने अन्जाने में ऐसा जुल्म किया और मुसलमान जान बूझकर उनके दोजख़ में जाने का जरिया बन रहे हैं। मुझे जब अपने वालिद के कुफ्र पर मरने का रात में भी ख्याल आता है तो मेरी नींद उड जाती है। हफ्ता-हफ्ता नींद नहीं आती। नींद की गोलियां खानी पडती हैं। काश मुसलमानों को इस दर्द का एहसास हो।

अहमदः बहुत बहुत शुक्रिया। माशा अल्लाह आपकी जिन्दगी अल्लाह की सिफते हादी (सण्मार्ग-दर्शक गुण) और इस्लाम की हक्कानियत (सच्चाई) की खुली निशानी है।
आमिरः बिलाशुबा(बे-शक) अहमद भाई। इस लिए मेरी ख्वाहिश थी कि अरमुगान में यह छपे, अल्लाह तआला इस की इशाअत (प्रकाशन) को मुसलमानों के लिए आँख खोलने का जरिया बनाये। आमीन, अच्छा, अल्लाह हाफिज।
(साभारः उर्दू मासिक ‘अरमुगान‘ फुलत, जून 2005)

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 (Ex Shiv sena leader Balbeer singh (Mohammed amir) with Kaleem siddiqui)



Tuesday, August 21, 2012

आपकी अमानत - आपकी सेवा में


दो शब्द thanks http://armughan.in/AKAAKSM/hindi.html

यदि आग की एक छोटी सी चिंगारी आपके सामने पड़ी हो और एक अबोध बच्चा सामने से नंगे पाँव आ रहा हो और उसका नन्हा सा पाँव सीधे आग पर पड़ने जा रहा हो तो आप क्या करेंगे?
आप तुरन्त उस बच्चे को गोद में उठा लेंगे और आग से दूर खड़ा करके आप अपार प्रसन्नता का अनुभव करेंगें।
इसी प्रकार यदि कोई मनुष्य आग में झुलस जाये या जल जाये तो आप तड़प जाते हैं और उसके प्रति आपके दिल में सहानुभूति पैदा हो जाती है।
क्या आपने कभी सोचा अखिर ऐसा क्यों है? इसलिए कि समस्त मानव समाज केवल एक मातृ-पिता की संतान है और हर एक के सीने में एक धड़कता हुआ दिल है जिसमें प्रेम है हमदर्दी है और सहानुभूति है वह एक दूसरे के दुःख सुख मे तड़पता है और एक दूसरे की मदद करके प्रसन्न होता है। इसलिए सच्चा इन्सान और मानव वही है जिसके सीने में पूरी मानवता के लिए प्रेम उबलता हो, जिसका हर कार्य मानवता की सेवा के लिए हो और जो हर एक को दुःख दर्द मे देखकर तड़प जाए और उसकी मदद उसके जीवन का अटूट अंग बन जाए।
इस संसार में मनुष्य का यह जीवन अस्थाई है, और मरने के बाद उसे एक और जीवन मिलेगा जो स्थाई होगा। अपने सच्चे मालिक की उपासना, और केवल उसी की माने बिना मरने के बाद के जीवन में स्वर्ग प्राप्त नहीं हो सकता और सदा के लिए नरक का ईंधन बनना पड़ेगा।
आज लाखों करोड़ो आदमी नरक का ईधन बनने की होड़ में लगे हुए हैं और ऐसे मार्ग पर चल रहे हैं जो सीधे नरक की ओर जाता है। इस वातावरण में उन तमाम लोगों का दायित्व है जो मानव समूह से प्रेम करते हैं और मानवता में आस्था रखते हैं कि वे आगे आयें और नरक में गिर रहें इंसानों को बचाने का अपना कर्तव्य पूरा करें।
हमें खुशी है कि मानव जाति से सच्ची सहानुभूति रखने वाले और उनको नरक की आग से बचा लेने के दुख में घुलने वाले मौलाना मुहम्मद कलीम सिद्दी़क़ी ने प्रेम और स्नेह के कुछ फूल प्रस्तुत किये हैं जिसमें मानवता के प्रति उनका पे्रम साफ़ झलकता है और इसके माध्यम से उन्होंने वह कर्तव्य पूरा किया है जो एक सच्चे मुसलमान होने के नाते हम सब पर है।
इन शब्दों के साथ दिल के ये टुकड़े और आप की अमानता आप के समक्ष प्रस्तुत है।
वसी सुलेमान नदवी,
सम्पादक उर्दू मासिक अरमुगान,फुलत, मुज़फ़्फर नगर (यू.पी.)

  अल्लाह के नाम से जो अत्यन्त करूणामय और दयावान है। मुझे क्षमा करना, मेरे प्रिय पाठकों! मुझे क्षमा करना, मैं अपनी और अपनी तमाम मुस्लिम बिरादरी की ओर से आप से क्षमा और माफ़ी माँगता हूँ जिसने मानव जगत के सब से बड़े शैतान (राक्षस) के बहकावे में आकर आपकी सबसे बड़ी दौलत आप तक नहीं पहुँचाई उस शैतान ने पाप की जगह पापी की घृणा दिल में बैठाकर इस पूरे संसार को युद्ध का मैदान बना दिया। इस ग़लती का विचार करके ही मैंने आज क़लम उठाया है कि आप का अधिकार (हक़) आप तक पहुँचाऊँ और निःस्वार्थ होकर प्रेम और मानवता की बातें आपसे कहूँ। 
वह सच्चा मालिक जो दिलों के भेद जानता है, गवाह है कि इन पृष्ठों को आप तक पहुँचाने में मैं निःस्वार्थ हूँ और सच्ची हमदर्दी का हक़ अदा करना चाहता हूँ। इन बातों को आप तक न पहुँचा पाने के ग़म में कितनी रातों की मेरी नींद उड़ी है। आप के पास एक दिल है उस से पूछ लीजिये, वह बिल्कुल सच्चा होता है। 

एक प्रेमवाणी 
यह बात कहने की नहीं मगर मेरी इच्छा है कि मेरी इन बातों को जो प्रेमवाणी है, आप प्रेम की आँखों से देखें और पढें। उस मालिक के लिए जो सारे संसार को चलाने और बनाने वाला है ग़ौर करें ताकि मेरे दिल और आत्मा को शांति प्राप्त हो, कि मैंने अपने भाई या बहिन की धरोहर उस तक पहुँचाई, और अपने इंसान होने का कर्तव्य पूरा कर दिया। 
इस संसार में आने के बाद एक मनुष्य के लिए जिस सत्य को जानना और मानना आवश्यक है और जो उसका सबसे बड़ा उत्तरदायित्व और कर्तव्य है वह प्रेमवाणी मैं आपको सुनाना चाहता हूँ 
प्रकृति का सबसे बड़ा सत्य 
इस संसार बल्कि प्रकृति की सब से बड़ी सच्चाई है कि इस संसार सृष्टि और कायनात का बनाने वाला, पैदा करने वाला, और उसका प्रबन्ध चलाने वाला सिर्फ और सिर्फ अकेला मालिक है। वह अपने अस्तित्व (ज़ात) और गुणों मे अकेला है। संसार को बनाने, चलाने, मारने, जिलाने मे उसका कोई साझी नहीं। वह एक ऐसी शक्ति है जो हर जगह मौजूद है, हर एक की सुनता है और हर एक को देखता है। समस्त संसार में एक पत्ता भी उसकी आज्ञा के बिना नहीं हिल सकता। हर मनुष्य की आत्मा की आत्मा इसकी गवाही देती है चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो और चाहे मुर्ति पूजा करता हो मगर अन्दर से वह यह विश्वास रखता है कि पालनहार, रब और असली मालिक केवल वही एक है। 
मनुष्य की बुद्धि में भी इसके अतिरिक्त कोई बात नहीं आती कि सारे सृष्टि का मालिक अकेला है यदि किसी स्कूल के दो प्रिंसपल हों तो स्कूल नहीं चल सकता, एक गाँव के दो प्रधान हों तो गाँव का प्रबंध नष्ट हो जाता है किसी एक देश के दो बादशाह नहीं हो सकते तो इतनी बड़ी सृष्टि (संसार) का प्रबंध एक से ज्यादा खुदा या मालिकों द्वारा कैसे चल सकता है, और संसार के प्रबंधक कई लोग किस प्रकार हो सकते हैं? 

एक दलील 
कुरआन जो ईश्वरवाणी है उसने संसार को अपने सत्य ईश्वरवाणी होने के लिए यह चुनौती दी कि ‘‘अगर तुमको संदेह है कि कुरआन उस मालिक का सच्चा कलाम नहीं है तो इस जैसी एक सुरह (छोटा अध्याय) ही बनाकर दिखाओ और इस कार्य के लिए ईश्वर के सिवा समस्त संसार को अपनी मदद के लिए बुला लो, अगर तुम सच्चे हो। (सूर: बकरा, 23) 
चैदह सौ साल से आज तक इस संसार के बसने वाले, और साइंस कम्पयूटर तक शोध करके थक चुके और अपना अपना सिर झुका चुके हैं किसी में भी यह कहने की हिम्मत नहीं हुई कि यह अल्लाह की किताब नहीं है। 
इस पवित्र किताब में मालिक ने हमारी बुद्धि को समझाने के लिए अनेक दलीलें दी हैं। एक उदाहरण यह हैं। ‘‘अगर धरती और आकाश में अनेक माबूद (और मालिक) होते तो ख़राबी और फ़साद मच जाता‘‘। बात साफ है अगर एक के अलावा कई मालिक होते तो झगड़ा होता। एक कहता अब रात होगी, दूसरा कहता दिन होग। एक कहता कि छः महीने का दिन होगा। एक कहता सूरज आज पश्चिम से निकलेगा, दूसरा कहता नहीं पूरब से निकलेगा अगर देवी, देवताओं का यह अधिकार सच होता और यह वह अल्लाह के कार्यां में शरीक भी होते तो कभी ऐसा होता कि एक दास ने पूजा अर्चना करके वर्षा के देवता से अपनी बात स्वीकार करा ली, तो बड़े मालिक की ओर से ऑर्डर आता कि अभी वर्षा नहीं होगी, फिर नीचे वाले हड़ताल कर देते। अब लोग बैठे हैं कि दिन नहीं निकला, मालूम हुआ कि सूर्य देवता ने हड़ताल कर रखी है। 

सच्ची गवाही 
सच यह कि संसार की हर चीज गवाही दे रही है यह भली भॉति चलता हुआ सृष्टि का निज़ाम (व्यवस्था) गवाही दे रहा है कि संसार का मालिक अकेला और केवल अकेला है। वह जब चाहे और जो चाहे कर सकता है। उसको कल्पना और ख़्यालों में नहीं लाया जा सकता, उसकी मूर्ति नहीं बनाई जा सकती। उस मालिक ने सारे संसार को मनुष्य की सेवा के लिए पैदा किया। सूरज इंसान का सेवक, हवा इंसान की सेवक, यह धरती भी मनुष्य की सेवक है, आग पानी जीव जन्तु, संसार की हर वस्तु मनुष्य की सेवा के लिए बनाई गयी हैं। इंसान को इन सब चीजों का सरदार (बादशाह) बनाया गया है, तथा सिर्फ अपना दास और अपनी पूजा और आज्ञा पालन के लिए पैदा किया है। 
न्यायोचित और इंसाफ की बात यह है कि जब पैदा करने वाला, जीवन देने वाला, मारने वाला, खाना पानी देने वाला और जीवन की हर एक आवश्यक वस्तु देने वाला वह है तो सच्चे इंसान का अपना जीवन और जीवन से सम्बन्धित तमाम वस्तुएं अपने मालिक की मर्जी से, ओर उसका आज्ञाकारी होकर प्रयोग करनी चाहिये। अगर एक मनुष्य अपना जीवन उस अकेले मालिक की आज्ञा पालन में नहीं गुज़ार रहा है तो वह इंसान नहीं। 

एक बड़ी सच्चाई 
उस सच्चे मालिक ने अपने सच्चे प्रन्य, कुरआन मे एक सच्चाई हम को बताई है। 
अनुवाद: हर एक जीवन को मौत का मज़ा चखना है। फिर तुम्हें हमारी ओर पलट कर आना होगा। (सुरः अनकबूत 58) 
इस आयत के दो भाग हैं। पहला यह है कि हर धर्म, हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है। यह ऐसी बात है कि हर धर्म, हर समाज और हर जगह का आदमी इस बात पर यक़ीन रखता है बल्कि जो धर्म को मानता भी नहीं वह भी सच्चाई के आगे सिर झुकाता है और जानवर तक मौत की सच्चाई को समझते हैं। चूहा बिल्ली को देखकर भागता है और कुत्ता भी सड़क पर आती हुई किसी गाड़ी को देखकर भाग उठता है। इसलिए कि इन की मौत का यक़ीन (विश्वास) है। 

मौत के बाद 
इस आयत के दूसरे भाग में कुरआन मजीद एक बड़ी सच्चाई की तरफ हमें आकर्षित करता है यदि वह इंसान की समझ मे आ जाये तो सारे संसार का वातावरण बदल जाये। वह सच्चाई यह है कि तुम मरने के बाद मेरी तरफ़ लौट जाओगे और इस संसार में जैसे भी कार्य करोगे वैसा बदला पाओगे। 
मरने के बाद तुम गल सड़ जाओगे और दोबारा पैदा नही किये जाओगे ऐसा नहीं है। न ही यह सत्य है कि मरने के बाद तुम्हारी आत्मा किसी योनि में प्रवेश कर जायेगी। यह दृष्टिकोण किसी मानवीये बुद्धि की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। 
पहली बात यह है कि आवागमण का यह दृष्टिकोण वेदों में उपलब्ध नहीं है। बाद के पुराणों में इसका उल्लेख है उस से ज्ञात होता है कि इंसान के शुक्राणुओं पर लिखे सन्तानों के गुण पिता से पुत्र ओर पुत्र से उसके पुत्र में जाते हैं। इस धारणा का आरम्भ इस तरह हुआ कि शैतान (राक्षस) ने धर्म के नाम पर लोगों को ऊँच नीच में बांध दिया। धर्म के नाम पर शुद्रों से सेवा लेने और उनकों नीच समझने वाले धर्म के ठेकेदारों से समाज के दबे कुचले लोगों ने जब यह सवाल किया कि जब हमारा पैदा करने वाला ईश्वर है उसने सब इंसानों को आँख, कान, नाम हर चीज में बराबर बनाया है तो आप लोगों ने अपने आप को बड़ा और हमें नीचा क्यांे बनाया। इसके लिए उन्होंने आवागमन का सहारा लेकर यह कह दिया कि तुम्हारे पिछले ज़न्म के कर्मो ने तुम्हें नीच बनाया है। 
इस धारणा के अन्तर्गत सारी आत्मायें दोबारा पैदा होती हैं। और अपने कर्मो के हिसाब से योनि बदलकर आती है। अधिक कुकर्म करने हैं। उनसे अधिक कुकर्म करने वाले वनस्पति की योनि में चले जाते हैं, और जिसके कर्म अच्छे होते है वह मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। 

आवागमन के तीन विरोधी 
तर्क (दलीलें) 
इस क्रम मे सबसे बड़ी बात यह है कि सारे संसार के विद्वानों और शोध कार्य करने वाले साइंस दानों का कहना है कि इस धरती पर सबसे पहले वनस्पति जगत ने जन्म लिया। फिर जानवर पैदा हुए और उसके करोड़ों वर्ष बाद इन्सान का जन्म हुआ। अब जबकि इंसान अभी इस धरती पर पैदा ही नही हुए थे और किसी इन्सानी आत्मा ने अभी बुरे कर्म नहीं किए थे तो किन आत्माओं ने वनस्पति और जानवरों के शरीर में जन्म लिया? 
दूसरी बात यह है कि इस धारणा का मान लेने के बाद यह मानना पड़ेगा कि इस धरती पर प्राणियों की संख्या में लगातार कमी होती रहे। जो आत्मायें मोक्ष प्राप्त कर लेंगी। उनकी संख्या कम होती रहनी चाहिये। अब कि यह तथ्य हमारे सागने है कि इस विशाल धरती पर इन्सान जीव जन्तु और वनस्पति हर प्रकार के प्राणियों की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। 
तीसरी बात यह है कि इस संसार में जन्म लेने वालों और मरने वालों की संख्या में ज़मीन आसमान का अन्तर दिखाई देता है। मरनेवाले मनुष्य की तुलना में जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या कहीं अधिक है। कभी-कभी करोड़ो मच्छर पैदा हो जाते है जब कि मरने वाले उससे बहुत कम होते है। कहीं-कहीं कुछ बच्चों के बारे में यह मशहूर हो जाता है कि वह उस जगह को पहचान रहा है जहा वह रहता था, अपना पुराना, नाम बता देता है। और यह भी कि वह दोबारा जन्म ले रहा है। यह सब शैतान और भूत-प्रेत होते हैं जो बच्चों के सिर चढ़ कर बोलते है और इन्सानों के दीन ईमान को खराब करते हैं। 
सच्ची बात यह है कि यह सच्चाई मरने के बाद हर इन्सान के सामने आ जायेगी कि मनुष्य मरने के बाद अपने मालिक के पास जाता है, और इस संसार मे उसने जैसे कर्म किये है उनके हिसाब से सज़ा अथवा बदला पायेगा। 
कर्मो का फल मिलेगा 
यदि वह सतकर्म करेगा भलाई और नेकी की राह पर चलेगा तो वह स्वर्ग में जायेगा। स्वर्ग जहाँ हर आराम की चीज़ है। और ऐसी-ऐसी सुखप्रद और आराम की चीज़ें है जिनकों इस संसार में न किसी आँख ने देखा, न किसी कान ने सुना, और न किसी दिल में उसका ख़्याल गुजारा। और सबसे बड़ी जन्नत (स्वर्ग) की उपलब्धि यह होगी कि स्वर्गवासी लोग वहॉ अपने मालिक के अपनी आँखों से दर्शन कर सकेंगे। जिसके बराबर विनोद और मजे़ कोई चीज नहीं होगी। 
इस प्रकार जो लोग कुकर्म (बुरे काम) करेंगे, पाप करके अपने मालिक की आज्ञा का उल्लंघन करेंगे, वह नरक मे डाले जायेगे, वह वहॉ आग में जलेंगे। वहॉ उन्हें हर पाप की सज़ा और दंड मिलेगा। और सब से बड़ी सजा यह होगी कि वह अपने मालिक के दर्शन से वंचित रह जाऐगे। और उन पर उनके मालिक का अत्यन्त क्रोध होगा। 

ईश्वर का साझी बनाना 
सबसे बड़ा पाप है 
उस सच्चे मालिक ने अपने कुरआन में हमें बताया कि नेकियों, सतकर्म, पुण्य ओर सदाचार छोटे भी होते हैं और बड़े भी इसी प्राकर उस मालिक के यहॉ गुनाह, कुकर्म, पाप भी छोटे बड़े होते हैं उसने हमें बताया है कि जो पाप हमें सब से अधिक सज़ा का भागीदार बनाता है, और जिसको वह कभी क्षमा नही करेगा, और जिस का करने वाला सदैव नरक में जलता रहेगा, ओर उसको मौत भी न आयेगी वह उस अकेले मालिक का किसी को साझी बनाना है, अपने शीश और मस्तिष्क को उसके अतिरिक्त किसी दूसरे के आगे झुकाना, अपने हाथ किसी और के आगे जोड़ना, उसके अलावा किसी और को पूजा के योग्य मानना, मारने वाला जिन्दा करने वाला, रोजी देने वाला और लाभ हानि का मालिक समझना घोर पाप और अत्यन्त अत्याचार है चाहे वह किसी देवी देवता को माना जाये या सूरज चाँद नक्षत्र अथवा किसी पीर फ़कीर को। किसी को भी उस मालिक के अलावा पूजा योग्य समझना शिर्क है जिसको वह मालिक कभी माफ़ नहीं करेगा, इसके अलावा हर पाप को वह अगर चाहे तो माफ़ (क्षमा) कर देगा। इस पाप को स्वंय हमारी बुद्धि भी इतनी ही बुरा समझती है और हम भी इस कर्म को इतना ही नापसंद करते हैं। 
एक उदाहारण 
उदाहारणार्थ यदि आपकी पत्नी बड़ी झगड़ालू और बात-बात पर गालियों देने वाली हो। और कुछ कहना सुनना नहीं मानती हो लेकिन आप उस से घर से निकलने को कह दें तो वह कहती है कि मैं केवल तेरी हूँ तेरी रहूँगी, और तेरे दरवाजे पर मरूंगी, और एक पल क लि‍ए तेरे घर से बाहर नहीं जाऊँगी तो आप लाख क्रोध और गुस्से के बाद भी उससे निर्वाह करने पर विवश हो जाएंगे। 
इसके विपरीत यदि आपकी पत्नी अत्यन्त सेवा करने वाली और आज्ञाकारी है, वह हर समय आपका ध्यान रखती है, आपके लि भोजन गर्म करती है ओर परोसती है प्यार और प्रेम की बातें करती है, वह एक दिन आप से कहने लगे आप मेरे पति देव है। मेरा अकेले आप से काम नहीं चलता, इसलिए अपने पड़ोसी जो हैं मैंने आज से उन्हें भी अपना पति बना लिया है तो यदि आप में कुछ भी लज्जा और मानवता है और आप के खून मे गर्मी है तो आप यह बदार्शत नहीं कर पायेंगे, या अपनी पत्नी की जान ले लेंगे अथवा स्वंय मर जायेंगे। 
आखिर ऐसा क्यों है? केवल इसलि‍ए कि आप अपनी पत्नी के लिए किसी को साझी देखना नहीं चाहते। आप नुत्फे (वीर्य) की एक बूंद से बने हैं तो अपना साझी नहीं करते, तो वह मालिक जो उस अपवित्र बूंद से मनुष्य को पैदा करता है, वह कैसे यह बदार्शत कर लेगा कि कोई उसका साझी हो। उसके साथ किसी और की भी पूजा की जाये। जब कि इस पूरे संसार में जिसको जो कुछ दिया है उसी ने दिया है। जिस प्रकार एक वेश्या अपनी मान मर्यादा बेचकर हर आने वाले व्यक्ति को अपने ऊपर अधिकार दे देती है तो इसके कारण वह हमारी आँखों से गिरी हुई रहती है। वह मनुष्य अपने मालिक की आँखो में उस से अधिक नीच और गिर हुआ है जो उसको छोड़कर किसी और की पूजा में विलीन हो। वह कोई देवता या मूर्ति हो अथवा कोई दूसरी वस्तु।

पवित्र कुरआन मे मूर्ति 
पूजा का विरोध 
मूर्ति पूजा के लए कुरआन में एक उदाहरण प्रस्तुत किया गया है जो (गौर) विचार करने योग्य है। 
‘‘अल्लाह को छोड़कर तुम जिन वस्तुओं को पूजते हो वह सब मिलकर एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकतीं, और पैदा करना तो दूर की बात है यदि मक्खी उनके सामने से कोई चीज प्रसाद इत्यादि छीन ले तो वापस नहीं ले सकतीं। फिर कैसे कायर है पूज्य और कैसे कमजोर हैं पूजने वाले, और उन्होंने उस अल्लाह की कद्र नहीं कि जैसी करनी चाहिये थी जो ताक़तवर और जबरदस्त है।‘‘ 
क्या अच्छी मिसाल है, बनाने वाला तो स्वंय ईश्वर होता है अपने हाथों से बनायी गयी मूर्तियों के हम बनाने वाले यदि इन मूर्तियों में थोड़ी बहुत समझ होती तो वह हमारी पूजा करतीं। 
एक बोदा विचार 
कुछ लोगों का मानना यह हैं कि हम उनकी पूजा इस लिए करते हैं कि उन्होंने ही हमें मालिक का मार्ग दिखाया और उनके वास्ते से हम मालिक की दया प्राप्त करते हैं। यह बिल्कुल ऐसी बात हुई कि कोई कुली से ट्रेन के बारे में मालूम करें जब कुली उसे ट्रेन के बारे में जानकारी दे दे तो वह ट्रेन की जगह कुली पर ही सवार हो जाये, कि इसने ही हमें ट्रेन के बारे में बताया है। इसी तरह अल्लाह की सही दिशा और मार्ग बताने वाले की पूजा करना बिल्कुल ऐसा है जैसे ट्रेन को छोड़कर कुली पर सवार हो जाना। 
कुछ भाई यह भी कहते हैं कि हम केवल ध्यान जमाने के लिए इन मूर्तियों को रखते हैं। यह भी खूब रही कि खूब गौर से कत्ते को देख रहे हैं और कह रहे हैं कि पिताजी का ध्यान जमाने के लिए कुत्ते को देख रहे हैं। कहाँ पिताजी कहाँ कुत्ता? कहाँ यह कमजो़र मूर्ति और कहा वह अत्यन्त बलवान, दयावान मालिक, इस से ध्यान बंधेगा या हटेगा। 
निष्कर्ष यह है कि किसी भी प्रकार से किसी को भी उसका साझी मानना सबसे बड़ा पाप है जिसको ईश्वर कभी माफ़ नहीं करेगा, और ऐसा आदमी सदा के लिए नरक का ईधन बनेगा। 
सर्वश्रेष्ठ नेकी ईमान है 
इसी तरह सब से बड़ी भलाई, पुण्य और नेकी ‘‘ईमान‘‘ है जिसके बारे में संसार के तमाम धर्म वाले कहते हैं कि सब कुछ यहीं छोड़ जाना है। मरने के बाद आदमी के साथ केवल ईमान जायेगा। ईमानदारी या ईमान वाला उसको कहते हैं जो हक़ वाले को हक़ देने वाला हो। और हक़ मारने वाले को ज़ालिम कहते है। इस मनुष्य पर सब से बड़ा अधिकार उसके पैदा करने वाले का है। वह यह कि सब को पैदा करने वाला ज़िन्दगी देने वाला मालिक, रब, और पूजा के योग्य वह अकेला है तो फिर उसी की पूजा की जाये, उसी को मालिक लाभ-हानि इज्ज़त-जिल्लत देने वाला समझा जाये और यह दिया हुआ जीवन उसी की मर्जी और आज्ञा के पालन के साथ व्यतीत किया जाए, अर्थात उसी को माना जायें और उसी की मानी जायें इसी का नाम ईमान है। उस मालिक को अकेला माने बिना और उसके आज्ञा पालन के बिना इन्सान ईमानदार नहीं हो सकता। अपितु वह बेईमान कहलाएगा। 
मालिक का सबसे बड़ा हक़ (अधिकार) मारकर लोगों के सामने ईमानदारी दिखाना ऐसा ही है कि एक डाकू बहुत बड़ी डकैती से धनवान बन जायें और फिर दुकान पर लालाजी से कहे कि आपका एक पैसा हिसाब में ज्यादा चला गया है आप ले लीजिए इतना माल लूटने के बाद दो पैसे का हिसाब देना जैसी ईमानदारी है अपने मालिक को छोड़कर किसी और की पूजा अर्चना करना उस से भी बुरी ईमानदारी है। 
ईमानदारी केवल यह है कि इन्सान अपने मालिक को अकेला माने उस अकेले की पूजा करे और उसके द्वारा दिये गये जीवन की हर घड़ी को मालिक की मर्जी और उसकी आज्ञा पालन के साथ व्यतीत करे। उसके दिये हुए जीवन को उसकी आज्ञा के अनुसार बिताना ही धर्म कहलाता है और उसकी आज्ञा का उल्लंधन करना अधर्म। 
सच्चा धर्म 
सच्चा धर्म शुरू से ही एक है और सब की शिक्षा है कि उस अकेले को माना जाये, और उसकी आज्ञा का पालन किया जाये पवित्र कुरआन ने कहा है ‘‘धर्म तो अल्लाह का केवल इस्लाम है और इस्लाम के अतिरिक्त जो भी धर्म लाया जायेगा वह मान्य नहीं है‘‘ (सुरः आले इमरान: 85) 
इन्सान की कमजोरी है कि उसकी आँख एक विशेष सीमा तक देख सकती है, उसके कान एक सीमा तक सूंघने, चखने और छूने की शक्ति भी सीमित है, इन पाँच इन्द्रियों से उसकी बुद्धि को मालूमात मिलती है। इसी प्रकार बुद्धि के कार्य की भी एक सीमा है। 
वह मालिक किस तरह का जीवन पसन्द करता है, उसकी पूजा किस प्रकार की जाये, मरने के बाद क्या होगा? स्वर्ग और नरक में ले जाने वाले कर्म क्या हैं? यह सब मनुष्य की बुद्धि और स्वंय इन्सान पता नहीं लगा सकता। 
ईशदूत 
इन्सान की इस कमज़ोरी पर दया करके उसके मालिक ने उन महान पुरूषों पर जिनको उसने इस पदवी के योग्य समझा अपने, दूतों (फरिश्तों) के द्वारा अपने आदेश भेजे जिन्होंने मनुष्य को जीवन व्यतीत करने और अपनी उपासना के ढंग बताये और जीवन की वह हकीकतें बतायीं जो वह अपनी बुद्धि के आधार पर नहीं समझ सकता था। ऐसे महान पुरूषों के नबी, रसूल या पैग़म्बर (संदेष्टा) कहा जाता है। उसे अवतार भी कह सकते है यदि अवतार का मतलब यह हो जिस पर उतारा जाये। आजकल अवतार का मतलब यह समझा जाता है कि वह स्वंय ईश्वर है अथवा ईश्वर उसके रूप में उतरा। यह अन्धविश्वास है। यह बहुत बड़ा पाप है। इस अन्धविश्वास ने एक मालिक की पूजा से हटा कर मनुष्य को मूर्ति पूजा की दलदल मे फँसा दिया। 
यह महापुरूष जिन को अल्लाह ने लोगों को सच्चा मार्ग बताने के लिए चुना, और जिन को नबी, रसूल कहा गया। हर बस्ती और क्षेत्र और हर ज़माने में आते रहे हैं। उन सब ने एक ईश्वर को मानने, केवल उसी अकेले की पूजा करने और उसकी मर्ज़ी से जीवन व्यतीत करने का जो ढंग (शरीअत या धार्मिक कानून) वह लायें हैं उनका पालन करने को कहा। उनमें से एक रसूल ने भी एक ईश्वर के अलावा किसी को भी पूजा के लिए नहीं बुलाया अपितु उन्होंने सब से ज्यादा इसी पाप से रोका उनकी बातों पर लोगों ने यक़ीन किया और सच्चे रास्तों पर चलने लगे। 

मूर्ति पूजा का आरम्भ 
ऐसे तमाम संदेष्टा (पैग़म्बर) और उनके अनुयायी मनुष्य थे, उनको मौत आनी थी (जिसको मृत्यू नहीं वह केवल खुदा है) नबी या रसूल के मरने के पश्चात उनके अनुयायियों को उनकी याद आयी और वे उन के दुःख में बहुत रोते थे। शैतान को अवसर मिल गया वह मनुष्य का दुश्मन है। और मनुष्य की परीक्षा के लिए उस मालिक ने उसको बहकाने और बुरी बातें उसके दिल में डालने की शक्ति ही है। कि देंखे कौन उस पैदा करने वाले मालिक को मानता है और कौन शैतान को मानता है। 
शैतान लोगों के पास आया और कहा कि तुम्हें अपने महागुरू (रसूल या नबी) से बड़ा प्रेम है। मरने के बाद वे तुम्हारी निगाहों से ओझल हो गये है। अतः मैं उनकी एक मूर्ति बना देता हूँ उसको देखकर तुम सन्तुष्टि पा सकते हो। शैतान ने मूर्ति बनाई। जब उसका जी करता वह उसे देखा करते थे। धीरे-धीरे जब इस मूर्ति का प्रेम उन के मन मे बस गया शैतान ने कहा कि यदि तुम इस मूर्ति के आगे अपना सिर झुकाओगे तो इस मूर्ति में भगवान को पाओगे। मनुष्य के दिल में मूर्ति की बड़ाई पहले ही भर चुकी थी। इसलिए उसने मूर्ति के आगे सिर झुकाना और उसे पूजना आरम्भ कर दिया और यह मनुष्य जिसके जिसके पूजने योग्य केवल एक ईश्वर तथा मूर्तियों को पूजने लगा और शिर्क में फँस गया। 
इस समस्त संसार का सरदार (मनुष्य) जब पत्थर या मिट्टी के आगे झुकाने लगा तो वह ज़लील हुआ और मालिक की निगाह से गिर कर सदा के लिए नरक का ईधन बन गया। उसके बाद अल्लाह ने फिर अपने रसूल भेजे जिन्होने लोगों को मूर्ति पूजा और अल्लाह के अलावा दूसरे की पूजा से रोका, कुछ लोग उनकी बात मानते रहे तथा कुछ लोगों ने उनकी अवमानना कीं। जो लोग मानते थे अल्लाह उनसे प्रसन्न होते, और जो लोग उनके उपदेशो की अवहेलना करते उनके लिए आसमान से विनाश के फैसले कर दिये जाते है। 
रसूलों की शिक्षा 
एक के बाद एक नबी और रसूल आते रहे, उनके धर्म का आधार एक होता वह एक धर्म की ओर बुलाते कि एक ईश्वर को मानो, किसी को उसके व्यक्तित्व और गुणों मे ंसाझी न बनाओं, उसकी पूजा में किसी को साझी न करो, उसके सब रसूलों को सच्चा जानों, उसके फरिश्तों को जो उसकी पवित्रा मख़लूक हैं न खाते पीते है न सोते हैं, हर काम में मालिक की आज्ञा पालन करते हैं, सच्चा जानों, उसने अपने फरिश्तों के माध्यम से वाणी भेजी या ग्रन्थ उतारे है उन सब को सच्चा जानों, मरने के बाद दोबारा जीवन पाकर अपने अच्छे बुरे कार्यो का बदला पाना है इस पर यकी़न करो, और यह भी जानो कि जो भाग्य अच्छा या बुरा है वह मालिक की ओर से है और मैं इस समय जो शरीयत और जीवन बिताने के ढंग लेकर आया हूँ उनका पालन करो। 
जितने अल्लाह के नबी और रसूल आये सब सच्चे थे और उन पर जो धार्मिक ग्रन्थ उतरे वह सब सच्चे थे उन सब पर हमारा ईमान (श्रद्धा) है और हम उनमें अन्तर नही करते। सच्चाई का तराजू यह है कि जिन्होंने एक ईश्वर को मानने की ओर आमन्त्रित किया हो और उनकी पूजा की बात न हो। अतः जिन महापुरूषों के यहाँ मूर्तिपूजा या अनेकेश्वरवाद की शिक्षा हो वे या तो रसूल नहीं हैं अथवा उनकी शिक्षाओं मे फेरबदल हो गया है। मुहम्मद साहब के पूर्व के तमाम रसूलों की शिक्षाओं में फेरबदल कर दिया गया है और कही-कही ग्रन्थों को भी बदल दिया गया। 
अन्तिम संदेश हज़रत मुहम्मद 
यह एक बहुमूल्य सत्य है कि हर आने वाले रसूल और नबी के द्वारा और उनके ग्रन्थों में एक अन्तिम नबी की भविष्यवाणी की गयी है। और यह कहा गया है कि उनके आने के पश्चात और उनको पहचान लेने के बाद सारी प्राचीन शरीअतें और धार्मिक कानून छोड़ कर उपनकी बात मानी जाये और उनके द्वारा लाये गये ग्रन्थ और धर्म पर चला जाये। यह भी इस्लाम की सत्यता का प्रमाण है कि प्राचीन ग्रन्थों में अत्यन्त फेरबदल के बावजूद उस मालिक ने अन्तिम रसूल के आने की ख़बर को बदलने न दिया ताकि कोई यह कह सके कि हमें खबर न थी। वेदों में उसका नाम नराशंस, पुराणों में कल्कि अवतार, बाइबिल में फारकलीट और अहमद और बौद्ध में अन्तिम बुद्ध इत्यादि लिखा गया है। 
इन धार्मिक ग्रन्थों में मुहम्मद साहब का जन्म स्थान, जन्म तिथि, समय और बहुत से वास्तविक लक्ष्ण पहले ही बता दिये गये थे। 
हजरत मुहम्मद का जीवन परिचय 
अब से लगभग साढ़े चैदह सौ वर्ष पूर्व वह अन्तिम ऋषि मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सऊदी अरब के देश मक्का में पैदा हुऐ। पैदा होने के कुछ माह पूर्व ही उनके पिता का देहान्त हो गया था। माँ भी कुछ ज्यादा दिन जीवित नहीं रही। पहले दादा और उनके देहान्त के बाद आपके चाचा ने उन्हें पाला। संसार में सबसे निराला यह इन्सान समस्त मक्का नगर की आँखों का तारा बन गया। ज्यों-ज्यों आप बड़े होते गये, आपके साथ लोगों का प्रेम बढ़ता गया, आपको सच्चा और ईमानदार कहा जाने लगा, लोग अपनी बहुमूल्य धरोहर (अमानत) आपके पास रखते। अपने परस्पर झगड़ों का निपटारा कराते। काबा, जो मक्का में अल्लाह का पवित्र घर है उसको दुबारा बनाया जा रहा था। उसकी एक दीवार के कोन में एक पवित्र पत्थर है जब उसको उसके स्थाान पर स्थापित करने की बारी आयी तो उसकी पवित्रता के कारण मक्का के तमाम वंशज और सरदारों की चाहत थी कि पवित्रा पत्थर स्थापित करने का अधिकार उसे ही मिले, इसके लिए तलवारें निकल आयीं, तभी एक समझदार आदमी ने निर्णय किया कि जो सबसे पहला आदमी यहॉ आयेगा वही इसका फेसला करेगा। सब लोग तैयार हो गये, उस दिन सबसे पहले आने वाले हज़रत मुहम्मद सल्ल. थे, सब एक स्वर होकर बोले वाह वाह, हमारे बीच सच्चा और ईमानदार आदमी आ गया है हम सब राज़ी है। 
आपने एक चादर बिछाई और उसमें वह पत्थर रखकर कहा हर वंश के सरदार चादर का एक किनारा पकड़कर उठाए, जब पत्थर दीवार तक पहुँच गया तो आप ने अपने हाथों से उसके स्थान पर रख दिया और यह बड़ी लड़ाई समाप्त करवा दी। 
इसी प्रकार लोग आपको हर कार्य में आगे रखते थे, आप यात्रा पर जाने लगते तो लोग व्याकुल हो जाते, और जब आप लौटते ता आप से मिलकर फूट-फूटकर रोने लगते। 
उन दिनों वहॉ अल्लाह के घर काबा में 360 (बुत) देवी देवताओं की मूर्तियॉ रखी हुई थी। पूरे अरब देश में ऊँच नीच, छुआ, छूत, नारी पर अत्याचार, शराब, जुआ, सूद, ब्याज, लड़ाई बलात्कार जैसी जाने कितनी बुराईयाँ फैली हुई थीं। 
जब आप 40 वर्ष के हुए तो अल्लाह ने अपने फरिश्ते (ईशदूत) के माध्यम से आप पर कुरआन उतारना आरम्भ किया और आपको रसूल बनाने का शुभ संदेश और लोगों को एकेश्वरवाद की तरफ बुलाने का दायित्व सौंपा। 
सत्य की आवाज़ 
आपने एक पहाड़ की चोटी पर चढ़कर एक आवाज़ लगायी। लोग इस आवाज़ पर टूट पड़े इसलिए कि यह एक सच्चे ईमानदार आदमी की आवा़ज थी। आपने प्रश्न किया, यदि मैं तुम से कहूँ कि इस पहाड़ के पीछे से एक विशाल सेना आ रही है और तुम पर हमला करने वाली है, तो क्या विश्वास करोगे? 
सब ने एक स्वर होकर कहा, भला आप की बात पर कौन विश्वास नहीं करेगा आप कभी झूठ नहीं बोलते और पहाड़ की चोटी से दूसरी ओर देख भी रहे हैं। इसके बाद आपने लोगों को इस्लाम की तरफ बुलाया, मूर्तिपूजा से रोका और मरने के बाद नरक की आग से डराया। 
मनुष्य की एक कमज़ोरी 
मनुष्य की यह कमजोरी रही है कि वह अपने पूर्वजों की गलत बातों को भी अन्धविश्वास में मान कर चला जाता है। इन्सानों की बुद्धि और तर्को के नकराने के बावजूद मनूष्य पूर्वजों की बातो पर जमा रहता है और उसके अतिरिक्त करना तो क्या, कुछ सुन भी नहीं सकता। 

रूकावटें और परीक्षाये 
यही कारण था कि चालीस वर्ष की आयु तक आपका आदर करने, और सच्चा मानने और जानने पर भी मक्का के लोग आपकी शिक्षाओं के शत्रु हो गये। आप जितना ज्यादा लोगो को इस सच्चाई की ओर बुलाते, लोग और ज्.यादा दुश्मनी करते। जब कुछ लोग ईमान वालों को सताते, मारते और आग पर लिटा लेते, गले में फन्दा डाल कर घसीटते, और उन पर पत्थर बरसाते। परन्तु आप सब के लिए अल्लाह से प्रार्थना करते, किसी से बदला नहीं लेते, पूरी-पूरी रात अपने मालिए से उनके लिए हिदायत की दुआ करते एक बार मक्का के लोगों से मायूस होकर ताइफ नगर की ओर गये। वहॉ के लोगों ने उस महापुरूष का अनादर किया आपके पीछे लड़के लगा दिये जो आपको भला बुरा कहते। उन्होंने आप को पत्थर मारे जिससे आपके पैरों से रक्त बहने लगा, तक्लीफ़ की वजह से आप कही बैठ जाते वे लड़के आपको पुनः खड़ा कर देते, और फिर मारते, इस हाल में आप नगर से बाहर निकल कर एक स्थान पर बैठ गये, आप ने उन्हें श्राप नहीं दिया बल्न्कि अपने मालिक से दुआ की, ‘‘ मालिक, इनको समझा दे दे यह जानते नहीं।‘‘ आपको इस पवित्र संदेश और ईशवाणी पहुॅचाने के कारण अपना प्रिय नगर मक्का छोड़ना पड़ा, फिर आप अपने नगर से मदीना नगर में चले गये, वहॉ भी मक्का वाले विरोधी, फौजें बनाकर बार-बार आपसे लड़ने गये। 
सत्य की जीत 
सत्य की सदा जीत होती है सो यहॉ भी हुई, 23 साल के कठिन परिश्रम के बाद आप सब पर विजयी हुए और सत्य मार्ग की और आपके 
निःस्वार्थ निमन्त्रण ने पूरे अरब देश को इस्लाम की शीतल छाया में खड़ा कर दिया, और पूरी दुनियॉ में एक क्रान्ति आ गयी, मूर्तिपूजा बन्द हुई, ऊँच नीच ख़त्म हुयी, और सब लोग एक अल्लाह को मानने और पूजा करने वाले हो गये। 
अन्तिम वसीयत 
अपनी मृत्यू से कुछ ही वर्ष पूर्व आपने लगभग सवा लाख लोगों के साथ हज किया और समस्त लोगों को अपनी अन्तिम वसीयत की, जिसमें आप ने कहा, लोगों तुमसे मरने के बाद जब कर्मो की पूछ होगी तो मेरे विषय में भी पूछा जायेगा, कि क्या मैंने अल्लाह का दीन (धर्म) और वह सच्चाई लोगों तक पहुँचाई हैं? सब ने कहा निःसंदेह आप पहुँचा चुके। आप ने आसमान की ओर उंगली उठायी ओर तीन बार कहा, ऐ अल्लाह आप गवाह रहिये, आप गवाह रहिये, आप गवाह रहिये। इसके बाद आपने लोगों से फरमाया, यह सच्चा दीन जिन तक पहुँच चुका है वह उनके पास पहुँचाए जिनके पास नहीं पहुँचा है। 
आप ने यह भी ख़बर दी की मैं रसूल हूँ अब मेरे बाद कोई रसूल न आयेगा, मैं ही वह अन्तिम ऋषि नराशस और कल्कि अवतार हूँ जिसकी तुम प्रतीक्षा करते रहे थे और जिसके बारे में तुम सब कुछ जानते हो। 
कुरआन में है जिन ‘‘लोगों को हम ने किताब दी है वे इस (पैग़बर मुहम्मद)‘‘ को पहचानते हैं जैसे अपने बेटों को पहचानते हैं। हाँ निःसंदेह उनमें एक गिरोह हक़ को छिपाता है। (सूर: अल बक़रा 147) 

हर मनुष्य का कर्तव्य 
अब प्रलय तक आने वाले हर मनुष्य का कर्तव्य है और उसका धार्मिक और इन्सानी दायित्व है कि वह उस अकेले मालिक की पूजा करे, 
उसके साथ किसी को साझी न जाने और न माने, और उसके अन्तिम संदेष्टा हज़रत मुहम्मद सल्ल0 को सच्चा जाने, ओर उनके द्वारा लाए गये दीन ओर जीवन व्यतीत करने के ढंग का पालन करे, इस्लाम में इसी को इरमान कहा गया है इसके बिना मरने के बाद हमेशा के लिए नरक में जलना पड़ेगाः 
दो प्रश्न 
यहॉ आपके मस्तिष्क में दो सवाल पैदा हो सकते हैं, मरने के बाद स्वर्ग या नरक में जाना दिखाई तो देता नहीं, उसे क्यों मानें? इस सम्बन्ध में यह जान लेना उचित होगा कि तमाम प्राचीन ग्रन्थों में स्वर्ग, नरक का वर्णन किया गया हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि स्वर्ग नरक का विचार तमाम धर्मों द्वारा प्रामणित है। इसे हम एक उदाहरण में भी समझ सकते हैं। बच्चा जब माँ के पेट में होता है, अगर उस से कहा जाये कि जब तुम गर्भ से बाहर निकलोगे जो दूध पि़योगे, रोओगे, गर्भ के बाहर तुम बहुत सारी चीज़े देखोगे, तो गर्भ के अन्दर होने की अवस्था मे उसे विश्वास नहीं होगा। जैसे ही गर्भ के बाहर निकलेगा तब सब चीजों को अपने सामने पायेगा। इसी प्रकार यह समस्त संसार एक गर्भ अवस्था हैं यहॉ से मौत के बाद निकलकर जब मनुष्य आखिरत के संसार मे आँखे खोलेगा तो सब कुछ अपने सामने पायेगा। 
वहाँ के स्वर्ग नरक और दूसरी वास्तविकताओं की ख़बर हमें उस सच्चे ने दी है जिसको उसके जानी दुश्मन भी कभी झूठा न कह सके। और कुरआन जैसी पुस्तक ने दी जिसकी सच्चाई हर अपने पराये ने मानी हैं। 

दूसरा सवाल 
दूसरी चीज़ जो आपे मन में खटक सकती है कि जिन सारे रसूल धर्म और धार्मिक ग्रन्थ सच्चे थे तो फिर इस्लाम कुबूल करना क्या ज़रूरी हैं? 
आज की वर्तमान दुनिया मे इसका जवाब बिल्कुल आसान है, हमारे देश की एक संसद (पार्लियामेंट) है यहॉ का एक संविधान है। यहॉ जितने प्रधानमंत्री आये वे सब भारत के वास्तविक प्रधानमंत्री थे, पंडित जवाहरलाल नेहरू, शास्त्री जी, फिर इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी फिर वी0पी0 सिंह इत्यादि, देश की ज़रूरत और समय के अनुकूल जो कानून और अध्यादेश उन्होंने पास किये वे सब भारत के थे मगर अब जो वर्तमान प्रधानमंत्री है। उनकी संसद और सरकार जो भी कानून में संशोधन करेगी उससे पुराना कानून समाप्त हो जायेगा, और भारत के हर नागरिक के लिए अनिवार्य होगा कि उस नया संशोधित कानून का पालन करें। यदि अब कोई भारतीय नागरिक यह कहे कि जब इंदिरा गाँधी असली प्रधानमंत्री थी तो मैं उनके ही कानून मानूंगा, इस नये प्रधानमंत्री के कानून में नहीं मानता और न उनके द्वारा लगाये गये टैक्स दूंगा तो ऐसे आदमी को हर कोई भारत विरोधी कहेगा और उसे सजा का पात्र समझा जायेगां इसी तरह सारे धर्म, और धार्मिक ग्रन्थ अपने अपने समय में आये ओर सब सत्य की शिक्षा देते थे। इसलिए अब तमाम रसूलों और धार्मिक ग्रन्थों को सच्चा मानते हुए भी अंतिम रसूल मुहम्मद स0 पर ईमान लनाना हर मनुष्य के लिए अनिवार्य है। 

सत्य धर्म केवल एक है 
इसलिए यह कहना किसी तरह उचित नहीं कि सारे धर्म ईश्वर की आरे जाते हैं। रास्ते अलग-अलग हें, मंजिल एक है। सत्य केवल एक होता है। असत्य बहुत हो सकते है। नूर एक होता है, अन्धेरे बहुत हो सकते हैं। सच्चा धर्म केवल एक है, वह शुरू ही से एक है। अतः उस एक को मानना ओर उसी एक की मानना इस्लाम है। धर्म कभी नहीं बदलता केवल शरीअत (कानून) समय के अनुसार बदलते रहते हैं ओर वे भी उसी मालिक के बताए हुए ढंग पर। 
जब मानव जाति एक है और उनका मालिक एक है तो रास्ता भी केवल एक है, कुरआन ने कहा है ‘‘धर्म तो अल्लाह केवल इस्लाम है‘‘ 
एक और प्रश्न 
यह एक प्रश्न भी मन में आ सकता है कि हज़रत मुहम्मद स0 अल्लाह के सच्चे नबी ईशदूत हैं और वह संसार के अन्तिम दूत भी है इसका सुबूत है? 
उत्तर साफ़ है कि सर्वप्रथम यह कुराअन ईश्वर का कलाम है। उसने संसार को अपने सच्चे होने के लिए जो तर्क दिये हैं वह सब को मानने पड़े हैं। और आज तक उन का विरोध नही हो सका है। उसने हज़रत मुहम्मद के सच्चे और अन्तिम नबी (ईशदूत) होने की घोषणा की है। दूसरी बात यह है हज़रत मुहम्मद के जीवन का एक एक पल संसार के सामने है! डनका समस्त जीवन इतिहास की खुली किताब है। संसार में किसी भी मनुष्य का जीवन आपकी जीवनी की तरह सुरक्षित और उजाले में नहीं है। आपके शत्रुओं और इस्लाम दुश्मन इतिहासकारों ने भी कभी यह नहीं कहा कि मुहम्मद साहब ने अपने व्यक्तिगत जीवन में कभी किसी के विषय में झूठ बोला है। आपके नगरवासी आपकी सच्चाई की क़समें खाते थे। जिस श्रेष्ठ व्यक्ति ने अपने निजी जीवन में कभी झूठ नहीं बोला, वह धर्म के नाम पर और ईश्वर के नाम पर झूठ कैसे बोल सकता था। आपने स्वंय यह बताया है कि मैं अन्तिम नबी हूँ मेरे बाद अब कोई नबी नहीं आयेगा न कोई धर्म आयेगा, और मेरे आने के विषय में स नबियों ने भविष्यावाणी की है। सारे धार्मिक ग्रन्थों में अन्तिम ऋषि, कल्कि, अवतार की जो भविष्यवाणी की गयी हैं और लक्ष्ण और पहचानें बताई गयी हैं यह केवल हज़रत मुहम्मद के विषय में साबित होती हैं 
पंडित श्री राम शर्मा का विचार 
पंडित री राम शर्मा ने लिखा हैं कि जो इस्लाम ग्रहण न करे और हज़रत मुहम्मद और आपके धर्म को न माने वह हिन्दु भी नहीं है। इसलिए कि हिन्दुओं के धार्मिक ग्रन्थों में कल्कि अवतार और नराशंस के इस धरती पर आ जाने के बाद उनको और उनका धर्म मानने को कहा गया है तो जो हिन्दु भी अपने धार्मिक ग्रन्थों में आस्था रखता हो इस माने बना मरने बउद जीवन मं नरक की आग, वहॉ ईश्वर के साक्षात दर्शन से वंचित, और उसके क्रोध का भागीदार होगा। 
ईमान की आवश्यकता 
मरने के बाद की जिन्दगी के अलावा इस संसार मे भी ईमान और इस्लाम हमारी आवश्यकता है और मानव का कर्तव्य है कि एक मालिक की पूजा करे, जो उसका द्वार छोड़कर दूसरों के सामने झुकता फिरे वह कुत्ता भी अपने मालिक के द्वार पर पड़ा रहता है और उसी से आस लगाता है। वह कैसा इंसान जो अपने सच्चे मालिक को भूल कर दर-दर झुकता फिरे। 
परन्तु इस ईमान की ज़्यादा आवश्यकता मरने के बाद के लिए है जहॉ से इंसान वापिस न लौटेगा और मौत पुकारने पर भी उसको मौत मिलेगी। उस समय पछतावा और पश्चाताप भी कुछ काम न देगा। यदि मनुष्य यहॉ से ईमान के बिना चला गया तो हमेशा नरक की आग मे जलना पड़ेगा। यदि इस संसार में आग की एक चिंगारी भी हमारे शरीर को छू जाये जो हम तड़प जाते हैं। तो नरक की आग कैसे सहन हो सकेगी जो इस आग से सत्तर गुना तेज़ है और उसमे हमेशा जलना है जब एक खाल जल जाएगी जो दूसरी खालबदल दी जाएगी और निरन्तर यह सजा भुगतनी होगी। 
प्रिय पाठक 
मेरे प्रिय पाठक। मौत का समय न जाने कब आ जाये जो सांस अन्दर है उसके बाहर अपने का भी भरोसे नहीं। मौत से पहले समय है अपनी सब से पहली और सब से बड़ी जिम्मेदारी का ध्यानकर लें। ईमान के बिना न यह जीवन, जीवन है और न मरने के बाद अपने वाला जीवन। 
कल सब को अपने मालिक के पास जाना है यहॉ सब से पहले ईमान की पूछ होगी। मुझे भी स्वार्थ है इस बात का कि कल हिसाब के दिन आप यह न कह दें कि हम तक बात पहुँचाई ही नहीं थी। मुझे आशा है कि यह सच्ची बातें आप के दिल में घर कर गयी होगी तो आइये भग्यवान, सच्चे दिल और सच्ची आत्मा वाले मेरे प्रिय पाठक, उस मालिक को गवाह बनाकर और ऐसे सच्चे दिल से जिसे दिलों के भेद जानते वाला मान ले इक़रार करें और प्रण लेः- 
‘‘अशहदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाहु व अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलूह, सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम‘‘ 
अर्थ मैं गवाही देता हू इस बात की कि अल्लाह के सिवा कोई पूजा के योग्य नही, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं, और हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, अल्लाह के सच्चे बन्दे और रसूल है।‘‘ 
मैं तौबा करता हूँ कुफ्र (नास्तिकता) से शिर्फ (किसी प्रकार भी अल्लाह का साझी बनाने) से और समस्त प्रकार के पापों से। और इस बात का प्रण लेता हूँ कि अपने पैदा करने वाले सच्चे मालिक के सब आदेश मानूंगा और उसके सच्चे नबी हज़रत मुहम्मद स0 की सच्ची पैरवी (अनुसरण) करूंगा। 
करूणामय और दयावान मालिक मुझे और आपको इस राह पर मरते दम तक कायम रखे। 
मेरे प्रिय पाठको। अगर आप अपनी मौत तक इस यकी़न और ईमान के अनुरूप अपना जीवन गुजारते रहे तो फिर मालूम होगा कि आप के इस भाई ने कैसा प्रेम का हक़ अदा किया। 
ईमान की परीक्षा 
इस इस्लाम और ईमान की वजह से आपकी परीक्षा भी हो सकती है। मगर जीत हमेशा सच की होती है। यहाँ भी सत्य की जीत होगी। और अगर जीवनभर परीक्षा से गुज़रना पड़े तो यह सोच कर सह जाना कि इस दुनिया का जीवन तो कुछ दिनों तक सीमित है। मरने के बाद का अपार जीवन, वहॉ का स्वर्ग और उसके सुख प्राप्त के लिए, और मालिक को राजी़ (प्रसन्न करने) के लिए, और उसके साक्षात दर्शन के लिए यह परीक्षायें कुछ भी नहीं हैं। 
आपका कर्तव्य 

एक बात और, ईमान और इस्लाम की यह सच्चाई हर उस भाई का हक़ और अमानत है जिस तक नहीं पहुँचा है। अतः आपका भी कर्तव्य है कि निःस्वार्थ होकर केवल अपने को भी हमदर्दी में और उसे मालिक के क्रोध, नरक की आग और सजा़ से बचाने के लिए, दुख दर्द के एहसास के साथ जिस प्रकार प्यारे नबी ने यह सच्चाई पहुँचाई थी। आप भी पहुँचायें, उनको सही सच्चाई पहुचाई थी। आप भी पहुँचायें, उनको सही सच्चा रास्ता समझ में आने के लिए अपने मालिक से दुआ करें। ऐसा व्यक्ति क्या इंसान कहलाने का हकदरार है जिसके सामने एक अन्धा दिखाई न देने की वजह से आग के अलाव में गिर जाये और वह एक बार भी फूटे मुँह से यह न कहे कि तुम्हारा यह मार्ग आग के अलाव की ओर जाता है। इन्सानियत की बात यह है कि उसको रोके उसको पकड़ कर बचाये और प्रण ले कि अपने होते हुए मैं हरगिज तुम्हें आग में गिरने नहीं दूंगा। 
ईमान लाने बाद हर मुसलमान पर है कि जिसको दीन की नबी की, कुरान की हिदायत मिल चुकी है वह शिर्क और कुफ्र की आग में फँसे लोगो को बचाने को बचाने की धुन में लग जाये उनकी ठोडी में हाथ दे उनके पांव पकडे कि लोग ईमान से हटकर ग़लत रास्ते पर न जायें। निःस्वार्थ और सच्ची हमदर्दी में कही गयी बात दिल पर असर करती हे अगर आप की वजह से एक आदमी को भी ईमान मिल गया तो हमारा बेड़ा पार हो जाएगा । इसलिए अल्लाह उस आदमी से ज्यादा प्रसन्न होता है जो किसी को कुफ्र और शिर्क से निकालकर सच्चाई के रास्ते पर लगा दे जिस तरह आपका बेटा अगर आपका बागी़ होकर दुश्मन से जा मिले ओर उसी का कहना मानता रहे। यदि कोई सज्जन उसको समझा बुझाकर आपका आज्ञाकारी बना दें तो अप उस सज्जन से कितने प्रसन्न होंगे। मालिक उस बन्दे से इस से ज्यादा प्रसन्न होता है जो दूसरे तक ईमान पहुँचााने और बाटने का माध्यम बन जायंे। 
ईमान लाने के बाद 
इस्लाम ग्रहण करने के पश्चात जब आप मालिक के सच्चे बन्दे बन गये तो आब आप पर रोजा़ना पाँच बार नमाज़ अनिवार्य है आप इसे सीखें और पढ़ें। इसी से आत्मा की शान्ति और अल्लाह का प्रेम बढ़ेगा। रमजा़न आयोग तो एक महीने के रोजे़ रखने होंगे। मालदार है तो पूरी उम्र में एक बार हज के लिए जाना पड़ेगा। 
ख़बरदार! अब आपका शीश (सिर) अल्लाह के अलावचा किसी के आगे न झुके। आप पर शराब जुआ सूद (व्याज) सुअर का मीट, रिश्वत और हर हराम चीज़ निषेध है और उससे बचना है। और अल्लाह की पवित्र बताई हुई चीजों को पूरे चाव (शौक) से सेवन करना हैं। 
अपने मालिक द्वारा दिया गया पवित्र ग्रंथ नियमित रूप से पढ़ना है और पवित्रता और सफा़ई के नियम सीखने हैं और सच्चे दिल से यह प्रार्थना करनी है कि है हमारे मालिक हमको, हमारे दोस्तों को, परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों को, और इस भूमण्डल पर बसने वाली पूरी मानवता को ईमान के साथ जिन्दा रख और ईमान के साथ इन्हें मौत दे। इसलिए कि ईमान ही इस मानव समाज का पहला और अन्तिम सहारा हैं जिस प्रकार अल्लाह के एक दूत हज़रत इब्राहीम जलती हुई आग मे अपने ईमान की बदौलत कूद गये थे और का बाल बांका नहीं हुआ था आज भी इस ईमान की शक्ति आग को पुष्प बना सकती है और सत्य मार्ग की हर रूकावट को खत्म कर सकती है। 
हो अगर ईमान इब्राहीम का उत्पन्न आज! 
पुष्प के स्वभाव से हो आग भी सम्पन्न आज! 

वस्सलाम 
प्रस्तुतिः मौलाना मुहम्मद क़लीम सिद्दीक़ी, 
प्रकाशकः अरमुग़ान पब्लिकेशन 
फुलत, मुज़फ़्फ़र नगर (यू.पी.) 

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मो. कलीम सिद्दीकी 
फुलत, मुज़फ़्फर नगर 
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गली नं0 1 फिरदौस नगर किला रोड, यूनिवर्सीट‍ि फार्म, अलीगढ़- 202002 
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