बजरंग दल के जिला संचालक के शिव सैनिक मित्र सुनिल जोशी जो अब नाम मुहम्मद शकील का उर्दू मासिक पत्रीका 'अरमुगान' जून 2012 ईं में मौलाना मुहम्मद कलीम साहब के सुपुत्र अहमद अव्वाह को दिया गया इन्टरव्यू interview साक्षात्कार
अहमद अव्वाह: अस्सलामु अलैकुम
मुहम्मद शकील: वालैकुम सलाम
अहमद: शकील साहब अबी ने कुछ दिन पहले हम लोगों को बताया था कि आपने हमारे एक जिम्मेदार साथी के साथ बहुत गुस्से का मामला किया था और गालियां वगेरा दी थी, और अब आपको अल्लाह ताला ने हिदायत से नवाज दिया, आपके इस गुस्से और नाराजगी के पीछे क्या बात है, हालांकि आपके खान्दान के मुसलमानों से ताल्लुकात भी रहे हैं।
शकील: मौलाना अहमद साहब असल में तो मेरे मालिक मुझ पर रहम आ रहा था, बस उसने जरिया बना दिया, वर्ना पिछले दिनों मुझ पर मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ जो भूत सवार था उसका आप तसव्वुर भी नहीं कर सकते।
अहमद : फिर भी जाहिरी तौर पर इस गुस्से की वजह क्या थी?
शकील : असल में हमारे यहां शाहआबाद आंध्रा के चार बच्चे मुसलमान हुए, चारों भाई बहन थे, जिस लडके के साथ वो आए थे उसने उनकी बडी बहन से शादी कर ली थी, हमारे जिले की शिव-सेना के जिम्मेदारों को मालूम हो गया तो उन्हों ने इलाके में बवाल खडा कर दिया, उस लडके के खिलाफ बच्चों को बहका कर मुसलमान बनाने का मुकदमा दायर कर दिया, और उसको जेल भेज दिया, अदालत में उन बच्चों ने साफ-साफ खुल कर बयान दिया कि हम अपनी मर्जी से मुसलमान हुए हैं, लडकी अभी 18 साल की नहीं हुई थी, असल में उसके पिता झांसी के पास किसी जगह रहते हैं , शिवपूरी कोई जिला है वहां पर उन बच्चों की सगी मां तो मर गयी थीं, वालिद ने एम. पी. में ही दूसरी शादी की, मां के रवैये से परेशान होकर यह बच्चे घर से भाग कर आ गए, स्टेशन पर उस लडके को यह चारों मिले, इसको तरस आ गया, ये उनको शाहआबाद ले आया, घर वालों ने मुखालफत की, मगर इस लडके ने इस लडकी से वादा कर लिया था इस लिए उससे शादी कर ली, बाद में अदालत और पुलिस ने इन बच्चों के पिता से राबता किया तो उनके बाप ने यह बयान दिया कि यह बच्चे मेरी मर्जी से मुसलमान हुए हैं, और मेरी मर्जी से मेरी बेटी ने शादी की है, इस पर हमारे यहां के शिवसेना वालों ने शिवपूरी के जिम्मेदारों से राबता किया और बच्चों के वालिद के खिलाफ बयान दिने पर जोर दिया और उनको तरह-तरह की धमकियां भी दीं, मगर वो किसी तरह खिलाफ बयान देने पर राजी न हुए, और कहते रहे कि इस देवता जैसे इन्सान ने उन बच्चों पर तरस खाकर हमदर्दी की और उसको निभाया, हम उसके खिलाफ बयान दें यह कैसा घोर अन्याय होगा, क्या में बिल्कु हैवान बन जाउं, जब वहां के शिव सैनिकों ने बहुत ज्यादा दबाव दिया तो उन बच्चों के बाप ने और उन बच्चों के साथ उनकी सौतेली मां अपने दो बच्चों के साथ मुसलमान हो गयी, इस पर पूरे इलाके की हिन्दू कमेटियों ने अपनी हार समझ कर एकजुट हो कर छानबीन शुरू की तो मालूम हुआ की इलाके में बहुत से लोग मुसलमान होते जा रहे हैं, इस पर खोद-कुरेद हुई तो पता चला कि संभल और उसके पास के कुछ कसबों में कुछ लोग यह काम कर रहे हैं, मेरे एक साथी बजरंग दल के जिला संचालक हैं अनिल कौशिक, वो मेरे पास संभल आए और उन्होंने संभल में शिवसेना और बजरंग दल के लोगों की मीटिंग की, और उस में धर्म बदलने को रोकने के सिलसिले में लोगों को गरमाया, में बचपन से बहुत जज्बाती आदमी हूं मुझे बहुत गुस्सा आया, और मैं ने इसके खिलाफ तहरीक चलाने का इरादा कर लिया, मेरे एक और साथी ने जो इस काम में बढ चढ कर हिस्सा लेने का वादा कर चुके थे, उन्होंने मुझे बताया कि असल में एक किताब हिन्दी में ''आपकी अमानत, आपकी सेवा में'' मौलाना कलीम सिददीकी साहब ने लिखी है, वो ऐसी जादू भरी भाषा में लिखी गयी है कि जो उसे पढता है मुसलमान हो जाता है, और वो दिल्ली से छपी है उस पर छपवाने वाले का फोन नम्बर है, मैं ने कहा वो किताब जरा मुझे ला कर दो, मैं देखूंगा उस में क्या बात लिखी है, उसने कहा नहीं उसका पढना ठीक नहीं है, उस किताब का लेखक कोई तान्त्रिक है, उसने उसकी भाषा में जादू कर दिया है, अगर तुम पढोगे तो मुसलमान हो जाओगे, मुझे भी डर लगा, जब मुझे किताब दिखाई तो मैं ने बिना खोले किताब के बेक टाइटिल पर छपे दो मोबाइल नम्बरों को नोट कर लिया फिर एक नम्बर पर बात की, पहले नम्बर पर एक साहब का फोन मिला वो बडे नर्म स्वभाव के थे, मैं उन्हें मां बहन की बडी गालियां देता रहा, और धमकियां देता रहा, मगर वो हंसते रहे और बोले आपकी गालियां कितनी मिठी हैं उनसे मुहब्बत की खुशबू आ रही है, रात को दूसरे नम्बर पर मैं ने बात की और बहुत सख्त सुस्त आखरी दरजे की मां बहन की सडी सडी गालियां देता रहा, तो वो साहब पहले तो गुस्सा हुए फिर बोले, मैं ने पूरा फोन टेप कर लिया है, अब आप के खिलाफ थाने में रिपोर्ट कराने जा रहा हूं, एक दफा तो मैं डर सा गया, फिर हिम्मत की और कहा कि कतल के बाद इकटठे ही केस कर देना, मैं ने उनसे कहा कि जरा अपनी पत्नि (बीवी) से बात करादे, मैं तुझे कतल करूंगा , तो वो विधवा हो जाएगी, मैं उससे पहले ही क्षमा (माफी) तो कर लूं, फिर तो मौका मिलेगा नहीं।
अहमद: अच्छा तो वो आप थे, अबी(कलीम साहब) तो बहुत मजे लेकर यह बात सुनाते थे, और उन साथी को समझाया था जब वो बहुत टूटे दिल के साथ उन गालियों की शिकायत कर रहे थे, अबी ने उनको समझाया कि तुम्हें तो फखर करना चाहिए, कि सैयदुल अव्वलीन व आखिरीन नबी रहमतुल आलमीन सल्ल. की सुनन्त अदा करने का शरफ तुम्हें मिला, दावत की राह में किसी खुशकिस्मत को ही गालियां नसीब होती हैं, अबी उनसे कहने लगे तुम बताओ कोई ऐसा खुशकिस्मत आदमी जिस को दावत(दीन की बुलाने) की राह में गालियां मिली हों, यह प्यारे आका की सुन्नत है कि जिनको दोजख की आग से निकालने के लिए आप रातों को रोते और दिनों को खुशामद करते थे, वो लोग गालियां देते, पत्थर बरसाते, और हर तरह से सताते थे, फिर उसने उनसे कहा कि तुम ने उसकी गालियों पर तो गौर किया, उसकी इन्सानियत और रहम दिली और उसकी मुहब्बत भरी फितरत का अहसास नहीं किया कि अभी उसने तुम्हें कतल किया भी नहीं और तुम्हरी बीवी से माफी मांगने को कह रहा है...... जी तो आगे सुनाइए।
शकील: उन साहब ने मुझसे मालूम किया कि आप यह बताइए कि उस किताब में कौनसी बात ऐसी गलत है जिस पर आपको एतराज और ऐसा गुस्सा है, मैं ने कहा, मैं ने तो वो किताब पढी नहीं, उन्होंने कहा फिर आपको गुस्सा क्यूं? मैं ने कहा मेरे कई साथियों ने किताब पढने से मना किया और कहा जो भी यह किताब पढता है इस किताब की की भाषा में जादू कर रखा है, वो मुसलमान हो जाता है, इस डर की वजह से मैं ने किताब नहीं पढी, उन्होंने कहा आपको किसी ने गलत कहा है? मुझसे पूछा आप कुछ पढे लिखे हैं? मैं ने कहा में एम. एस. सी. हूं, वो बोले साइंस के स्कालर होकर आप कैसी अंधविश्वास की बात कर रहे हैं, इन्सान को मालिक ने देखने के लिए अकल दी है, और आप इतने पढे लिखे आदमी हैं, इन्सान चांद तारों पर जा रहा है, और आप जादू की बात कर रहे हैं, आप ऐसा किजिए कि आप इस किताब को जरूर पढिए और इसके पढने के बाद जो बात आपको गलत लगे अपने कलम से काट दिजिए, आइन्दा आप जिस तरह करक्शन करेंगे किताब उसी तरह छपेगी, उन्हों ने कहा 'क्या में आपके पास किताब भेज दू?'' मैं ने कहा अगर मुझे न मिली तो मंगा लूंगा, और मुझे इस किताब में कोई बात हिन्दू धर्म के खिलाफ मिलेगी तो में तेरे पूरे खान्दान को कतल कर दूंगा, वो बोले कोई बात नहीं।
अहमद: उसके बाद आपने वो किताब पढी?
शकीलः नहीं मैं ने उन दिनों वो किताब नहीं पढी, साथियों से बात हुई तो मेरी तबियत में बहुत नर्मी देख कर वो बहुत गुस्से हुए, और बोले कि ऐसे ही तो लठ मार मार कर वो धर्मान्त्रण कर रहे हैं, देखा नहीं यह इसाई मिशन वाले भी ऐसा ही करते हैं में जगह जगह जाकर चौराहों पर इस किताब और उसके बांटने वालों को गालियां देता, संभल के नवाब खान्दान के एक साहब को हज के दिनों ही वहीं मालूम हुआ कि संभल के पास एक कस्बा में एक आदमी सुनिल जोशी नाम का ''आपकी अमानत'' के खिलाफ बहुत गुस्सा है, वो उसके लेखक को बहुत गालियां बकता है, मौलाना कलीम साहब से वो मुरीद(धर्म शिष्य) है, हज के सफर से आने के बाद वो तलाश करते करते मेरे पास पहुंचे, मुझे देखा तो चिमट कर बहुत रोने लगे, सुनिल भैया तुम तो मेरे साथ छटी क्लास से लेकर दस्वी क्लात तक पढे हो, तुम्हारे साथ मैं ने कबडडी भी खेली है, मैं ने भी पहचान लिया, मैं ने कहा कि मेरे पिताजी ने तो आपके अब्बा जान की जमीन भी काश्त की है, बोले हां हां वो जमीन तो पिताजी ने बहुत सस्ते दामों में आपके पिताजी को ताल्लुकात की वजह से बेच दी थी, मैं ने कहा हां तुम्हारे पिता जी तो हमारी शादी में बहुत बढ-चढकर शरीक हुए थे, और कई दिन तक काम कराया था बलिक एक तरह से शादी की जिम्मेदारी निभाई थी, यह कह कर वो मुझ से चिमट गए, बुरी बुरी तरह फूट फूट कर रोने लगे और उनका रो रोकर बुरा हाल हो गया, रोते रहे और कहते रहे मेरे लाडले दोस्त, ईमान के बगैर तुम मर गए तो दोजख में जलोगे, मैं ऐसे अच्छे दोस्त को कैसे दोजख में जाता देखूंगा, मेरे भाई सुनिल मैं ने इस बार हज में बार-बार तुम्हारी हिदायत के लिए दुआ की है, मेरे भाई ईमान के बगेर बडा खतरा है और बहुत खतरनाक आग है, मेरे भाई सुनिल नर्क की आग से बच जाओ, जल्दी से कलिमा पढ लो, देखो में दिल का मरीज हूं तडप तडप कर मेरा हार्ट फेल हो जाए गा, मैं ऐसे अच्छे दोस्त को हर्गिज कुफर पर मरने नहीं दूंगा, मेरे भाई कलिमा पढ लो, फूट फूट कर आवाज से रोते रोते उनका बुरा हाल हो गया, मैं ने कहा ''में कलिमा पढ लूंगा, तुम चुप हो जाओ, मेरे यार चाए तो पी लो'' वो बोले ''मैं किस दिल से चाए पी लूं, जब मेरा दिली प्यारा दोस्त, जिसका इतना प्यारा बाप हो, जो मरे हकीकी भाई की तरह होने के बावजूद ईमान के बगैर मर गया, सुनिल भैया चचा बलराम जी पर नर्क में क्या क्या गुजर रही होगी, मेरे अब्बा ने उन्हें मरने दिया गमर में तुम्हें हरगिज अब नर्क में नहीं जाने दूंगा'' बार बार मैं उनको पानी पिलाने की कोशिश करता, मगर वो कहते ''तुम्हें पानी की पडी है, मेरा भाई मेरा दोस्त सुनिल बगैर इमान के मर जाएगा, मेरे होश खराब हो गए, मैं ने कहा: ''चुप हो जाओ पानी पी लो, जो तुम कहोगे, मैं करने को तैयार हूं'' वो बोले ''कलिमा पढ लो'', मैं ने कहा कि तुम पानी पीलो, मैं कलिमा नही पूरा कुरआन पढ लूंगा'' वो बोले ''अगर मेरे पानी पीते पीते तुम मर गए तो नर्क में जाओंगे'' मैं ने कहा ''मेरे भाई , अच्छा तुम पढाओ क्या पढाते हो'' मैं ने उनकी हालत बुरी देखी तो उसके अलावा और कोई रास्ता दिखाइ नहीं दिया, उन्होंने रोते रोते मुझे कलिमा पढाया, फिर हिन्दी में उसका अनुवाद बताया, मैं ने उनको पानी पिलाया, मैं ने कहा ''अच्छा अब तुम खुश हो अब चाए पी लो'' उन्हों ने चाए पी, और जेब में से ''आपकी अमानत आपकी सेवा में'' किताब निकाल कर दी, कि सुनिल भैया इस किताब को अब तुम दो बार बहुत गौर से पढना, 'आपकी अमानत' मैं ने देखी तो मेरा मूड खराब हो गया, अच्छा यह किताब तो मैं किसी तरह भी नहीं पढूंगा, इस किताब के लेखक को मैं ने कतल करने का पर्ण (अहद) किया है, वो चाए छोड कर फिर मुझ से चिमट गए और रोने लगे, मैं ने कहा ''तुम कुछ ही करो, मैं किताब नहीं पढ सकता'', वो बोले क्यूं इस किताब से तुम्हें ऐसी चिड है, मैं ने कहा, क्या तुम ही लोग यह किताब बांट रहे हो, उन्होंने कहा कि तुम्हरा यह गया गुजरा भाई ही यह मुहब्बत की खुशबू बांट रहा है'' मैं ने कहा ''मुहब्बत की नहीं नफरत की, इस किताब के नाम से मुझे गुस्सा आता है, वो बोले कि भाई सुनिल, इस किताब में क्या बात गलत है? तुम ने यह किताब पढी है? मैं ने कहा मैं नहीं पढ सकता, इस किताब का लेखक तान्त्रिक है उसने इसके शब्दों में जादू कर रखा है, वो दिलों को बांध देते हैं'' वो फिर पहले की तरह रोने लगे, सुनिल भैया ''इस किताब का लेखक एक तान्त्रिक नहीं, एक सच्चा इन्सान और मुहब्बत का फरिश्ता है, उसने इस किताब में मुहब्बत की मिठास घोल रखी है, और इस किताब में सच है, सच्ची हमदर्दी है, वो यह कहते हैं कि हर इन्सान की आत्मा सच्ची होती है, वो अपने मालिक की तरफ से सच्ची बात पर कुरबान होती है, मेरे दोस्त तुम्हें यह किताब जरूर पढनी पडेगी'' मैंने कहा कि सब कहते हैं जो इस किताब को पढता है वो मुसलमान हो जाता है, मुझे यह डर है कि इस किताब को पढ कर मुझ सचमुच मुसलमान होना पडेगा'' यह कहना था कि वो मुझसे चिमट गए, और बच्चों की तरह बिलक बिलक कर रोने लगे, मेरे भाई सुनिल, तुमने सच्चे दिल से कलमा नही पढा, झूठे दिल से पढा कलमा किसी काम की नहीं, मरे भाई तुम्हें यह किताब पढनी पडेगी, में हरगिज हरगिज तुम्हें नरक में नहीं जाने दूंगा, मेरे भैया में मर जाउंगा, मुझ डर लगा कि यह वाकई रो रो के मर जाएगा, मैं ने उसको पानी पिलाना चाहा, वो पानी पीने को तैयार न हुए, मैं ने कहा ''मेरे बाप में इस किताब को दस दफा पढूंगा तुम चुप हो जाओ, अच्छा यह पानी पी लो, मैं तुम्हारे सामने अभी पढता हूं'' उसने इस शर्त पर पानी पिया, कि मैं अभी इस किताब को पूरी उसके सामने पढूंगा, मैं ने उनके सामने किताब पढना शुरू की, और खयाल था कि थोडी देर में यह चुप हो जाएगा तो यह किताब बंद कर दूंगा, मगर जैसे ही पेश लफज (दो शब्द) का पृष्ठ पढा, किताब के लेखक से मेरी दूरी कम हो गई, और फिर मैं किताब पढता गया, 32 पृष्ठ की किताब आधे घंटे में खतम हो गई, इस किताब का सच और मुहब्बत मेरे उपर जादू कर चुका था, मैं ने अपने दोस्त से एक बार सच्चे दिल से कलिमा शहादत पढाने की खुद रिक्वेस्ट की, उन्होंने मुझे कलिमा पढाया, मैं ने गले मिलकर उनका शुक्रिया अदा किया, और अपना नाम उनके मशवरे से शकील अहमद रखा
अहमद: इसके बाद आपने अपने इस्लाम का एलान किया?
शकील: रात को मैं ने अपनी बीवी से बताने का इरादा किया, बाजार से उसके लिए जोडा लिया, और एक चांदी की अंगूठी खरीदा, एक मिठाई का डब्बा लिया, 30 मार्च का दिन था, यह मेरी शादी का दिन था, और यह दिन मेरी बीवी का बर्थडे भी था, रात को मैं ने उसको मुबारकबाद दी और हद दरजे मुहब्बत का इजहार किया जो मेरी आदत के बिल्कुल खिलाफ था, वो हैरत से मालूम करने लगी की यह किया बात है, मैं ने कहा कि एक आदमी सुनिल जो तुम्हारे साथ भारतीय समाज के मुताबिक पांव की जूती समझ कर व्यवहार सलूक करता था, आज उसने नया जन्म लिया है, उस पर उसके मालिक ने महरबानी कर दी हे, उसे धार्मिक बना दिया है, एक प्रेम का देवता मेरे पास आकर मेरी जीवन के अंधकार को प्रकाशित कर गया गया, मैं तुम से आज तक के सारे अत्याचार जुल्म के लिए पांव पकड कर माफी मांगता हूं, और आइन्दा के लिए तुम से वादा करता हूं कि तुम मेरी जीवन साथी, मेरे सर का ताज हो, वो बोली में समझ नहीं सकी, मैं ने कहा इसको समझने के लिए अगर तुम्हारे पास समय है तो आधा घंटा चाहिए, मगर जब तुम खुशी से तैयार हो, मैं तुम पर जबरदस्ती बहुत कर चुका, अब मुझे न्याय दिवस अर्थात उपर वाले को हिसाब देने का दिन का डर हो गया है, तुम्हारे पास जब खुशी से समय हो मैं एक पाठ तुम्हें सुनाना चाहता हूं, वो बोली, ऐसी अदभूत हैरतनाक तब्दीली के लिए मैं सुनने को तैयार हूं, वो कौन सा पाठ है जिसने आपके ऐसा बदल कर रख दिया, मैं ने जेब से 'आपकी अमानत' पुस्तक निकाली, वो बोली '' यह किताब में खुद भी पढ सकती हूं क्या?'' मैं ने कहा मेरा दिल चाहता है मैं खुद ही सुनाउं, असल में मेरे दिल में यह बात आ गई कि 17 साल में ने तुम्हारे साथ इतनी सख्ती और जुल्म किया, एक ऐसा अहसान कर दूं, जो 17 साल का अन्याय ना इन्साफी धुल जाए, कि हमेशा अजाब से तुम बच जाओ'' एक बार सुनने के बाद वो बोली अच्छा अब एक बार उसको जरा समझ कर पढना चाहती हूं, मैं ने कहा जरूर पढो, वो किताब उसने ली, पूरी किताब एक अलग जाकर उसने पढी, फिर मेरे पास आई और बोली इसका मतलब तो यह है कि सनातन धर्म और सच्च मजहब सिर्फ इस्लाम है, मैं ने कहा मालिक ने तुम्हें बिल्कुल सच समझाया, मेरी अचानक तब्दीली से वो बहुत मुतासिर थी, 17 साल से पहली बार मैं ने उसको प्यार से गले लगाया था, उसको प्यार किया था मुहब्बत से कुछ खरीद कर उसको पेश किया था उसके जन्म दिन और शादी के दिन पर मुबारकाद दी थी, अब उसके लिए मेरी बात मानना बिल्कुल स्भाविक (फितरी) था, मैं ने 'आपकी अमानत' पुस्तक में देख कर उसको कलिमा पढवाया(‘‘अशहदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाहु व अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलूह, सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम‘‘), उसका नाम आमिना खातून रखा, अपने दोनों बच्चों को भी कलिमा पढवाया, उनका नाम फातिमा और हसन रखा।
अहमद : इसके बाद आपने आम एलान किया?
शकील: अभी तक आम एलान नहीं किया, अलबत्ता चार पांच रोज के बाद तुम्हारे यहां एक मौलाना साहब जिनके बारे में मुझे मालूम हुआ था, ''आपकी अमानत'' बांटते हैं, उनको मैं ने एक दिन खरी खरी गालियां सुनाई थीं, उनके पास गया और उनसे अपने मुसलमान होने के बारे में बताया, और उनसे अपनी खतना के सिलसिले में मशवरा किया, मगर उनको यकीन रहीं आया, और जरा टालते रहे, मैं उनके डर को समझ गया,और में मुरादाबाद एक मुसलमान डाक्टर के पास गया, और जाकर खतना कराई, उसके बाद मैं ने तीन बार सिर्फ तीन तीन दिन गजरोला तब्लीगी जमात में लगाए।
अहमद: गजरोला के साथियों को मालूम था कि आपने इस्लाम कुबूल किया है?
शकील: मैंने बताया कि असल में मैं पैदाइशी मुसलमान था बाद में शिव सेना और बजरंग दल के चक्कर में हिंदू बन गया था और यह बात सच्ची थी, हर पैदा होने वाला इस्लाम पर पैदा होता है, अब मेरा इरादा पहले चार महीने तब्लीगी जमात के सफर में लगाने का है, उसके बाद खुल कर एलान करूंगा, और इन्शा अल्लाह दीन सीख लूंगा तो दूसरों को दावत देना आसान होगा।
अहमद: माशा अल्लाह, अल्लाह ताला मुबारक फरमाए, वाकई आपका रईमान अलाह की खास हिदायत की कारफरमाई है, अच्छा आप मासिक 'अरमुगान' www.armughan.in के पाठकों को कुछ पैगाम देंगे?
शकील: दो रोज पहले बदायूं में हजरत तकरीर कर रहे थे कि तमाम मुसलमानों को अल्लान दे दाइ अर्थात अल्लाह की और बुलाने वाला बनाया है, दाइ(दीन की दावत देने वाला) की हैसियत डाक्टर जैसी और जिसको दावते दीन दी जाए उसकी हैसियत मरीज (बीमार) की है अगर डाक्टर अपने मरीज के इलाज में कोताही करें और मरीज मरने लगें तो मरीज का गुस्सा होना बिल्कुल नेचुरल है, मगर डाक्टरों को अपने मरीज से निगाह नहीं फेरनी चाहिए, दावते दीन असल में मुहब्बत भरा काम हैं, यह डिबेट मुनाजरा नहीं, कि हारजीत की बात बनालें, यह तो नबवी दर्द के साथ अपने मदउ अर्थात जिसे दावत दी जानी है उसके लिए अजाब के खतरे को समझ कर कुढने और तडपने का अमल है, अगर सच्चे दर्द और तडप के साथ कोई रोने वाला हो, मुझ जैसे जलाली और गुस्सावर, कतल और गालियों पर आमादा दरिन्दे को जिसको कभी अपनी बीवी बच्चों पर प्यार न आया हो, उसको पिघला कर अल्लाह का बंदा और गुलाम बनाया जा सकता है, इमान कुबूल करने के बाद जैसे सुनिल जोशी गुसियारा दरिन्दा मर गया और मुहम्मद शकील एक कोमल दिल वाले इन्सान ने जन्म ले लिया, मेरे साथ ऐसा हुआ है, असल में दर्द और खेरखाही की जरूरत है।
अहमद: वाकई बहुत गहरी बात आपने कही, बहुत बहुत शुक्रिया जज़ाकल्लाह, आप खूब समझे, अस्सलामु अलैकुम
शकील: मैं नहीं समझा, एक रोने वाले ने समझा दिया, आपका बहुत बहुत शुक्रिया , वालैकुम सलाम
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"aapki amanat aapki sewa men" in English
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Maulana Kaleem Siddiqui यादगार विडियो
Part-1
http://www.youtube.com/ watch?v=UmNIaIjgq8Q&feature =mfu_in_order&list=UL
Part-2
http://www.youtube.com/ watch?v=uBLctMHjhWo&feature =related
Part-3
http://ww.youtube.com/ watch?v=b21jKsdIbU4
अहमद अव्वाह: अस्सलामु अलैकुम
मुहम्मद शकील: वालैकुम सलाम
अहमद: शकील साहब अबी ने कुछ दिन पहले हम लोगों को बताया था कि आपने हमारे एक जिम्मेदार साथी के साथ बहुत गुस्से का मामला किया था और गालियां वगेरा दी थी, और अब आपको अल्लाह ताला ने हिदायत से नवाज दिया, आपके इस गुस्से और नाराजगी के पीछे क्या बात है, हालांकि आपके खान्दान के मुसलमानों से ताल्लुकात भी रहे हैं।
शकील: मौलाना अहमद साहब असल में तो मेरे मालिक मुझ पर रहम आ रहा था, बस उसने जरिया बना दिया, वर्ना पिछले दिनों मुझ पर मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ जो भूत सवार था उसका आप तसव्वुर भी नहीं कर सकते।
अहमद : फिर भी जाहिरी तौर पर इस गुस्से की वजह क्या थी?
शकील : असल में हमारे यहां शाहआबाद आंध्रा के चार बच्चे मुसलमान हुए, चारों भाई बहन थे, जिस लडके के साथ वो आए थे उसने उनकी बडी बहन से शादी कर ली थी, हमारे जिले की शिव-सेना के जिम्मेदारों को मालूम हो गया तो उन्हों ने इलाके में बवाल खडा कर दिया, उस लडके के खिलाफ बच्चों को बहका कर मुसलमान बनाने का मुकदमा दायर कर दिया, और उसको जेल भेज दिया, अदालत में उन बच्चों ने साफ-साफ खुल कर बयान दिया कि हम अपनी मर्जी से मुसलमान हुए हैं, लडकी अभी 18 साल की नहीं हुई थी, असल में उसके पिता झांसी के पास किसी जगह रहते हैं , शिवपूरी कोई जिला है वहां पर उन बच्चों की सगी मां तो मर गयी थीं, वालिद ने एम. पी. में ही दूसरी शादी की, मां के रवैये से परेशान होकर यह बच्चे घर से भाग कर आ गए, स्टेशन पर उस लडके को यह चारों मिले, इसको तरस आ गया, ये उनको शाहआबाद ले आया, घर वालों ने मुखालफत की, मगर इस लडके ने इस लडकी से वादा कर लिया था इस लिए उससे शादी कर ली, बाद में अदालत और पुलिस ने इन बच्चों के पिता से राबता किया तो उनके बाप ने यह बयान दिया कि यह बच्चे मेरी मर्जी से मुसलमान हुए हैं, और मेरी मर्जी से मेरी बेटी ने शादी की है, इस पर हमारे यहां के शिवसेना वालों ने शिवपूरी के जिम्मेदारों से राबता किया और बच्चों के वालिद के खिलाफ बयान दिने पर जोर दिया और उनको तरह-तरह की धमकियां भी दीं, मगर वो किसी तरह खिलाफ बयान देने पर राजी न हुए, और कहते रहे कि इस देवता जैसे इन्सान ने उन बच्चों पर तरस खाकर हमदर्दी की और उसको निभाया, हम उसके खिलाफ बयान दें यह कैसा घोर अन्याय होगा, क्या में बिल्कु हैवान बन जाउं, जब वहां के शिव सैनिकों ने बहुत ज्यादा दबाव दिया तो उन बच्चों के बाप ने और उन बच्चों के साथ उनकी सौतेली मां अपने दो बच्चों के साथ मुसलमान हो गयी, इस पर पूरे इलाके की हिन्दू कमेटियों ने अपनी हार समझ कर एकजुट हो कर छानबीन शुरू की तो मालूम हुआ की इलाके में बहुत से लोग मुसलमान होते जा रहे हैं, इस पर खोद-कुरेद हुई तो पता चला कि संभल और उसके पास के कुछ कसबों में कुछ लोग यह काम कर रहे हैं, मेरे एक साथी बजरंग दल के जिला संचालक हैं अनिल कौशिक, वो मेरे पास संभल आए और उन्होंने संभल में शिवसेना और बजरंग दल के लोगों की मीटिंग की, और उस में धर्म बदलने को रोकने के सिलसिले में लोगों को गरमाया, में बचपन से बहुत जज्बाती आदमी हूं मुझे बहुत गुस्सा आया, और मैं ने इसके खिलाफ तहरीक चलाने का इरादा कर लिया, मेरे एक और साथी ने जो इस काम में बढ चढ कर हिस्सा लेने का वादा कर चुके थे, उन्होंने मुझे बताया कि असल में एक किताब हिन्दी में ''आपकी अमानत, आपकी सेवा में'' मौलाना कलीम सिददीकी साहब ने लिखी है, वो ऐसी जादू भरी भाषा में लिखी गयी है कि जो उसे पढता है मुसलमान हो जाता है, और वो दिल्ली से छपी है उस पर छपवाने वाले का फोन नम्बर है, मैं ने कहा वो किताब जरा मुझे ला कर दो, मैं देखूंगा उस में क्या बात लिखी है, उसने कहा नहीं उसका पढना ठीक नहीं है, उस किताब का लेखक कोई तान्त्रिक है, उसने उसकी भाषा में जादू कर दिया है, अगर तुम पढोगे तो मुसलमान हो जाओगे, मुझे भी डर लगा, जब मुझे किताब दिखाई तो मैं ने बिना खोले किताब के बेक टाइटिल पर छपे दो मोबाइल नम्बरों को नोट कर लिया फिर एक नम्बर पर बात की, पहले नम्बर पर एक साहब का फोन मिला वो बडे नर्म स्वभाव के थे, मैं उन्हें मां बहन की बडी गालियां देता रहा, और धमकियां देता रहा, मगर वो हंसते रहे और बोले आपकी गालियां कितनी मिठी हैं उनसे मुहब्बत की खुशबू आ रही है, रात को दूसरे नम्बर पर मैं ने बात की और बहुत सख्त सुस्त आखरी दरजे की मां बहन की सडी सडी गालियां देता रहा, तो वो साहब पहले तो गुस्सा हुए फिर बोले, मैं ने पूरा फोन टेप कर लिया है, अब आप के खिलाफ थाने में रिपोर्ट कराने जा रहा हूं, एक दफा तो मैं डर सा गया, फिर हिम्मत की और कहा कि कतल के बाद इकटठे ही केस कर देना, मैं ने उनसे कहा कि जरा अपनी पत्नि (बीवी) से बात करादे, मैं तुझे कतल करूंगा , तो वो विधवा हो जाएगी, मैं उससे पहले ही क्षमा (माफी) तो कर लूं, फिर तो मौका मिलेगा नहीं।
अहमद: अच्छा तो वो आप थे, अबी(कलीम साहब) तो बहुत मजे लेकर यह बात सुनाते थे, और उन साथी को समझाया था जब वो बहुत टूटे दिल के साथ उन गालियों की शिकायत कर रहे थे, अबी ने उनको समझाया कि तुम्हें तो फखर करना चाहिए, कि सैयदुल अव्वलीन व आखिरीन नबी रहमतुल आलमीन सल्ल. की सुनन्त अदा करने का शरफ तुम्हें मिला, दावत की राह में किसी खुशकिस्मत को ही गालियां नसीब होती हैं, अबी उनसे कहने लगे तुम बताओ कोई ऐसा खुशकिस्मत आदमी जिस को दावत(दीन की बुलाने) की राह में गालियां मिली हों, यह प्यारे आका की सुन्नत है कि जिनको दोजख की आग से निकालने के लिए आप रातों को रोते और दिनों को खुशामद करते थे, वो लोग गालियां देते, पत्थर बरसाते, और हर तरह से सताते थे, फिर उसने उनसे कहा कि तुम ने उसकी गालियों पर तो गौर किया, उसकी इन्सानियत और रहम दिली और उसकी मुहब्बत भरी फितरत का अहसास नहीं किया कि अभी उसने तुम्हें कतल किया भी नहीं और तुम्हरी बीवी से माफी मांगने को कह रहा है...... जी तो आगे सुनाइए।
शकील: उन साहब ने मुझसे मालूम किया कि आप यह बताइए कि उस किताब में कौनसी बात ऐसी गलत है जिस पर आपको एतराज और ऐसा गुस्सा है, मैं ने कहा, मैं ने तो वो किताब पढी नहीं, उन्होंने कहा फिर आपको गुस्सा क्यूं? मैं ने कहा मेरे कई साथियों ने किताब पढने से मना किया और कहा जो भी यह किताब पढता है इस किताब की की भाषा में जादू कर रखा है, वो मुसलमान हो जाता है, इस डर की वजह से मैं ने किताब नहीं पढी, उन्होंने कहा आपको किसी ने गलत कहा है? मुझसे पूछा आप कुछ पढे लिखे हैं? मैं ने कहा में एम. एस. सी. हूं, वो बोले साइंस के स्कालर होकर आप कैसी अंधविश्वास की बात कर रहे हैं, इन्सान को मालिक ने देखने के लिए अकल दी है, और आप इतने पढे लिखे आदमी हैं, इन्सान चांद तारों पर जा रहा है, और आप जादू की बात कर रहे हैं, आप ऐसा किजिए कि आप इस किताब को जरूर पढिए और इसके पढने के बाद जो बात आपको गलत लगे अपने कलम से काट दिजिए, आइन्दा आप जिस तरह करक्शन करेंगे किताब उसी तरह छपेगी, उन्हों ने कहा 'क्या में आपके पास किताब भेज दू?'' मैं ने कहा अगर मुझे न मिली तो मंगा लूंगा, और मुझे इस किताब में कोई बात हिन्दू धर्म के खिलाफ मिलेगी तो में तेरे पूरे खान्दान को कतल कर दूंगा, वो बोले कोई बात नहीं।
अहमद: उसके बाद आपने वो किताब पढी?
शकीलः नहीं मैं ने उन दिनों वो किताब नहीं पढी, साथियों से बात हुई तो मेरी तबियत में बहुत नर्मी देख कर वो बहुत गुस्से हुए, और बोले कि ऐसे ही तो लठ मार मार कर वो धर्मान्त्रण कर रहे हैं, देखा नहीं यह इसाई मिशन वाले भी ऐसा ही करते हैं में जगह जगह जाकर चौराहों पर इस किताब और उसके बांटने वालों को गालियां देता, संभल के नवाब खान्दान के एक साहब को हज के दिनों ही वहीं मालूम हुआ कि संभल के पास एक कस्बा में एक आदमी सुनिल जोशी नाम का ''आपकी अमानत'' के खिलाफ बहुत गुस्सा है, वो उसके लेखक को बहुत गालियां बकता है, मौलाना कलीम साहब से वो मुरीद(धर्म शिष्य) है, हज के सफर से आने के बाद वो तलाश करते करते मेरे पास पहुंचे, मुझे देखा तो चिमट कर बहुत रोने लगे, सुनिल भैया तुम तो मेरे साथ छटी क्लास से लेकर दस्वी क्लात तक पढे हो, तुम्हारे साथ मैं ने कबडडी भी खेली है, मैं ने भी पहचान लिया, मैं ने कहा कि मेरे पिताजी ने तो आपके अब्बा जान की जमीन भी काश्त की है, बोले हां हां वो जमीन तो पिताजी ने बहुत सस्ते दामों में आपके पिताजी को ताल्लुकात की वजह से बेच दी थी, मैं ने कहा हां तुम्हारे पिता जी तो हमारी शादी में बहुत बढ-चढकर शरीक हुए थे, और कई दिन तक काम कराया था बलिक एक तरह से शादी की जिम्मेदारी निभाई थी, यह कह कर वो मुझ से चिमट गए, बुरी बुरी तरह फूट फूट कर रोने लगे और उनका रो रोकर बुरा हाल हो गया, रोते रहे और कहते रहे मेरे लाडले दोस्त, ईमान के बगैर तुम मर गए तो दोजख में जलोगे, मैं ऐसे अच्छे दोस्त को कैसे दोजख में जाता देखूंगा, मेरे भाई सुनिल मैं ने इस बार हज में बार-बार तुम्हारी हिदायत के लिए दुआ की है, मेरे भाई ईमान के बगेर बडा खतरा है और बहुत खतरनाक आग है, मेरे भाई सुनिल नर्क की आग से बच जाओ, जल्दी से कलिमा पढ लो, देखो में दिल का मरीज हूं तडप तडप कर मेरा हार्ट फेल हो जाए गा, मैं ऐसे अच्छे दोस्त को हर्गिज कुफर पर मरने नहीं दूंगा, मेरे भाई कलिमा पढ लो, फूट फूट कर आवाज से रोते रोते उनका बुरा हाल हो गया, मैं ने कहा ''में कलिमा पढ लूंगा, तुम चुप हो जाओ, मेरे यार चाए तो पी लो'' वो बोले ''मैं किस दिल से चाए पी लूं, जब मेरा दिली प्यारा दोस्त, जिसका इतना प्यारा बाप हो, जो मरे हकीकी भाई की तरह होने के बावजूद ईमान के बगैर मर गया, सुनिल भैया चचा बलराम जी पर नर्क में क्या क्या गुजर रही होगी, मेरे अब्बा ने उन्हें मरने दिया गमर में तुम्हें हरगिज अब नर्क में नहीं जाने दूंगा'' बार बार मैं उनको पानी पिलाने की कोशिश करता, मगर वो कहते ''तुम्हें पानी की पडी है, मेरा भाई मेरा दोस्त सुनिल बगैर इमान के मर जाएगा, मेरे होश खराब हो गए, मैं ने कहा: ''चुप हो जाओ पानी पी लो, जो तुम कहोगे, मैं करने को तैयार हूं'' वो बोले ''कलिमा पढ लो'', मैं ने कहा कि तुम पानी पीलो, मैं कलिमा नही पूरा कुरआन पढ लूंगा'' वो बोले ''अगर मेरे पानी पीते पीते तुम मर गए तो नर्क में जाओंगे'' मैं ने कहा ''मेरे भाई , अच्छा तुम पढाओ क्या पढाते हो'' मैं ने उनकी हालत बुरी देखी तो उसके अलावा और कोई रास्ता दिखाइ नहीं दिया, उन्होंने रोते रोते मुझे कलिमा पढाया, फिर हिन्दी में उसका अनुवाद बताया, मैं ने उनको पानी पिलाया, मैं ने कहा ''अच्छा अब तुम खुश हो अब चाए पी लो'' उन्हों ने चाए पी, और जेब में से ''आपकी अमानत आपकी सेवा में'' किताब निकाल कर दी, कि सुनिल भैया इस किताब को अब तुम दो बार बहुत गौर से पढना, 'आपकी अमानत' मैं ने देखी तो मेरा मूड खराब हो गया, अच्छा यह किताब तो मैं किसी तरह भी नहीं पढूंगा, इस किताब के लेखक को मैं ने कतल करने का पर्ण (अहद) किया है, वो चाए छोड कर फिर मुझ से चिमट गए और रोने लगे, मैं ने कहा ''तुम कुछ ही करो, मैं किताब नहीं पढ सकता'', वो बोले क्यूं इस किताब से तुम्हें ऐसी चिड है, मैं ने कहा, क्या तुम ही लोग यह किताब बांट रहे हो, उन्होंने कहा कि तुम्हरा यह गया गुजरा भाई ही यह मुहब्बत की खुशबू बांट रहा है'' मैं ने कहा ''मुहब्बत की नहीं नफरत की, इस किताब के नाम से मुझे गुस्सा आता है, वो बोले कि भाई सुनिल, इस किताब में क्या बात गलत है? तुम ने यह किताब पढी है? मैं ने कहा मैं नहीं पढ सकता, इस किताब का लेखक तान्त्रिक है उसने इसके शब्दों में जादू कर रखा है, वो दिलों को बांध देते हैं'' वो फिर पहले की तरह रोने लगे, सुनिल भैया ''इस किताब का लेखक एक तान्त्रिक नहीं, एक सच्चा इन्सान और मुहब्बत का फरिश्ता है, उसने इस किताब में मुहब्बत की मिठास घोल रखी है, और इस किताब में सच है, सच्ची हमदर्दी है, वो यह कहते हैं कि हर इन्सान की आत्मा सच्ची होती है, वो अपने मालिक की तरफ से सच्ची बात पर कुरबान होती है, मेरे दोस्त तुम्हें यह किताब जरूर पढनी पडेगी'' मैंने कहा कि सब कहते हैं जो इस किताब को पढता है वो मुसलमान हो जाता है, मुझे यह डर है कि इस किताब को पढ कर मुझ सचमुच मुसलमान होना पडेगा'' यह कहना था कि वो मुझसे चिमट गए, और बच्चों की तरह बिलक बिलक कर रोने लगे, मेरे भाई सुनिल, तुमने सच्चे दिल से कलमा नही पढा, झूठे दिल से पढा कलमा किसी काम की नहीं, मरे भाई तुम्हें यह किताब पढनी पडेगी, में हरगिज हरगिज तुम्हें नरक में नहीं जाने दूंगा, मेरे भैया में मर जाउंगा, मुझ डर लगा कि यह वाकई रो रो के मर जाएगा, मैं ने उसको पानी पिलाना चाहा, वो पानी पीने को तैयार न हुए, मैं ने कहा ''मेरे बाप में इस किताब को दस दफा पढूंगा तुम चुप हो जाओ, अच्छा यह पानी पी लो, मैं तुम्हारे सामने अभी पढता हूं'' उसने इस शर्त पर पानी पिया, कि मैं अभी इस किताब को पूरी उसके सामने पढूंगा, मैं ने उनके सामने किताब पढना शुरू की, और खयाल था कि थोडी देर में यह चुप हो जाएगा तो यह किताब बंद कर दूंगा, मगर जैसे ही पेश लफज (दो शब्द) का पृष्ठ पढा, किताब के लेखक से मेरी दूरी कम हो गई, और फिर मैं किताब पढता गया, 32 पृष्ठ की किताब आधे घंटे में खतम हो गई, इस किताब का सच और मुहब्बत मेरे उपर जादू कर चुका था, मैं ने अपने दोस्त से एक बार सच्चे दिल से कलिमा शहादत पढाने की खुद रिक्वेस्ट की, उन्होंने मुझे कलिमा पढाया, मैं ने गले मिलकर उनका शुक्रिया अदा किया, और अपना नाम उनके मशवरे से शकील अहमद रखा
अहमद: इसके बाद आपने अपने इस्लाम का एलान किया?
शकील: रात को मैं ने अपनी बीवी से बताने का इरादा किया, बाजार से उसके लिए जोडा लिया, और एक चांदी की अंगूठी खरीदा, एक मिठाई का डब्बा लिया, 30 मार्च का दिन था, यह मेरी शादी का दिन था, और यह दिन मेरी बीवी का बर्थडे भी था, रात को मैं ने उसको मुबारकबाद दी और हद दरजे मुहब्बत का इजहार किया जो मेरी आदत के बिल्कुल खिलाफ था, वो हैरत से मालूम करने लगी की यह किया बात है, मैं ने कहा कि एक आदमी सुनिल जो तुम्हारे साथ भारतीय समाज के मुताबिक पांव की जूती समझ कर व्यवहार सलूक करता था, आज उसने नया जन्म लिया है, उस पर उसके मालिक ने महरबानी कर दी हे, उसे धार्मिक बना दिया है, एक प्रेम का देवता मेरे पास आकर मेरी जीवन के अंधकार को प्रकाशित कर गया गया, मैं तुम से आज तक के सारे अत्याचार जुल्म के लिए पांव पकड कर माफी मांगता हूं, और आइन्दा के लिए तुम से वादा करता हूं कि तुम मेरी जीवन साथी, मेरे सर का ताज हो, वो बोली में समझ नहीं सकी, मैं ने कहा इसको समझने के लिए अगर तुम्हारे पास समय है तो आधा घंटा चाहिए, मगर जब तुम खुशी से तैयार हो, मैं तुम पर जबरदस्ती बहुत कर चुका, अब मुझे न्याय दिवस अर्थात उपर वाले को हिसाब देने का दिन का डर हो गया है, तुम्हारे पास जब खुशी से समय हो मैं एक पाठ तुम्हें सुनाना चाहता हूं, वो बोली, ऐसी अदभूत हैरतनाक तब्दीली के लिए मैं सुनने को तैयार हूं, वो कौन सा पाठ है जिसने आपके ऐसा बदल कर रख दिया, मैं ने जेब से 'आपकी अमानत' पुस्तक निकाली, वो बोली '' यह किताब में खुद भी पढ सकती हूं क्या?'' मैं ने कहा मेरा दिल चाहता है मैं खुद ही सुनाउं, असल में मेरे दिल में यह बात आ गई कि 17 साल में ने तुम्हारे साथ इतनी सख्ती और जुल्म किया, एक ऐसा अहसान कर दूं, जो 17 साल का अन्याय ना इन्साफी धुल जाए, कि हमेशा अजाब से तुम बच जाओ'' एक बार सुनने के बाद वो बोली अच्छा अब एक बार उसको जरा समझ कर पढना चाहती हूं, मैं ने कहा जरूर पढो, वो किताब उसने ली, पूरी किताब एक अलग जाकर उसने पढी, फिर मेरे पास आई और बोली इसका मतलब तो यह है कि सनातन धर्म और सच्च मजहब सिर्फ इस्लाम है, मैं ने कहा मालिक ने तुम्हें बिल्कुल सच समझाया, मेरी अचानक तब्दीली से वो बहुत मुतासिर थी, 17 साल से पहली बार मैं ने उसको प्यार से गले लगाया था, उसको प्यार किया था मुहब्बत से कुछ खरीद कर उसको पेश किया था उसके जन्म दिन और शादी के दिन पर मुबारकाद दी थी, अब उसके लिए मेरी बात मानना बिल्कुल स्भाविक (फितरी) था, मैं ने 'आपकी अमानत' पुस्तक में देख कर उसको कलिमा पढवाया(‘‘अशहदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाहु व अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलूह, सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम‘‘), उसका नाम आमिना खातून रखा, अपने दोनों बच्चों को भी कलिमा पढवाया, उनका नाम फातिमा और हसन रखा।
अहमद : इसके बाद आपने आम एलान किया?
शकील: अभी तक आम एलान नहीं किया, अलबत्ता चार पांच रोज के बाद तुम्हारे यहां एक मौलाना साहब जिनके बारे में मुझे मालूम हुआ था, ''आपकी अमानत'' बांटते हैं, उनको मैं ने एक दिन खरी खरी गालियां सुनाई थीं, उनके पास गया और उनसे अपने मुसलमान होने के बारे में बताया, और उनसे अपनी खतना के सिलसिले में मशवरा किया, मगर उनको यकीन रहीं आया, और जरा टालते रहे, मैं उनके डर को समझ गया,और में मुरादाबाद एक मुसलमान डाक्टर के पास गया, और जाकर खतना कराई, उसके बाद मैं ने तीन बार सिर्फ तीन तीन दिन गजरोला तब्लीगी जमात में लगाए।
अहमद: गजरोला के साथियों को मालूम था कि आपने इस्लाम कुबूल किया है?
शकील: मैंने बताया कि असल में मैं पैदाइशी मुसलमान था बाद में शिव सेना और बजरंग दल के चक्कर में हिंदू बन गया था और यह बात सच्ची थी, हर पैदा होने वाला इस्लाम पर पैदा होता है, अब मेरा इरादा पहले चार महीने तब्लीगी जमात के सफर में लगाने का है, उसके बाद खुल कर एलान करूंगा, और इन्शा अल्लाह दीन सीख लूंगा तो दूसरों को दावत देना आसान होगा।
अहमद: माशा अल्लाह, अल्लाह ताला मुबारक फरमाए, वाकई आपका रईमान अलाह की खास हिदायत की कारफरमाई है, अच्छा आप मासिक 'अरमुगान' www.armughan.in के पाठकों को कुछ पैगाम देंगे?
शकील: दो रोज पहले बदायूं में हजरत तकरीर कर रहे थे कि तमाम मुसलमानों को अल्लान दे दाइ अर्थात अल्लाह की और बुलाने वाला बनाया है, दाइ(दीन की दावत देने वाला) की हैसियत डाक्टर जैसी और जिसको दावते दीन दी जाए उसकी हैसियत मरीज (बीमार) की है अगर डाक्टर अपने मरीज के इलाज में कोताही करें और मरीज मरने लगें तो मरीज का गुस्सा होना बिल्कुल नेचुरल है, मगर डाक्टरों को अपने मरीज से निगाह नहीं फेरनी चाहिए, दावते दीन असल में मुहब्बत भरा काम हैं, यह डिबेट मुनाजरा नहीं, कि हारजीत की बात बनालें, यह तो नबवी दर्द के साथ अपने मदउ अर्थात जिसे दावत दी जानी है उसके लिए अजाब के खतरे को समझ कर कुढने और तडपने का अमल है, अगर सच्चे दर्द और तडप के साथ कोई रोने वाला हो, मुझ जैसे जलाली और गुस्सावर, कतल और गालियों पर आमादा दरिन्दे को जिसको कभी अपनी बीवी बच्चों पर प्यार न आया हो, उसको पिघला कर अल्लाह का बंदा और गुलाम बनाया जा सकता है, इमान कुबूल करने के बाद जैसे सुनिल जोशी गुसियारा दरिन्दा मर गया और मुहम्मद शकील एक कोमल दिल वाले इन्सान ने जन्म ले लिया, मेरे साथ ऐसा हुआ है, असल में दर्द और खेरखाही की जरूरत है।
अहमद: वाकई बहुत गहरी बात आपने कही, बहुत बहुत शुक्रिया जज़ाकल्लाह, आप खूब समझे, अस्सलामु अलैकुम
शकील: मैं नहीं समझा, एक रोने वाले ने समझा दिया, आपका बहुत बहुत शुक्रिया , वालैकुम सलाम
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"aapki amanat aapki sewa men" in English
By
Muhammad Kaleem Siddiqui
Translation: Safia Iqbal
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Maulana Kaleem Siddiqui यादगार विडियो
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